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'स्मार्ट सिटी' से हम क्या समझें? - डॉ. पीके चांदे

हमारे देश के राष्ट्रीय एजेंडे में 'स्मार्ट सिटी" को लेकर चर्चा होने लगी है। हालांकि हमारे विकास मॉडल अभी भी पूरी तरह स्पष्ट और नियोजित नहीं हैं। हम विकास के मामले में अपने पड़ोसियों से होड़ तो लेना चाहते हैं, लेकिन संभवत: जापान जैसे विकसित देशों के कुछ रेडीमेड मॉडलों को अपनाते हुए। क्या हम भूल रहे हैं कि हमारी स्थानीय परिस्थितियां जुदा हैं और इस तरह की पुनर्संयोजन व्यवस्था से हमें नाकामी भी हाथ लग सकती है?

पारंपरिक तौर पर हमारे देश में विकास मॉडल को लेकर यही समझ रही है कि शीर्ष स्तर पर 'नीतिगत निर्णय" लिए जाते हैं और फिर इन नीतियों को लागू करने के लिए राज्यस्तर पर मदद पहुंचाई जाती है। लेकिन विकास के इस दृष्टिकोण को लेकर हो सकता है कि व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार, सुस्ती, जवाबदेही की कमी जैसे कारकों के चलते हमारे प्रयासों में दिक्कतें आएं हैं और हम अच्छे नतीजे न दे पाएं। पारंपरिक तौर पर हमने हमेशा यह भी माना कि शहरी विकास का मतलब सिर्फ बुनियादी ढांचे का विकास है। जब हम विकसित देशों को देखते हैं तो हमें सबसे पहले उनकी अधोसंरचनाएं ही नजर आती हैं और उनमें निहित सुविधाओं से हम प्रभावित होते हैं। संभवत: हम यह नहीं समझ पाते कि स्मार्ट दिखने वाले इन शहरों के पीछे एक समर्पित, मेहनती, बेहतरीन प्रक्रियाओं वाली और समाज की भागीदारी से चलने वाली कार्य-संस्कृति है। किसी शहर को स्मार्ट बनाने के लिए इस तथ्य पर गौर करना जरूरी है।

इस तरह स्मार्ट सिटी के लिए अहम सवाल यह है कि क्या हम चमचमाची इमारतें, सड़कें, मॉल्स इत्यादि बनाना चाहते हैं? या फिर हम समाज के कामकाज को ज्यादा स्मार्ट बनाना चाहते हैं, ताकि एक आत्म-निर्भर, दीर्घकालिक, ज्ञानपरक समाज का निर्माण हो सके, एक ऐसा समाज जो तीव्र विकास के लिए समग्र तौर पर अपने कार्यों को एक सोच के साथ प्रभावी और जिम्मेदारीपूर्ण तरीके से अंजाम दे सके? दूसरे शब्दों में, शहर के विकास के प्रति समग्र सोच अपनाने से ही स्मार्ट सिटी के विकास की राह प्रशस्त होगी। हमें इसे ठीक से समझना होगा, वरना हमारी पारंपरिक सोच के साथ जोखिम यह है कि हमारी तमाम कोशिशें और फंड्स सिर्फ बुनियादी ढांचे और इससे जुड़ी सुविधाओं के निर्माण में ही खप जाएंगी।

देश के मौजूदा शहरों के सदंर्भ में स्मार्ट शहरों के विकास के लिए दो तरह के दृष्टिकोण हैं। एक है, टॉप डाउन दृष्टिकोण और दूसरा बॉटम अप दृष्टिकोण। सरकार द्वारा स्मार्ट सिटी की योजनाओं के बारे में घोषणा करने के बाद शहर विकास प्राधिकरण जैसे स्थानीय निकायों ने बॉटम-अप प्रयास शुरू किए हैं, जहां इस संदर्भ में नागरिकों से सुझाव मंगाए जा रहे हैं। ठेठ भारतीय शहरों के मौजूदा स्तर को देखते हुए जो सुझाव आएंगे, वे सड़क निर्माण, यातायात सुधार, कचरे का निस्तारण, प्रदूषण नियंत्रण, बिजली व जल की आपूर्ति इत्यादि चीजों से संबंधित होगे। ऐसा इसलिए क्योंकि हम अभी भी बुनियादी सुविधाओं के लिए जूझ रहे हैं। यदि हम थोड़ा और बारीकी से देखें तो पाएंगे कि ये गतिविधियां मुख्यत: जरूरी सुविधाओं के विकास से जुड़ी हैं, न कि स्मार्ट शहर के निर्माण से। जबकि हम टॉप-डाउन दृष्टिकोण से सोचें तो विशेषज्ञों द्वारा स्मार्ट सिटी (सोसायटी) के विजन को परिभाषित करते हुए एक उच्चस्तरीय दृष्टिकोण बनाया जा सकता है, जिससे एक समग्र स्मार्ट सिटी/स्मार्ट सोसायटी या नॉलेज सोसायटी के निर्माण की राह प्रशस्त होगी।

