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सूखे की मार : छत्तीसगढ़ में पानी तो है लेकिन कद्रदान नहीं

रायपुर(ब्यूरो)। छत्तीसगढ़ पानी की उपलब्धता के मामले में सौभाग्यशाली प्रदेश रहा है। मुख्य रूप से छह मुख्य नदियां अपनी सहायक नदियों और नालों के सहयोग से प्रदेश का पूरा क्षेत्रफल कवर करती हैं। प्रदेश की औसत बारिश भी करीब 1400 मिमी है। इस बारिश के पानी को रोकने के लिए प्रदेश के 20 हजार से अधिक गांवों में 54 हजार से अधिक तालाब हैं, इसके बावजूद कई बार प्रदेश के किसानों को सूखे की मार झेलनी पड़ती है।

वहीं तेज गर्मी के मौसम में पीने के पानी की जबरदस्त किल्लत पूरे प्रदेश में देखने को मिलती है। इसकी बड़ी वजह है जल प्रबंधन के मामले में छत्तीसगढ़ का पिछड़ा होना। प्रदेश में होने वाली बारिश का 80 फीसदी हिस्सा नदियों के माध्यम से समुद्र में चला जाता है।

यहां बारिश के पानी को स्टोर करने की पर्याप्त क्षमता विकसित नहीं की जा सकी है। प्रदेश की 76 फीसदी आबादी खेती पर निर्भर करती है इसके बावजूद प्रदेश की खेती का केवल 24 फीसदी हिस्सा ही सिंचित है। यही स्थिति पीने के पानी को लेकर है।

प्रदेश में 169 नगरीय निकायों में से अधिकांश निकाय में गर्मी के मौसम में ग्राउंड वॉटर लेवल इतना नीचे चला जाता है कि हैंडपंप, बोरवेल और कुएं आदि सूख जाते हैं। अधिकांश निकायों में पीने के पानी के लिए भूमिगत जल का उपयोग किया जाता है। लेकिन इस भूमिगत जल को रिचार्ज करने की व्यवस्था नहीं होने के कारण गर्मी में पानी को लेकर मारा-मारी के हालात बनते हैं।

केवल 2 फीसदी पानी पीने लायक

प्रदेश में उपलब्ध पानी का केवल 2 फीसदी पानी पीने योग्य है। बड़े शहरों में जलआवर्धन योजना के तहत नदियों का पानी फिल्टर प्लांट के सहयोग से साफ करके लोगों को नलों के जरिए वितरित किया जा रहा है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी कुएं, तालाब और नदियों पर निर्भरता है। ग्राउंड वॉटर लेवल कम होने पर कुएं सूख जाते हैं। लेकिन तालाब और नदियों का पानी पिछले 15 सालों में हुए औद्योगीकरण, शहरीकरण और शहरों से निकलने वाली गंदगी को जलस्रोतों में बहाने के कारण बुरी तरह प्रदूषित हैं।

पीने के पानी के लिए ढाई लाख हैंडपंप

राज्य सरकार ने स्वच्छ और सुरक्षित पेयजल के लिए छत्तीसगढ में 2,44,218 हैंडपंपों की स्थापना की है। बीते पांच वर्षों में 46 हजार नए हैंडपंपों की स्थापना की गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में 2414 नल जलप्रदाय योजनाओं के माध्यम से स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति की शुरू की है। दुर्गम, अविद्युतीकृत एवं आदिवासी अंचलों में 1100 से अधिक सोलर पंपों के माध्यम से स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था की गई है।

पानी की सफाई भी

प्रदेश में 1252 लौह निवारण संयंत्रों, 227 फ्लोराइड निवारण संयंत्रों और 83 आरओ के माध्यम से भूमिगत जल में मौजूद अवांछित खनिजों को दूर कर स्वच्छ और सुरक्षित पेयजल की आपूर्ति की जा रही है। इसी तरह भूजल संवर्धन के लिए 39 स्टॉपडेमों, 119 चेकडेमों एवं 19 परकोलेशन टैंकों का निर्माण किया गया है।चलित प्रयोगशाला के माध्यम से गांव-गांव में जल की गुणवत्ता की जांच भी हो रही है।

अब जाग रहे लोग

प्रदेश के रायपुर नगर निगम ने भूजल को रिचार्ज करने के लिए रेनवॉटर हार्वेस्टिंग को अनिवार्य कर दिया है। सरगुजा, दुर्ग और राजनांदगांव जिले में इस पर काफी काम हुआ है। ग्रामीण क्षेत्रों में पद्मश्री फूलबासन यादव ने नारी और नीर के माध्यम से एक लाख महिलाओं का नेटवर्क तैयार किया है जो गांव-गांव जाकर हैंडपंपों के पास वॉटर रिचार्ज करने के लिए यूनिट का निर्माण कर रहा है। यह योजना पूरे प्रदेश में शुरू करने की तैयारी है।

दुनिया में पानी का हिसाब

धरती पर पानी - 1385.5 क्यूबिक किलो मीटर

खारा पानी - 97.3 फीसदी

मीठा पानी- 2.7 फीसदी

ध्रुवी क्षेत्रों में बर्फ के रूप में जमा- 75.2 फीसदी

ग्राउंड वॉटर- 22.6 फीसदी

फ्रेश वॉटर- 2.2 फीसदी

भारत में पानी का हिसाब

पानी

(एमसीएम) भारत छत्तीसगढ़ फीसदी

सतही जल 1869000482963.2

ग्राउंड वॉटर 435420145483.17

छत्तीसगढ़ में पानी का हिसाब

कुल बारिश - 1400 एमएम

नदियों मे बह जाता है- 80 फीसदी

बांध, तालाब व नदियों में बचता है - 20 फीसदी

सतही जल- 48296 एमसीएम

उपयोगी जल- 41720 एमसीएम

अभी उपयोग हो रहा- 18249 एमसीएम - 38 फीसदी

ग्राउंड वॉटर- 14548 एमसीएम

उपयोग हो रहा- 18.31 फीसदी

* एमसीएम यानी मिलियन क्यूबिक मीटर

रिवर सिस्टम

महानदी बेसिन - 75858 वर्ग किमी 56.2 फीसदी

गोदावरी बेसिन- 38694 वर्ग किमी 28.6 फीसदी

गंगा बेसिन- 18407 वर्ग किमी13.06 फीसदी

नर्मदा बेसिन - 744 वर्ग किमी 0.06 फीसदी

ब्रम्हनी बेसिन - 1394 वर्ग किमी1.00 फीसदी

कुल- 1,35,097 वर्ग किमी