Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/हकीकत-और-विकास-के-विरोधाभास-आकार-पटेल-9581.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | हकीकत और विकास के विरोधाभास- आकार पटेल | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

हकीकत और विकास के विरोधाभास- आकार पटेल

हम अपने आर्थिक इतिहास के सबसे विचित्र दौर से गुजर रहे हैं. केंद्रीय वित्त मंत्री ने हाल ही में कहा कि मौजूदा वर्ष में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की विकास दर करीब नौ फीसदी रहने का अनुमान है. मौजूदा केंद्र सरकार अब तक की अपनी एक मात्र उपलब्धि का हवाला देते हुए यही कहती रही है कि भारत दुनिया की सबसे तेज गति से उभरनेवाली अर्थव्यवस्था है. 

यदि हम ऐसे आधिकारिक बयानों पर भरोसा करें, तो दुनिया भर में आर्थिक संकट के मौजूदा दौर में भारतीय अर्थव्यवस्था किसी शांत द्वीप की तरह स्थिर है. इसके अनुसार मनमोहन सिंह के कार्यकाल के खराब अर्थव्यवस्था प्रबंधन का दौर बीत चुका है. लेकिन, वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता संभालने के वक्त के स्तर से तुलना करें, तो हमारा स्टॉक मार्केट अभी नीचे है. तब से अब तक रुपये का अवमूल्यन ही हुआ है. यही वजह है कि सरकार के आशावादी रुझान और बाजार के निराशावाद के बीच काफी असंतुलन दिख रहा है. 

कुछ दिनों पहले एनडीटीवी के प्रणय रॉय के साथ एक साक्षात्कार में मोर्गन स्टेनले के रुचिर शर्मा ने भारतीय आर्थिक परिप्रेक्ष्य के बारे में कुछ अहम बातें कही हैं. उन्होंने वैश्विक बाजार के रुझानों का अध्ययन किया है. उससे एकत्रित आंकड़ों और संकेतों के आधार पर रुचिर ने जो बातें कहीं है, उनमें पहली बात तो यह है कि 2015 के दौरान वैश्विक कारोबार का विकास शून्य प्रतिशत पर रहा. दूसरी बात कि अमूमन शून्य प्रतिशत की बढ़ोतरी मंदी के समय होती है. इसका मतलब हुआ कि दुनिया मंदी के मुहाने पर पहुंच रही है. एक संकेत यह भी है कि औसतन हर आठवें साल मंदी आती है और इस तर्क आधार पर यह माना जा सकता है कि अब मंदी की आहट सामने है. 

तीसरी बात, भारतीय निर्यात शून्य से पांच फीसदी नीचे तक जा पहुंचा है. जब निर्यात बढ़ने की दर शून्य से पांच फीसदी नीचे हो, तो भारत का आर्थिक विकास दर का आठ फीसदी पर पहुंच पाना असंभव है. (जिस समय भारत की आर्थिक विकास दर आठ फीसदी की रफ्तार पर थी, उस समय निर्यात में वृद्धि दर 20 फीसदी से ज्यादा थी).

चौथी बात, व्यापार के मामले में भारत दुनिया का सुरक्षित देश बना हुआ है, जबकि मोदी के कार्यकाल में शायद ही कोई आर्थिक सुधार हुआ है. 

वर्ष 2015 में दुनिया के सभी देशों में व्यापार के के लिए सुरक्षात्मक मानक तय करने में भारत दूसरे नंबर पर रहा. व्यक्तिगत तौर पर इससे मुझे आश्चर्य हुआ, क्योंकि हम लगातार सुनते रहे कि विभिन्न सुधारों पर विपक्ष रोड़े अटका रहा है. लेकिन, सरकार सुधार के लिए सक्रिय कदम उठा रही है, इसके बारे में कुछ नहीं सुना है.

पांचवीं बात, 2015 में भारत की 500 शीर्ष कंपनियों की बिक्री में वृद्धि शून्य फीसदी रही. निश्चित तौर पर मार्च, 2016 में खत्म हो रहे वित्त वर्ष में उन्हें हानि उठानी पड़ सकती है. यह निर्यात में नकारात्मक वृद्धि दर के बाद दूसरा संकेत है, जो बताता है कि भारत की सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर भी संकट में है.

