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स्वच्छ हवा के लिए समग्र सोच-- विवेक चटोपाध्याय

दो दशक से भी पहले से वायु प्रदूषण नियंत्रण के प्रयास किए जा रहे हैं। इस दौरान विभिन्न तरह के फैसले लिए गए, जिनमें जीवाश्म ईंधन के विभिन्न स्रोतों, जैसे उद्योगों, ऊर्जा संयंत्रों और वाहनों आदि से निपटने के प्रयास शामिल हैं। इस तरह के उपायों ने 2006-2007 में प्रदूषण के बढ़ते स्तर को थामने में मदद की। हालांकि उसके बाद वाहनों की संख्या में वृद्धि, सार्वजनिक परिवहन में कमी, शहरों में और उसके आसपास औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि और अन्य कारणों के साथ निर्माण गतिविधियों में बढ़ोतरी के कारण प्रदूषण का स्तर बढ़ता चला गया। दिल्ली के अलावा अधिकांश अन्य बड़े शहरों में भी इसी तरह के रुझान दिखाई दे रहे हैं, क्योंकि वायु प्रदूषण के स्रोतों में वृद्धि और जीवाश्म ईंधन की खपत में बढ़ोतरी के चलते पहले किए गए उपायों का प्रभाव खत्म हो गया है।


जैसे कि दिल्ली ने परिवहन में सीएनजी का उपयोग शुरू किया, अपने निवासियों की रक्षा के लिए उद्योगों को दिल्ली से बाहर स्थानांतरित किया, और उद्योगों व ऊर्जा संयंत्रों में केवल स्वच्छ ईंधन के उपयोग की अनुमति दी। समय के साथ वाहनों के लिए उत्सर्जन मानदंडों को भी सख्त बनाया गया। खुले में कूड़ा और फसलों के अवशेष जलाने पर नियंत्रण के प्रयास तेज हो गए हैं, क्योंकि सर्दियों में वायु प्रदूषण सर्वाधिक दिखने लगा है। हालांकि कई प्रयास पूरी तरह लागू नहीं हुए हैं। प्रदूषक इकाइयों को एक क्षेत्र से दूसरी जगह स्थानांतरित करने से जहां एक क्षेत्र में वायु प्रदूषण का स्तर घटा है, वहीं दूसरे क्षेत्र में बढ़ा है।


कचरा और पुआल जलाने को नियंत्रित करने के प्रयास पूरी तरह लागू नहीं किए गए हैं। कचरे को संसाधनों के रूप में प्रबंधित करने के लिए समग्र प्रयास की जरूरत है। फिलहाल दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में वायु प्रदूषण के कई स्रोत हैं। वाहन, उद्योग, बिजली संयंत्र और ईंट भट्ठे जहां वर्ष भर दिल्ली-एनसीआर की हवा प्रदूषित करते हैं, वहीं कचरा एवं पुआल जलाने से गंभीर रूप से वायु प्रदूषण होता है। जब पूरे वर्ष के लिए उत्सर्जन का अनुमान लगाया जाता है, तब इन असंगत स्रोतों का वायु प्रदूषण में बहुत कम हाथ दिखता है, पर चरम स्थिति में ये स्रोत हवा की गुणवत्ता को तेजी से खराब करते हैं।


वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य का रिश्ता जटिल है-जब वायु प्रदूषण में एक स्रोत के समग्र योगदान से निपटने के प्रयास किए जाते हैं, तब उसके साथ ही निकटस्थ स्रोत के आबादी पर प्रभाव पर विचार करना भी महत्वपूर्ण होता है। मसलन, जब घर में ठोस ईंधन या मिट्टी तेल का उपयोग किया जाता है, तब उत्सर्जन स्तर का महिलाओं पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। दूसरा उदाहरण वाहन हैं। दिल्ली के 21 फीसदी क्षेत्रों में सड़कें हैं। महानगर की 55 फीसदी आबादी सड़कों के तीन सौ से पांच सौ मीटर के दायरे में रहती और काम करती है, जो वाहनों के धुएं के प्रत्यक्ष प्रभाव वाले क्षेत्र में आते हैं। इसलिए शहरों में समग्र परिवेश पर वायु प्रदूषण के भार को कम करने तथा आबादी पर उसके प्रभाव को घटाने की जरूरत है।

इसलिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के सभी राज्यों और शहरों में प्रदूषण नियंत्रण के लिए एक समान सख्त नियम लागू किए जाने चाहिए। अब तक ज्यादातर कार्रवाई दिल्ली में हुई है। जबकि एनसीआर क्षेत्र में सार्वजनिक परिवहन संपर्क खराब है, उद्योगों के लिए गंदे जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कायम है, ईंट भट्ठे हैं, डीजल चालित जेनरेटर इस्तेमाल होते हैं। अतः सुरक्षित हवा के लिए नियंत्रक उपायों का विस्तार करना जरूरी है। वांछित प्रभाव के लिए सभी क्षेत्रों में समान तीव्रता के साथ कार्रवाई जरूरी है।


सरकार को भी वाहनों में तकनीकी सुधार पर जोर देना है, जो कई गुना बढ़ रहा है। यह सुनिश्चित करने के लिए, कि सड़क पर आने वाला प्रत्येक नया वाहन स्वच्छ ईंधन का प्रयोग करता है, उत्सर्जन के नियमों को सख्त बना दिया गया है। विभिन्न चरणों में उत्सर्जन में लगातार सुधार किया जाता है, जिसे भारत स्टेज उत्सर्जन मानदंड कहा जाता है। अप्रैल, 2017 में पूरे देश में बीएस-4 नियम लागू किया गया, जबकि दिल्ली समेत अन्य तेरह शहर 2010 से ही इसका पालन कर रहे हैं। सरकार ने बीएस-5 को छोड़ सीधे 2020 में बीएस-6 को लागू करने का फैसला किया है, जो अनुकरणीय फैसला है, क्योंकि बीएस-6 चरण में अधिकांश वाहन आज की तुलना में कम उत्सर्जन करेंगे। पर वाहनों की संख्या पर नियंत्रण न करने से उत्सर्जन का भार बढ़ेगा। इसलिए शहरों में मजबूत सार्वजनिक परिवहन जरूरी है।


विभिन्न शहरों में दैनिक स्तर पर वायु गुणवत्ता सूचकांक की घोषणा की जाती है। खराब, बहुत खराब और गंभीर जैसी शब्दावली में संवेदनशील और सामान्य आबादी के लिए स्वास्थ्य सलाह भी होती हैं, जिनके जरिये लोगों को उच्च वायु प्रदूषण के समय सावधानियां बरतने के लिए कहा जाता है। इन जानकारियों को सरल बनाकर अखबार, फोन एवं टीवी के जरिये चेतावनी दी जा सकती है। अधिकारियों को प्रदूषण नियंत्रण के उपायों को अपनाने का आदेश देकर अदालतों ने भी गंभीर वायु प्रदूषण से राहत दिलाने में लोगों की मदद की है। उन्होंने सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षा को प्रदूषण नियंत्रण के प्रमुख उद्देश्यों में बरकरार रखा है और अपने कई फैसलों में जीवन के अधिकार को सांविधानिक अधिकार से जोड़ा है। अतः प्रदूषण नियंत्रण के प्रयासों को आगे बढ़ाने के लिए कार्यकारी और न्यायिक सक्रियता आवश्यक है।


भले ग्रेडेड रिस्पांस ऐक्शन प्लान तीव्र वायु प्रदूषण से निपटने में मददगार है और उत्सर्जन के स्रोतों से तत्काल राहत दिलाने की कोशिश करता है, पर राष्ट्रीय वायुमंडलीय वायु गुणवत्ता मानक के तहत निर्धारित स्वच्छ वायु हासिल करने के लिए व्यापक कार्य योजना जरूरी है। सर्वोच्च न्यायालय भी दिल्ली-एनसीआर के लिए एक व्यापक कार्य योजना की समीक्षा कर रहा है और उम्मीद की जाती है कि सरकार द्वारा इस वर्ष इस योजना को अधिसूचित किया जाएगा।


-लेखक सेंटर फॉर साइंस ऐंड एन्वायर्नमेंट से संबद्ध हैं