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'सोयाबीन की पेटी' आधी खाली, एक बीघा में सिर्फ दो क्विंटल पैदावार

जितेंद्र यादव, इंदौर। सोयाबीन की पेटी माने जाने वाले मालवा के बड़े हिस्से में इस बार सोयाबीन का उत्पादन आधा रह जाएगा। एक हेक्टेयर में औसत पैदावार सिर्फ 7-8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर यानी एक बीघा में केवल दो क्विंटल।

ये सरकार के फसल कटाई प्रयोग से निकले आंकड़े हैं, जबकि हकीकत तो इससे भी भयावह है। कई किसानों का तो बीज भी लौटकर नहीं आया। सोयाबीन अनुसंधान केंद्र के अनुसार, पूरी तस्वीर तो सर्वे और अध्ययन के बाद ही साफ होगी, लेकिन प्रदेश में सोयाबीन का औसत उत्पादन इस साल 45 लाख टन ही रहने की आशंका है, जबकि पिछले सालों में यह 60 लाख टन तक रहा है।

इंदौर संभाग में इस साल करीब 9 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सोयाबीन बोया गया है। पैदावार के अब तक के आंकड़े बताते हैं कि अधिकांश जगह उत्पादन आधा रहने की आशंका है। संभाग के इंदौर, धार, खंडवा, खरगोन, झाबुआ और आलीराजपुर जिले में सोयाबीन बोया जाता है। इनमें सर्वाधिक नुकसान इंदौर और धार जिलों में हुआ है।

इंदौर जिले में खेती का कुल रकबा 2 लाख 46 हजार हेक्टेयर है। इसमें से सर्वाधिक 2 लाख 22 हजार हेक्टेयर में सोयाबीन बोई गई है। जिले में पिछले साल सोयाबीन की औसत पैदावार 14.30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर थी, जो इस साल घटकर 8 क्विंटल रह गई, यानी पिछले साल की तुलना में ये लगभग आधी है।

इंदौर जिले में करीब 3500 खेतों में फसल कटाई का प्रयोग किया गया। इंदौर, सांवेर और महू तहसीलों में अधिक नुकसान सामने आया है। धार में सोयाबीन को 30 फीसदी नुकसान का अनुमान लगाया है। यही हाल खंडवा, खरगोन और झाबुआ जिलों का भी है।

अगले साल रकबा घटने का अनुमान

माना जा रहा है कि लगातार दूसरे साल सोयाबीन की फसल पर कुदरत की मार होने से अगले साल प्रदेश में सोयाबीन का रकबा घट सकता है। फिलहाल प्रदेश में 60-63 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सोयाबीन बोई जाती है।

सोयाबीन की फसल इस बार परेशानी में रही। पहले बारिश की लंबी गैप के कारण और बाद में लगातार बारिश से। इस दौरान येलो मोजेक वायरस का भी भारी प्रकोप रहा जो प्रदेश में पहली बार बड़े पैमाने पर देखा गया। अनुसंधान केंद्र इस बात का अध्ययन कर रहा है कि आखिर फसल पर और कौन-सी बीमारियां रहीं और उत्पादन गिरने के क्या कारण हैं। - डॉ. वीएस भाटिया, निदेशक, राष्ट्रीय सोयाबीन अनुसंधान केंद्र

इंदौर संभाग में सोयाबीन के नुकसान के आंकड़े अभी पूरी तरह सामने नहीं आए हैं। अलग-अलग जिलों से मंगवाए जा रहे हैं, लेकिन यह तय है कि नुकसान हुआ है। कुछ दिन बाद और तस्वीर साफ होगी। - सतीश अग्रवाल, संयुक्त संचालक, कृषि