दुनिया में स्मार्ट शहरों के कई उदाहरण हैं - मसलन सिलिकॉन सिटी के रूप में सैन फ्रांसिस्को व बेंगलुरू, नॉलेज सिटी के रूप में दुबई, इंटरनेशनल ट्रेड हब के रूप में सिंगापुर, ऑटोमोबाइल सिटी के रूप में डेट्रॉयट। एक और उदाहरण देखें - जापान ने काफी समय पहले ही ऐसा वर्चुअल इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार कर लिया था, जहां सरकार, इंडस्ट्री और शैक्षिक समुदाय सरकारी नीतियों का पूरा लाभ उठाने के लिए मिल-जुलकर सक्रिय रूप से काम कर सकते हैं। जहां शैक्षिक ताकतों से इंडस्ट्री का निर्माण हो सकता है और इंडस्ट्री की शक्ति शिक्षा के लिए मददगार हो सकती है। दूसरे शब्दों में, स्मार्ट तरीके से तैयार समाज से ही आगे चलकर एक स्मार्ट सिटी बन सकती है।

इससे पता चलता है कि न सिर्फ इन स्मार्ट शहरों/देशों में बुनियादी सुविधाएं हैं बल्कि इनका अनूठा नैसर्गिक चरित्र है। ऐसा संभव हुआ है एक व्यापक विजन, नीतिगत सहयोग, विशेषज्ञों के जुड़ाव और बेशक एक अंतर्निहित तकनीकी ढांचे (जैसे कि अपने नए अवतार में सूचना व संचार तकनीकी) के जरिए। हमने हालिया चुनावों में देखा कि किस तरह इंटरनेट व सोशल मीडिया राजनीतिक परिदृश्य पर लोगों की राय को प्रभावित कर सकता है। गूगल जैसे सर्च इंजन और आधुनिक मोबाइल एप्लिकेशंस दुनिया को तेजी से आगे ले जा रहे हैं।

हमें शहर के हिसाब से संचार व सूचना तकनीक का एक ऐसा फ्रेमवर्क तैयार करना होगा, जो समाज के स्मार्ट बर्ताव में मददगार हो। इसमें शहरी जीवन में क्रांतिकारी बदलाव लाने और दूसरों पर निर्भरता कम करने की जबर्दस्त संभावनाएं हैं। आज सोशल सिस्टम डिजाइंस के प्रति नई सोच से हम न सिर्फ किसी सोसायटी को डाटा/सूचनाओं के प्रभावी इस्तेमाल के लायक बना सकते हैं, वरन प्रभावी निर्णयों के लिए नॉलेज का एक आधार तैयार कर इसे इस्तेमाल भी कर सकते हैं।

इस तरह 21वीं सदी के स्मार्ट शहर सूचना व संचार तकनीक के नए अवतार के साथ बुनियादी सुविधाओं के स्मार्ट संयोजन से निर्मित होंगे। ऐसा करने से ही हमारे स्मार्ट शहर वास्तव में स्मार्ट और निरंतर आगे बढ़ने वाला समाज कहलाने लायक बन सकेंगे। सरकार पारंपरिक मानसिकता से बचते हुए इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए इलेक्ट्रॉनिक निगमों, नॉलेज काउंसिल की तरह एक स्मार्ट सिटी विकास प्राधिकरण जैसा कोई विशेष निकाय तैयार कर सकती है, जो शहरों के स्तर पर मौजूदा व्यवस्था के साथ मिल-जुलकर काम करे।

(लेखक आईआईएम, इंदौर में प्राध्‍यापक रहे हैं। ये उनके निजी विचार हैं )