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सौर ऊर्जा की मदद से बनाया स्वच्छ तरल ईंधन

रांची : सौर ऊर्जा के इस्तेमाल पर अभी चर्चा चल ही रही थी कि हार्वर्ड के एक शोध दल ने ऐसी खोज कर डाली है, जो स्वच्छ ईंधन की दुनिया में क्रांति ला सकता है. वैज्ञानिकों ने एक कृत्रिम पत्ती ‘बायोनिक लीफ' विकसित की है. इसकी मदद से कृत्रिम प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के जरिये तरल ईंधन बनाया है. वैज्ञानिकों का दावा है कि यह बेहद सस्ता होगा, जिससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होगा.

हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डैनियल नोसेरा और हार्वर्ड के ही विस इंस्टीट्यूट की पामेला सिल्वर के अलावा हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में बायोकेमिस्ट्री एंड सिस्टम बायोलॉजी के प्रो एलियट टी और ओनी एच एडम्स ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है, जिसमें सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करते हुए वाटर मॉलीक्यूल्स के विघटन और हाइड्रोजन खानेवाली बैक्टीरिया की मदद से तरल ईंधन तैयार होता है. 

‘साइंस' पत्रिका में चोंग लियु और ब्रेंडन कोलोन में छपी शोध रिपोर्ट के मुताबिक, बायोलीफ से तैयार तरल ईंधन विश्व के लिए वरदान साबित हो सकता है. इस तकनीक से ग्लोबल वार्मिंग से निबटने में मदद मिलेगी, बड़े पैमाने पर अनाज की खेती के लिए जमीन भी उपलब्ध होंगे, क्योंकि तब जैव ईंधन (बायो फ्यूल) के लिए मक्के और ईख की बड़े पैमाने पर खेती करने की जरूरत नहीं रहेगी. इस समय विश्व के कुल कृषि योग्य भूमि में से चार फीसदी भू-भाग पर बायो फ्यूल के लिए खेती होती है.

हार्वर्ड विश्वविद्यालय के शोध दल की यह तकनीक तेल के कुओं की जरूरत समाप्त कर देगी. धरती को लगातार गर्म करनेवाली ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से बचायेगी. विश्व भर के देशों के लोगों को सरकार द्वारा कार्बन उत्सर्जन पर लगाये जानेवाले टैक्स से निजात मिल जायेगी. नोसेरा कहते हैं कि निवेशकों को ‘बायोनिक लीफ' में निवेश के लिए आकर्षित किया जायेगा. 

निवेशकों को बताया जायेगा कि इस तकनीक से ऊर्जा बनाने में लागत कम और बचत ज्यादा होगी, क्योंकि यह जैव ईंधन और फॉसिल फ्यूल (ईंधन, जो खदानों से निकाले जाते हैं) से सस्ता होगा.

शोध के दौरान आयी कई चुनौतियां

सौर ऊर्जा की मदद से आइसोप्रोपेनोल तैयार करने की विधि की खोज के दौरान शोध दल को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. उन्होंने हाइड्रोजन तैयार करने के लिए एक निकल-मॉलीब्डेनम-जिंक एलॉय का कैटलिस्ट के तौर पर इस्तेमाल किया, जिससे रियैक्टिव ऑक्सीजन स्पेसीज और मॉलीक्यूल्स भी तैयार हुए, जिन्होंने बैक्टीरिया के डीएनए को नष्ट कर दिया.

इस समस्या से निबटने के लिए वैज्ञानिकों ने असामान्य रूप से हाइ वोल्टेज पर काम किया, जिससे इसकी दक्षता घट गयी. इस समस्या से निबटने के लिए शोध दल ने कोबाल्ट-फॉस्फोरस एलॉय कैटलिस्ट तैयार किया, जो रियैक्टिव ऑक्सीजन स्पेसीज नहीं बनाता. इसके बाद वैज्ञानिकों ने लो वोल्टेज पर काम किया और इसके चमत्कारिक परिणाम सामने आये. 

इसके केमिकल डिजाइन की सबसे खास बात यह थी कि यह अपनी रक्षा खुद कर सकता था. यानी मेटेरियल के सॉल्यूशन में तब्दील होने का खतरा नहीं रह गया. नौसेरा कहते हैं कि इस सिस्टम में सोलर एनर्जी को बायोमास में तब्दील करने की क्षमता 10 फीसदी है, जो सबसे तेजी से बढ़नेवाले पौधे की एक फीसदी क्षमता से बहुत ज्यादा है. क्षमता विस्तार के साथ-साथ वैज्ञानिक इस सिस्टम के पोर्टफोलियो में आइसोबुटानोल और आइसोपेंटानोल को समाहित करने में भी सफल हुए. दल ने इस सिस्टम की मदद से बायो-प्लास्टिक प्रीकर्सर (पीएचबी) भी तैयार किया.

क्या है बायोनिक लीफ

एक कृत्रिम पत्ता, जो सौर ऊर्जा की मदद से वाटर मॉलीक्यूल्स और हाइड्रोजन का भक्षण करनेवाली बैक्टीरिया के विघटन से तरल ईंधन तैयार होता है. ‘बायोनिक लीफ 2.0' कैटलिस्ट का काम करता है. इससे पहले चीन के शोध दल ने बायोनिक लीफ प्रदर्शित किया था, जो दूषित पानी में घुले विषाक्त पदार्थों को नष्ट कर देता है.

ऐसे करता है काम

‘बायोनिक लीफ 2.0' सोलर पैनल की मदद से वाटर मॉलीक्यूल्स को ऑक्सीजन और हाइड्रोजन में तब्दील कर देता है. पानी से अलग होने के बाद हाइड्रोजन एक चैंबर में चला जाता है, जहां बैक्टीरिया इसे खा लेते हैं और एक विशेष मेटल कैटलिस्ट एवं कार्बन डाइ-ऑक्साइड की मदद से चलनेवाली प्रक्रिया से तरल ईंधन तैयार होता है. यह पूरी प्रक्रिया फोटोसिंथेसिस (प्रकाश संश्लेषण) का कृत्रिम वर्जन है.

‘बायोनिक लीफ 2.0' के फायदे
-यह बेहद सस्ते मटेरियल से तैयार किया गया है
-यह न्यूट्रल पीएच (नल का पानी) पर ऑपरेट करता है
-साधारण सोलर पैनल के जरिये भी इसे ऑपरेट किया जा सकता है