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स्कूली स्तर पर कृषि शिक्षा को बढ़ावा क्यों नहीं-उमेश्वर कुमार

कहने को भारत कृषि प्रधान देश है। पर बात जब कृषि शिक्षा की आती है, तो सूरत अलग नजर आती है। हायर सेकेंडरी स्तर पर कृषि के पाठ्यक्रम में होने के बावजूद इस पर न सरकार का ध्यान है, न ही पढ़ने-पढ़ाने वालों का। स्कूल के बाद पढ़ाई जारी न रखने वाले अधिकांश छात्र खेती-किसानी में लग जाते हैं। लेकिन इसके लिए न तो उन्हें औपचारिक ज्ञान होता है, न कोई प्रशिक्षण। परंपरागत तौर पर जो कुछ सीखा, वही उसका ज्ञान है।

सीबीएसई के अलावा कई राज्यों के स्कूल शिक्षा बोर्ड ने कृषि को पाठ्यक्रम में शामिल किया है। वैकल्पिक विषय होने के अलावा कृषि बागवानी के रूप में वोकेशनल कोर्स में भी मौजूद है। मगर हायर सेकेंडरी स्तर पर दो फीसदी से भी कम छात्र कृषि की पढ़ाई करते हैं। कृषि क्षेत्र की तस्वीर बदलनी है, तो हाई स्कूल स्तर पर पाठ्यक्रम में कृषि की पढ़ाई को फोकस में लाना होगा।

वर्ष 1968 में पहली शिक्षा नीति घोषित हुई थी, जिसमें सभी राज्यों में एकल कैंपस वाला कम से कम एक कृषि विश्वविद्यालय बनाने की बात प्रमुख थी। 1992 में नई शिक्षा नीति के संशोधित स्वरूप में ग्रामीण विश्वविद्यालयों की अवधारणा पेश हुई। पर हाई स्कूल स्तर पर कृषि शिक्षा को वरीयता नहीं दी गई।

1992 में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) को स्कूली पाठ्यक्रम निर्धारण की जिम्मेदारी मिली। जुलाई, 2004 में इसने सिर्फ पाठ्यक्रम में संशोधन की संस्तुति की और बाद में नेशनल स्टीयरिंग कमेटी बनाई। कमेटी ने पाठ्यक्रम में विज्ञान, गणित, भारतीय भाषा, अंग्रेजी, समाज विज्ञान, सीखने की कला और परिवेश, नृत्य, नाटक और संगीत को शामिल किया, पर कृषि को इसमें स्थान नहीं मिला। 2005 के नेशनल कैरिकुलम फ्रेमवर्क (एनसीएफ) में वर्क एजुकेशन पर जोर दिया गया। अगला एनसीएफ 2015 में होना है। कृषि क्षेत्र में रोजगार की संभावनाओं और कौशल विकास के दौर में क्या इस बार कृषि को फोकस में नहीं लाया जाना चाहिए? हाई स्कूल स्तर पर उद्यमशीलता को कोर्स में शामिल करने की वकालत हो रही है। कृषि शिक्षा के साथ उद्यमशीलता को जोड़ने से आश्चर्यजनक परिणाम निकल सकते हैं।

आज हायर सेकेंडरी स्तर पर वही लोग कृषि की पढ़ाई करते हैं, जिन्हें कॉलेज में इसकी पढ़ाई करनी होती है। पर कृषि के अधिकांश ग्रेजुएट भी खेती के लिए इसकी पढ़ाई नहीं करते। वे उच्च शिक्षा और रोजगार के लिए इस क्षेत्र में आते हैं। हायर सेकेंडरी स्तर पर अच्छे सिलेबस, रोजगारपरक प्रैक्टिकल के साथ इस विषय की पढ़ाई करवाई जाए, तो कृषि के बारे में बुनियादी जानकारी होने के कारण इन सभी माध्यमों के प्रति युवाओं की रुचि बढ़ेगी। कृषि शिक्षा के क्षेत्र में सरकारी कोशिशों के अलावा जनमत बनाने की भी जरूरत होगी। सरकार विशेष किसान टीवी चैनल शुरू करने जा रही है। दूरदर्शन और रेडियो के अलावा टोल फ्री नंबर पर कृषि जानकारी सरकार उपलब्ध करा रही है। लेकिन, सबसे बड़ी चुनौती यह है कि इसका लक्ष्य समूह इन जानकारियों का समुचित लाभ नहीं ले पा रहा।