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सुप्रीम कोर्ट में याचिका खारिज, भोपाल गैस पीड़ितों को झटका

नई दिल्ली।। भोपाल गैस कांड में आरोपियों को कठोर सजा दिलाने के लिए सीबीआई की ओर से दायर क्यूरेटिव याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी। याचिका में सुप्रीम कोर्ट के ही 14 साल पहले के एक फैसले को वापस लेने की मांग की गई थी, जिसके तहत आरोपियों के खिलाफ आरोप कमतर हो गए थे।

सीबीआई ने अपील की थी कि गैस त्रासदी के आरोपियों पर गैर-इरादतन हत्या की धारा लगाने का आदेश दिया जाए, जिससे अधिकतम 10 वर्ष कैद की सजा सुनाई जा सके।

चीफ जस्टिस एस. एच. कपाड़िया की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने यह कहकर उम्मीद की एक किरण छोड़ दी है कि चीफ जूडिशल मैजिस्ट्रेट के फैसले के खिलाफ सेशन कोर्ट में लंबित कार्यवाही पर उसके आदेश का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। चीफ जूडिशल मैजिस्ट्रेट ने यूनियन कार्बाइड इंडिया के चेयरमैन केशुब महिंद्रा सहित सभी आरोपियों को दो साल की सजा सुनाई थी। सीबीआई और एमपी सरकार ने भोपाल के सीजीएम के फैसले के खिलाफ सेशन कोर्ट में समीक्षा याचिका दायर कर रखी है।

बेंच ने कहा कि सीबीआई और मध्य प्रदेश सरकार इस बात का कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण देने में विफल रही कि 14 साल के बाद क्यूरेटिव याचिका क्यों दायर की गई। बेंच ने यह आदेश सर्वसम्मति से दिया। पीठ में जस्टिस अल्तमस कबीर, आर. वी. रवींद्रन, बी सुदर्शन रेड्डी और आफताब आलम शामिल हैं।

गौरतलब है कि दिसंबर 1984 में भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड संयंत्र से जहरीली गैस का रिसाव हुआ था। रिसाव की वजह से 15 हजार से ज्यादा लोगों की जान गई और हजारों लोग प्रभावित हुए।
इस मामले में अदालत ने सात लोगों को दो वर्ष कारावास की सजा सुनाई ग। इसके बाद जनाक्रोश भड़क उठा क्योंकि लोगों ने महसूस किया कि सजा पर्याप्त नहीं है। इसे देखते हुए सीबीआई और मध्य प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।

जस्टिस एच. अहमदी की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय बेंच ने 1996 में आरोपियों के खिलाफ लगाए गए आरोप आईपीसी की धारा 304 भाग दो से हटा कर 304 (ए) में तब्दील कर दिए थे। इसकी वजह से आरोपियों पर केवल लापरवाही का मुकदमा चला गया, जिसमें अधिकतम दो साल की सजा का प्रावधान है।