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सोशल ऑडिट से भ्रष्टाचार पर अंकुश - भरत डोगरा

सरकार की ओर से विकास कार्यों की विभागीय जांच तो होती ही रहती है और इसकी सीमाएं भी अब स्पष्ट हो चुकी हैं। पर यदि विकास कार्यों की जांच और मूल्यांकन उस समुदाय की भागीदारी से की जाए, जिसके लिए ये कार्य किए जाते हैं, तो उसके कहीं बेहतर परिणाम मिल सकते हैं। विशेषकर ग्रामीण विकास सुधारने के संदर्भ में तो सामाजिक अंकेक्षण के कुछ बहुत अच्छे उदाहरण, सरकारी व गैर-सरकारी, दोनों प्रयासों से सामने आए हैं।

सोशल ऑडिट की बुनियादी बात यह है कि किसी गांव या मोहल्ले में विकास का पैसा कैसे खर्च हो रहा है, उसके बारे में पूरा समुदाय सचेत हो व स्थिति सुधारने के लिए सक्रिय हो। वे विकास व रोजगार कार्यों की जांच करें, इसके बारे में सूचना प्राप्त करें तथा सरकारी रिकॉर्ड से वास्तविक स्थिति का मिलान कर अगर किसी तरह का भ्रष्टाचार हो, तो उसे पकड़ें। फिर इसके बारे में जनसुनवाई करें। इसमें कई बार तो भ्रष्टाचारियों से पैसा वापस हासिल करने का प्रयास भी सफलतापूर्वक किया गया है।

राजस्थान में मजदूर किसान शक्ति संगठन ने अनेक वर्षों से ऐसे प्रयास किए कि गांववासियों की सामूहिक क्षमताओं को गांवों के विकास कार्यों के मूल्यांकन व हिसाब-किताब के लिए उपयोग किया जाए। जनसुनवाइयों के दौरान अनेक गांववासियों ने समूह बनाकर जगह-जगह जांच की कि जो सरकारी कागजातों में दिखाया गया है, उस विकास कार्य की या उसके लिए दी गई मजदूरी की वास्तव में क्या स्थिति है। इसी क्षमता व अनुभव का उपयोग आगे चलकर अधिक व्यापक स्तर पर सामाजिक अंकेक्षण या सोशल ऑडिट के लिए किया गया।

इसके मूल में यह भावना है कि सामाजिक महत्व के कार्यों की जानकारी समाज के सभी सदस्यों के लिए उपलब्ध हो तथा वे उसका उपयोग जांच व मूल्यांकन के लिए करें। लोककल्याण के लिए जो कार्य होते हैं, उसके रिकॉर्ड को भी उनके लिए एक रहस्य बना दिया गया था, पर सामाजिक अंकेक्षण के दौर में जानकारी प्राप्त करना, उसे समझना व उसका उपयोग सबके हित में करना गांववासियों ने सीखा। सूचना के अधिकार का कानून बनने के बाद सोशल ऑडिट की संभावना बहुत बढ़ गई।

राजस्थान में विभिन्न संगठनों ने विकास कार्यों में भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया, तो 2002 में राज्य सरकार ने सबसे अधिक खर्च करने वाली कुछ पंचायतों में सोशल ऑडिट की घोषणा की। इस पहल का सामाजिक संगठनों ने स्वागत करते हुए कुछ पंचायतों के सोशल ऑडिट में सहायता भी की। वर्ष 2006 में देश के विभिन्न भागों के लगभग 165 संगठनों की भागेदारी से डूंगरपुर जिले के लगभग 800 गांवों में सामाजिक अंकेक्षण का महत्वपूर्ण अभियान चला।

इस तरह के अभियानों से निचले स्तर पर भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में समाजिक अंकेक्षण की बढ़ती सफलता से निहित स्वार्थी तत्व घबरा गए। नतीजतन बांसवाड़ा में जब सामाजिक अंकेक्षण का व्यापक प्रयास किया गया, तो अनेक स्वार्थी तत्वों ने इसका बहुत विरोध किया। झालावाड़ में तो सोशल ऑडिट टीम पर हमला भी किया गया। सामाजिक अंकेक्षण से जुड़े लोगों पर इन बढ़ते खतरों के बीच मजदूर किसान शक्ति संगठन व 52 अन्य संगठनों ने मिलकर सूचना और रोजगार अभियान की स्थापना की, ताकि वे अपनी एकता के बल पर इस महत्वपूर्ण कार्य को तमाम बाधाओं के बावजूद जारी रख सकें।

उधर आंध्र प्रदेश सरकार ने भी सोशल ऑडिट का बहुत असरदार उपयोग पंचायतों में किया है। इसके आधार पर करोड़ों रुपये के भ्रष्टाचार को न केवल पकड़ा गया, अपितु भ्रष्टाचारियों से काफी धन वापस वसूला भी गया।
ऐसे वक्त में जब भ्रष्टाचार हमारी सामाजिक संरचना में गहरे पैठ गया है, सोशल ऑडिट की प्रासंगिकता बढ़ गई है। इससे न केवल विकास कार्यों की गुणवत्ता में सुधार आ सकता है, बल्कि निचले स्तर के भ्रष्टाचार पर भी प्रभावी अंकुश लगाया जा सकता है।