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सूरज की किरणों से बंधती एक उम्मीद-- विजय कुमार चौधरी

दुनिया अब फिर से सूरज की ओर देख रही है। फॉसिल फ्यूल के प्रदूषण से परेशान और ग्लोबल वार्मिंग की आशंकाओं से चिंतित दुनिया की सारी उम्मीदें अब सूर्य के प्रकाश पर ही टिक गई हैं। 11 फरवरी को नई दिल्ली में भारत और फ्रांस द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (इंटरनेश्नल सोलर एलायंस) के पहले शिखर सम्मेलन को इसी दृष्टि से देखे जाने की जरूरत है। यह सम्मेलन टिकाऊ विकास व नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में सौर ऊर्जा के महत्व को भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के सामने लाने में कामयाब रहा। जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के मामले में सौर ऊर्जा के उपयोग को सबसे उपयुक्त माना जाता है। अच्छी बात यह है कि इस सम्मेलन के बहाने भारत को सौर ऊर्जा के मामले में विश्व में अग्रणी भूमिका निभाने का अवसर मिला है।


भारतीय संस्कृति में सूर्य को वैसे भी बह्मांड की आत्मा व सभी जीवों का पोषणकर्ता बताया गया है। व्यावहारिक दृष्टिकोण से भी सूर्य से प्राप्त गरमी और रोशनी ही हमारे जीवन या अस्तित्व का मुख्य आधार भी है। सूर्य की उष्णता से ही वातावरणीय जल चक्र अनुरक्षित होता है, जो फिर विभिन्न ऋतुओं का कारक बनता है। ये ऋतुएं ही हमारे कृषि का मुख्य आधार हैं, जो हमारे देश की अर्थव्यवस्था का मेरुदंड है। सूर्य की रोशनी से ही हरे पेड़ पौधे प्रकाश का संश्लेषण करते हैं, जिससे सभी जीवों के लिए ऑक्सीजन बनती है और यह हमारी भोजन शृंखला का आधार भी है, जबकि हमारी पारंपरिक सोच यह कहती है कि सूर्य न सिर्फ नौ ग्रहों के प्रमुख हैं, बल्कि उन्हें प्रत्यक्ष देव की संज्ञा दी गई है। दूसरी तरह से देखें, तो किसी चीज की अहमियत उसकी अनुपस्थिति में ज्यादा महसूस होती है। यह बात सूर्य के साथ सटीक रूप से लागू होती है। अगर दो-चार दिन भी सूर्य दर्शन न दे, तो जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। अब जिसके बिना जीवन अस्त-व्यस्त हो जाए, वही तो जीवन का मुख्य आधार होता है। सौर प्रणाली में गड़बड़ी होने से मौसमी चक्र भी प्रभावित होता है, जिसका सीधा कुप्रभाव फसलों पर पड़ता है।


भारतीय संस्कृति की यही सोच है, जिसके चलते सूर्योपासना की परंपरा हमारे यहां आदि काल से चली आ रही है। आधुनिक काल में हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सूर्य को ऊर्जा के अक्षय स्रोत के रूप में देखते हैं, परंतु शायद इसका भान हमारे पूर्वजों को भी इसी रूप में था। भारत के कई पर्व, यथा पोंगल, मकर संक्रांति, छठ, रथ सप्तमी आदि सूर्य की पूजा से ही संबंधित हैं। वैसे भी आज सूर्य ही है, जो अविजित है और इसके नजदीक तक पहुंच पाने की तकनीक हम विकसित नहीं कर पाए हैं। इस लिहाज से आधुनिक काल में भी सूर्य की पूजा सबसे अधिक प्रासंगिक है। हमें यह भी समझना होगा कि विज्ञान की सीमा जहां समाप्त होती है, वहीं से प्रकृति की सत्ता का प्रारंभ होता है। आज विज्ञान तरक्की के चाहे जिस मुकाम पर हो, प्रकृति के सारे रहस्यों के उद्भेदन अथवा परिभाषित करने की क्षमता नहीं ग्रहण कर पाया है। प्रकृति में ऊर्जा या संसाधनों का भंडार पड़ा है, जिसे हम अपनी ज्ञान की सीमा तक ही उपयोग कर पाते हैं।


अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन की घोषणा पेरिस जलवायु शिखर वार्ता में की गई थी, जिसमें 121 देशों ने हिस्सा लिया था। फिर जनवरी 2016 में भारत के प्रधानमंत्री और फ्रांस के राष्ट्रपति ने संयुक्त रूप से इस गठबंधन के मुख्यालय की आधारशिला गुड़गांव में रखी थी। अब दिल्ली में ही इस गठबंधन के पहले अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन होने की अपनी अहमियत है। इस सम्मेलन में विभिन्न देशों के प्रतिनिधियों ने अपनी कुल ऊर्जा खपत में सौर ऊर्जा के प्रतिशत को बढ़ाने का संकल्प लिया और इसके साथ ही दिल्ली सौर कार्यक्रम की भी घोषणा की।


संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम यानी यूएनडीपी द्वारा कराए गए विश्व ऊर्जा आकलन के मुताबिक, साल 2012 में पूरी दुनिया की वार्षिक ऊर्जा खपत लगभग 560 एक्साजूल्स (ऊर्जा मापने की एक मीट्रिक इकाई) थी, जबकि दुनिया को प्रतिवर्ष लगभग 1,600 से लेकर 45,000 एक्साजूल्स तक सौर ऊर्जा प्राप्त होती है। हम इससे अंदाज लगा सकते हैं कि अगर सौर ऊर्जा के मानवीय उपयोग हेतु हमने प्रभावी तकनीक विकसित कर ली, तो पूरे विश्व में इससे ऊर्जा क्रांति आ सकती है। आज लगभग हर देश सौर ऊर्जा के क्षेत्र में विभिन्न तकनीक का विकास कर इसे आम लोगों की ऊर्जा खपत का टिकाऊ हिस्सा बनाने में जुटा है। इस हेतु कई तरह की तकनीक और विधाएं उपयोग की जाती हैं, जिनमें सौर तापन यानी सोलर हीटिंग, फोटो वोल्टैक, सौर तापीय ऊर्जा सौर वास्तुकला और कृत्रिम प्रकाश संश्लेषण आदि प्रमुख हैं। भारत ने साल 2022 तक 60 गीगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा था। इसमें अच्छी बात यह है कि यह लक्ष्य निर्धारित समय से चार साल पहले 2018 में ही पूरा कर लिया गया है। अब 2022 तक 100 गीगावाट सौर ऊर्जा पैदा करने का लक्ष्य रख गया है।


किसी भी देश के लिए सौर ऊर्जा के अधिक से अधिक उत्पादन करने का कार्यक्रम बनाना लाजिमी है, क्योंकि यह ऊर्जा का एक स्वतंत्र और कभी न खत्म होने वाला अक्षय स्रोत है। इससे प्रदूषण नियंत्रण में भी सहायता मिलती है और यह ग्लोबल वार्मिंग के निवारण में भी सहायक होता है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार का संतुलन हमेशा प्राकृतिक जीवाश्म ईंधन के आयात से ही बिगड़ता है। इस समस्या का भी निदान सौर ऊर्जा के अधिक से अधिक उत्पादन से हो सकता है। इस दृष्टिकोण से इस क्षेत्र में त्वरित गति से आगे बढ़ना हमारे लिए लाजिमी ही नहीं, अपरिहार्य है।


इस अभियान को प्रभावी बनाने हेतु सरकार ने सौर तकनीक मिशन की भी स्थापना की है, जिसके तहत शोध और अनुसंधान के माध्यम से नई तकनीक विकसित कर सौर ऊर्जा के अधिकतम उपयोग का लक्ष्य रखा गया है। यह माना जाता है कि आने वाले समय में जो देश इस क्षेत्र में तकनीक विकसित कर महारत हासिल करेगा, वही ऊर्जा के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाएगा। यह एक ऐसा क्षेत्र है, जिससे हमारी सांस्कृतिक जड़ें भी जुड़ी हैं और अब विज्ञान व तकनीक के क्षेत्र में दुनिया में अपनी श्रेष्ठता साबित कराना ही हमारे लिए चुनौती है। (ये लेखक के अपने विचार हैं)