Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/सूखी-वनस्पतियों-का-निस्तारण-भरत-झुनझुनवाला-10213.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | सूखी वनस्पतियों का निस्तारण-- भरत झुनझुनवाला | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

सूखी वनस्पतियों का निस्तारण-- भरत झुनझुनवाला

उत्तराखंड के जंगलों में आग का तांडव जारी है. छिटपुट वर्षा से कुछ दिनों के लिए आग बुझ जाती है, परंतु फिर जंगल जलने लगते हैं. मूल समस्या सूखी पत्तियों एवं टहनियों के निस्तारण की है. पेड़ों की पत्तियां और घास जमीन पर जमा हो जाती हैं. ऊपरी क्षेत्रों में वर्षा होती रहती है या ठंड के कारण ये पदार्थ सूखते नहीं हैं. इनकी मोटी परत जमी रहती है और खाद का काम करती है.

नीचे के क्षेत्रों में कुछ समय तक वर्षा न होने पर ये पदार्थ सूख जाते हैं और ज्वलनशील हो जाते हैं. इसको हटाने का कोई उपाय नहीं है. प्रकृति ने इसके निस्तारण का एकमात्र उपाय आग बनायी है. 5, 10 या 20 साल के बाद आग लगने पर ये पदार्थ जल कर भस्म हो जाते हैं और पूरा चक्र पुनः चालू हो जाता है. हम चाहते हैं कि जंगल में आग न लगे, परंतु सूखी वनस्पतियों के निस्तारण का हमारे पास कोई रास्ता नहीं है.

आग से प्रकृति का नुकसान होना जरूरी नहीं है. कुछ वनस्पतियों की जड़ों में गांठें होती हैं, जिन्हें राइजोम कहा जाता है. इन पौधों को आग पसंद होती है. इनका ऊपरी हिस्सा आग से जल जाता है.

आग की गर्मी से जड़ों को ताजगी मिलती है. इसके बाद वर्षा होने पर ये वनस्पतियां खिलखिला कर पूरी ताकत से निकलती हैं. दूसरी वनस्पतियां बीजों के माध्यम से अपना विस्तार करती है. जैसे गेहूं अथवा कोदो, इन्हें आग से हानि होती है. अतः आग लगने से राइजोम वनस्पतियों को लाभ तथा बीज वनस्पतियों को हानि होती है. मामला प्रकृति के संरक्षण बनाम बरबादी का नहीं है. मामला आग पसंद करनेवाली और आग पसंद न करनेवाली वनस्पतियों के आपसी संतुलन का है.

सूखी वनस्पतियों का निस्तारण तो आग से ही होना है. हमारे सामने च्वाॅयस मात्र यह है कि कम समय के फासले पर कम मात्रा में जमा हुई सूखी वनस्पतियों का आग लगा कर निस्तारण कर दें अथवा यदि निस्तारण अधिक समय के फासले पर ज्यादा बड़ी आग के माध्यम से करें.

इन दो प्रकार के निस्तारण में मौलिक अंतर है. छोटी आग से जमीन पर पड़ी सूखी पत्तियां जल कर राख हो जाती हैं, परंतु पेड़ों को अधिक नुकसान नहीं होता है. पेड़ों के ऊपर के हिस्से हरे बने रहते है. लेकिन बड़ी आग से पेड़ ऊपर तक जल जाते हैं. इनके तने अंदर से झुलस जाते हैं और पेड़ मर जाते हैं. ऐसे में पूरा जंगल ही स्वाहा हो जाता है.

स्पष्ट है कि सूखी वनस्पतियों को लंबे समय तक एकत्रित होने देने से नुकसान ज्यादा है. अंत में इनका निस्तारण आग से होता है. लेकिन, यदि आग कम समय पर लग जाये, तो यह नीचे के स्तर पर ही रहेगी. राइजोम को लाभ होगा और पेड़ भी बचे रहेंगे. छोटी आग को लगने से रोकने पर लंबे समय पर बड़ी आग लगेगी और पूरे जंगल की हानि होगी.

उत्तराखंड की जनता इस कटु सत्य को समझती है. इसलिए समय-समय पर लोग जंगल में जानबूझ कर आग लगा देते हैं. वे बताते हैं कि आग लगने के बाद जब वर्षा होती है, तो घास अच्छी होती है. अपने देश में वर्षा माॅनसून के चार माह में सिमट जाती है. इसलिए सरकार को चाहिए कि जंगलों में लगी आग का अध्ययन कराये कि कितने समय पर कितनी बड़ी आग लाभकारी होती है. फिर आग को सुनियोजित ढंग से लगाने की पाॅलिसी बनानी चाहिए. जंगल को बड़ी आग से बचाना जरूरी है.

इसके लिए नियम बनाये गये हैं कि जंगल को कुछ भागों में बांट दिया जाये. इन भागों के बीच में लगभग तीन मीटर चौड़ी लाइन में घास को हटा दिया जाये. ऐसा करने से इस लाइन के पार आग नहीं फैल पाती है. सरकार को चाहिए कि इन फायर लाइन का जाल जंगलों में बिछाये. समस्या है कि इसमें खर्च आता है. इसलिए प्रायः जंगल विभाग द्वारा ये फायर लाइन नहीं बनायी जाती है. इसलिए बड़ी आग लगने पर उस पर नियंत्रण करना असंभव हो रहा है.

एक और समस्या चीड़ के जंगलों की है. चीड़ के पेड़ में आग को बर्दाश्त करने की क्षमता अधिक होती है. परंतु आग लगने पर बगल के मिश्रित जंगलों में फैल कर उन्हें नुकसान पहुंचाती है. फिर चीड़ के जीवित वृक्ष अपने बीज को जले हुए मिश्रित जंगलों में फैला देते हैं.
इस प्रकार आग के माध्यम से मिश्रित जंगलों का हृास और चीड़ के जंगलों का विस्तार हो रहा है. मिश्रित जंगल पर्यावरण के लिए ज्यादा लाभदायक होते हैं. ये जैव विविधिता को संरक्षित करते हैं. इनमें तमाम तरह के पशु पक्षी और वनस्पतियां जीवन यापन करती हैं. ये कार्बन को अधिक मात्रा में सोखते हैं. अतः चीड़ के जंगलों को काट कर मिश्रित जंगलों को लगाया जाना चाहिए. साथ ही, जंगल में फायर लाइन बनानी चाहिए और समय-समय पर छोटी एवं लाभकारी आग लगा कर सूखी वनस्पतियों का निस्तारण कर देना चाहिए.