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सूचना के दायरे में आते हैं चीफ जस्टिस : हाईकोर्ट

नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो : दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि भारत के प्रधान न्यायाधीश का पद सूचना के अधिकार कानून के दायरे में आता है। अपने 88 पन्नों के फैसले में चीफ जस्टिस अजीत प्रकाश शाह, जस्टिस विक्रमजीत सेन और जस्टिस डा.एस.मुरलीधर की फुल बेंच ने कहा कि न्यायिक स्वतंत्रता किसी न्यायाधीश का विशेषाधिकार नहीं, बल्कि उसे सौंपी गई जिम्मेवारी है।

हाईकोर्ट का यह फैसला देश के प्रधान न्यायाधीश के.जी.बालाकृष्णन के लिए एक निजी धक्के के रूप में देखा जा रहा है, जो लगातार कहते रहे हैं कि उनका पद पारदर्शिता कानून के दायरे में नहीं आता। वह इस कानून के तहत न्यायाधीशों की संपत्तिायों की घोषणा जैसी सूचना प्रकट नहीं कर सकते हैं।

मंगलवार को हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एपी शाह की अध्यक्षता वाली फुल बेंच ने कहा कि प्रधान न्यायाधीश एक लोक प्राधिकार हैं और उच्चतर न्यायपालिका को अपनी संपत्तिके ब्यौरे को सार्वजनिक करना चाहिए, क्योंकि वे निचली अदालतों के न्यायिक अधिकारियों से कम जवाबदेह नहीं हैं। जो सेवा नियमों के तहत संपत्तिकी घोषणा के लिए बाध्य हैं। हाईकोर्ट की फुल बेंच ने सुप्रीम कोर्ट की वो दलील खारिज कर दी जिसमें इस आधार पर प्रधान न्यायाधीश के पद को आरटीआई अधिनियम के दायरे में लाने का जोरदार विरोध किया गया था कि इससे न्यायिक स्वतंत्रता का अतिक्रमण होगा।

फैसला में कहा गया है कि न्यायिक स्वतंत्रता किसी न्यायाधीश का विशेषाधिकार नहीं, बल्कि ये कानून और साक्ष्य के आधार पर ईमानदारी और निष्पक्षता से निर्णय करने के लिए प्रत्येक न्यायाधीश पर डाली गई जिम्मेदारी है।

खचाखच भरे कोर्ट रूम में चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली फुल बेंच ने न्याय पालिका में पारदर्शिता लाने के लिए एक कदम आगे बढ़ते हुए ये ऐलान किया कि दिल्ली हाईकोर्ट के सभी न्यायाधीश अगले एक हफ्ते के भीतर अपनी संपत्तिका ब्यौरा सार्वजनिक करेंगे।

गौरतलब है कि दिल्ली हाईकोर्ट का ये फैसला शीर्ष अदालत द्वारा दायर की गई अपील पर आया। अपील में बीती दो सितंबर 09 को हाईकोर्ट के सिंगल बेंच के उस फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसमें बेंच ने कहा था कि प्रधान न्यायाधीश एक सार्वजनिक प्राधिकार हैं और उनका पद सूचना के अधिकार कानून के दायरे में आता है। हाईकोर्ट ने कहा कि न्यायिक पदक्रम जितने ऊपर हों, उनके साथ उतने ही बड़े स्तर की जवाबदेही और सख्त छानबीन की जरूरत महसूस की जाती है। फैसले में कहा गया है कि एक न्यायाधीश के ईमानदारी और निष्पक्षता से इस तरह के स्तर के भटकाव से उन्हें सौंपे गए विश्वास पर आघात होगा। न्यायपालिका से जुड़ा घोटाला किसी कार्यकारी या विधायिका के किसी सदस्य की संलिप्तता वाले घोटाले के मुकाबले हमेशा से अधिक निंदनीय रहा है। अदालत में अनियमितता या अनुपयुक्तता का छोटा सा संकेत अत्याधिक सतर्कता जगाता है।

अदालत ने सुप्रीम कोर्ट की वह अर्जी भी खारिज कर दी, जिसमें कहा गया था कि अन्य न्यायाधीशों से जुड़ी जानकारी की प्रकृति गोपनीय है और प्रधान न्यायाधीश ऐसी जानकारी का खुलासा नहीं कर सकते हैं। बहरहाल, शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री इस फैसले को अब सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने वाली है।

मालूम हो कि संपत्तिके मुद्दे पर जनमत बढ़ने के कारण बीती दो नवंबर को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और अन्य न्यायाधीशों ने स्वेच्छा से अपनी संपत्तिकी घोषणा कर विवरण आधिकारिक वेबसाइट पर डाल दिए थे।

अपने ऐतिहासिक फैसले में हाईकोर्ट ने कहा कि विधायिक का कोई सदस्य या प्रशासक राष्ट्र की बुनियाद को जाहिरा तौर पर खतरे में डाले बिना भ्रष्टाचार के मामले में दोषी करार दिया जा सकता है। लेकिन एक न्यायाधीश को न्यायपालिका की निष्पक्षता और स्वतंत्रता के संरक्षण तथा जनता का भरोसा बनाए रखने के लिए खुद को संदेह से पूरी तरह ऊपर रखना चाहिए।