छठी बात यह है कि सरकार के जीडीपी आंकड़ों और कॉरपोरेट के प्रदर्शन में विरोधाभास है. इसके कारण भी भारत सरकार द्वारा जारी आंकड़ों की विश्वसनीयता पर संदेह है.

इसके अलावा मुश्किलों को बढ़ानेवाले दूसरे संकेतक भी हैं. साख (क्रेडिट) (नयी आर्थिक गतिविधियों के लिए कर्ज) में भी गिरावट आयी है. भारतीय कॉरपोरेट घरानों पर भारी-भरकम कर्ज है और भारत के सार्वजनिक बैंकों के कर्ज में बड़ी मात्रा गैर निष्पादित कर्ज (नॉन पॉरफॉर्मिंग लोन) की है. हालांकि, सरकार अपने आंकड़ों पर पूरे विश्वास के साथ खड़ी है. 

सरकार का यह दावा है कि टैक्स संग्रह बढ़ाने जैसे महत्वपूर्ण कदम कयासों पर आधारित तर्कों से कहीं अधिक विश्वसनीय हैं. इसके अलावा 2016 में भारत में मौजूद विदेशी संस्थाओं की वृद्धि दर ऊंची (तकरीबन सात फीसदी) रहने की संभावना है. इससे बड़े विचित्र तरीके की तसवीर उभरती है, जिसका जिक्र मैंने शुरुआत में ही कर दिया था. 

तो क्या हम बेहतर आर्थिक स्थिति में होंगे और विकास दर नौ फीसदी के आंकड़े को छू पायेगी? या फिर हम आर्थिक व्यवस्था बुरे दौर में दाखिल होने जा रहे हैं? क्या सरकार सुधारों के लिए प्रतिबद्ध है या फिर 2015 की तरह इस साल भी कोई सुधार प्रक्रिया लटकी रहेगी? दोनों बातें एक साथ सही नहीं हो सकतीं. या तो हमारे सामने पहली तसवीर सही होगी या फिर दूसरी. 

ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि सरकारी आंकड़ों और रुचिर शर्मा के तर्कों में इतना बड़ा अंतर क्यों हैं? वित्त मंत्री का भरोसा बाजार के प्रदर्शन में क्यों नजर नहीं आ रहा है? क्या यह इसलिए है कि इसमें केवल अंतरराष्ट्रीय पहलुओं का ध्यान रखा गया है, भारत की घरेलू परिस्थितियों का नहीं.

मुझे सरकार के आंकड़ों को स्वीकार करने में कोई मुश्किल नहीं है. मेरा मानना है कि यह ऐसा मसला है, जिसे प्रधानमंत्री को सीधे तौर पर संबोधित करने की जरूरत है. हर महीने या तो ऐसे आंकड़े आ रहे हैं, जो सरकार के आशावादी दृष्टिकोण से मेल नहीं खा रहे हैं या फिर असमंजस की स्थिति पैदा कर रहे हैं. 

उदाहरण के तौर पर ऑटोमोबाइल की बिक्री लगातार बढ़ती रही है, लेकिन निर्यात गिरावट हो रही है. इसके अलावा औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि को लेकर भी कोई आकलन मौजूद नहीं है. जैसा कि हम सोच रहे थे कि तेल की कीमतें भी हमारे मनमाफिक खबरें ले आ रही हैं, लेकिन रुचिर शर्मा के मुताबिक तेल कीमतों में कोई गिरावट होती है या 30 डॉलर प्रति बैरल की मौजूदा दर भी कायम रहती है, तो भी यह वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए बुरी खबर है और यह प्रदर्शित होता है कि आर्थिक मंदी अब दूर नहीं है.

मुझे इस बात की खुशी है कि मौजूदा सरकार में उच्च स्तरों पर मनमोहन सिंह के कार्यकाल की तुलना में कम भ्रष्टाचार है. लेकिन, मेरे लिए यह मामूली बात है. भारतीयों के लिए सबसे अहम मुद्दा यह सतत विकास दर ही है, जो उन्हें गरीबी से निकालने के लिए मददगार साबित हो. यदि एक मजबूत सरकार और अपने दूरदर्शिता और उद्देश्यों को लेकर स्पष्ट नेता के होने के बावजूद हम ऐसा नहीं कर पाये, तो हमें बड़ी मुश्किल का सामना करना पड़ेगा.