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सुप्रीम कोर्ट से कोयला घोटाले की जांच विशेष दल से कराने का अनुरोध

नई दिल्ली (भाषा)। कोयला खदान आबंटन घोटाले की सीबीआइ जांच में केंद्र सरकार के कथित हस्तक्षेप का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। एक गैर सरकारी संगठन ने न्यायालय से सरकारी हस्तक्षेप की जांच विशेष जांच दल से कराने का अनुरोध किया है।
गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘कामन काज\' ने न्यायालय में दायर अर्जी में आरोप लगाया है कि सरकार का खुलेआम कथित हस्तक्षेप गैरकानूनी और अपराध ही नहीं, न्यायालय की अवमानना भी है। इसकी जांच विशेष जांच दल से होनी चाहिए। अर्जी में आरोप लगाया गया है कि कोयला ब्लाक आबंटन घोटाले की जांच के लिए सीबीआइ उपयुक्त नहीं है क्योंकि सरकार के इशारे पर जांच एजंसी ने न्यायालय में पेश प्रगति रिपोर्ट में परिवर्तन कर उसे हल्का बनाया है। इसमें यह भी आरोप लगाया गया है कि सरकार के विधि अधिकारी ने भी न्यायालय को गुमराह करने का प्रयास किया है। उन्होंने कहा था कि प्रगति रिपोर्ट को किसी ने भी नहीं देखा है जबकि जांच एजंसी ने ही इसे उन्हें दिखाया था। संगठन ने सुझाव दिया है कि इस जांच की निगरानी के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में विशेष जांच दल गठित किया जाए। इससे जांच के प्रति विश्वसनीयता बनी रहेगी। इसे राजनीतिक और कारपोरेट जगत के दबाव से भी बचाया जा सकेगा।
इससे पहले कोयला ब्लाक आबंटन में अनियमितताओं के मामले में जनहित याचिका दायर करने वाले वकील मनोहर लाल शर्मा ने भी जांच में कथित सरकारी दखल के मामले का सोमवार को न्यायमूर्ति आरएम लोढा की खंडपीठ के समक्ष उल्लेख किया। न्यायालय ने कहा कि यह मामला 30 अप्रैल को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है, इसलिए अभी इसमें हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है। न्यायालय ने शर्मा को इस मामले में अर्जी दायर करने की छूट दी जिस पर 30 अप्रैल को सुनवाई की जा सकती है।
कामन काज ने वकील प्रशांत भूषण के जरिए यह अर्जी दायर की है। पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एन गोपालस्वामी, पूर्व नौसेना अध्यक्ष एल रामदास और पूर्व कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रमणियम और वकील एमएम शर्मा ने भी जनहित याचिकाओं में विशेष जांच दल गठित करने का अनुरोध किया है।
जांच एजंसी ने आठ मार्च को न्यायालय में दाखिल प्रगति रिपोर्ट में कहा था कि 2006 से 2009 के दौरान कंपनियों की पृष्ठभूमि की पुष्टि के बिना ही कोयला खदानों का आबंटन किया गया। रिपोर्ट में कहा गया था कि इन कंपनियों ने अपने बारे में गलत तथ्य पेश किए थे। शीर्ष अदालत ने 12 मार्च को जांच एजंसी के निदेशक को यह हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया था कि आठ मार्च को पेश की गई प्रगति रिपोर्ट सिर्फ उन्होंने ही देखी है और मंत्रियों को इसकी जानकारी नहीं दी गई थी व भविष्य में भी इसी प्रक्रिया का पालन किया जाएगा।