Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/हमारे-धनकुबेर-और-टैक्स-हेवन-मोहन-गुरुस्वामी-9982.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | हमारे धनकुबेर और टैक्स हेवन - मोहन गुरुस्वामी | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

हमारे धनकुबेर और टैक्स हेवन - मोहन गुरुस्वामी

हमारे देश के ऊंचे और रसूखदार लोगों का किया-धरा धीरे-धीरे अब सार्वजनिक जानकारी के दायरे में आता जा रहा है। पनामा पेपर्स का खुलासा इनमें सबसे ताजातरीन मामला है। इन खुलासों ने हड़कंप मचा दिया है कि भारत की कम से कम पांच सौ आलातरीन शख्सियतों की पनामा में फर्जी कंपनियां हैं, जिनका मकसद मनी लॉन्ड्रिंग या धन छिपाना था। इस खुलासे के बाद ज्यादा से ज्यादा यही कहा जा सकता है कि ये हस्तियां एक बेहतरीन 'कंपनी" (सोहबत) में हैं, क्योंकि इस सूची में व्लादीमीर पुतिन, नवाज शरीफ, डेविड कैमरन जैसे राष्ट्राध्यक्षों के नाम भी शामिल हैं।

पनामा उत्तरी व दक्षिणी अमेरिका को जोड़ने वाला एक छोटा-सा देश है। उत्तर में कोस्टारीका और दक्षिण में कोलंबिया उसका पड़ोसी है। पनामा दो महाद्वीपों ही नहीं, दो महासागरों (प्रशांत और अटलांटिक) को भी जोड़ता है। 77 किलोमीटर लंबी पनामा नहर में दिनभर बड़े जहाज चलते रहते हैं। 1914 में इस नहर की शुरुआत हुई थी और तभी से इससे होने वाली आमदनी पर दुनिया के देशों की नजर लगी रही है।

पनामा को बहुत जल्द यह समझ आ गया कि टैक्स हेवन देशों की श्रेणी में शामिल होना एक मुनाफे का सौदा है। उसकी भौगोलिक स्थिति भी इसमें उसके लिए फायदेमंद साबित हुई। एक तरफ अमेरिकी महाद्वीप था, दूसरी तरफ खुशगवार मौसम वाले कैरेबियाई द्वीप। पड़ोस में कोलंबिया था, जहां बड़े पैमाने पर कोकीन का उत्पादन होता है और जो एक बड़ा निर्यातक देश है। ज्यादा पुरानी बात नहीं है, जब पनामा नहर के क्षेत्र पर अमेरिकी टुकड़ियों की पहरेदारी रहती थी और अमेरिकी यहां पर एक ऑफशोर टैक्स हेवन की संभावनाओं को लेकर लालायित रहते थे।

टैक्स हेवन क्या होता है? यह एक ऐसा देश होता है, जहां राजनीतिक और आर्थिक स्थिरता हो और जहां निवेशकों और व्यवसायियों को कोई टैक्स नहीं चुकाना पड़ता है। इस तरह के देश विदेशी कर अधिकारियों को ज्यादा जानकारियां भी मुहैया नहीं कराते। ऐसे में अपनी आमदनी को छुपाने के उत्सुक लोगों के लिए टैक्स हेवन देश सचमुच किसी जन्‍नत से कम नहीं होते हैं।

अब सवाल यह उठता है कि अमीरों को अपनी आमदनी छुपाने की जरूरत ही क्यों महसूस होती है? इसका सीधा-सा कारण यह है कि कागज पर वे स्वयं को इतने अमीर प्रदर्शित नहीं करते हैं, जितने कि वास्तव में वे होते हैं। दिक्कत यह है कि वे अपनी वास्तविक आय की घोषणा कर दें तो न केवल उन्हें भारी आयकर चुकाना होगा, बल्कि उन पर कॉर्पोरेट धोखाधड़ी के अनेक आरोप भी लगाए जा सकते हैं और उल्टे उन्हें इसके लिए सजा भी भुगतना पड़ सकती है।

अब ये समझने की कोशिश करते हैं कि हमारे ये 'कैप्टंस ऑफ इंडस्ट्री" इतने अमीर और रसूखदार कैसे बन जाते हैं। जब एक कारोबारी कोई नई परियोजना लॉन्च करता है तो परियोजना की लागतों को बेहद बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है। इसके बाद प्लांट और मशीनरी के सप्लायर्स प्रमोटरों को घूस खिलाते हैं। यह घूस 'प्रमोटर्स कैपिटल" कहलाती है और प्रमोटर जितनी परियोजनाओं को आगे बढ़ाता है, उतना ही अमीर वह बनता चला जाता है। लेकिन आमदनी बढ़ना जितना अच्छा होता है, आमदनी का उजागर होना उतना अच्छा नहीं होता, लिहाजा तब ये लोग टैक्स हेवन की शरण में जाते हैं। 'नेकी कर और दरिया में डाल" की तर्ज पर कह सकते हैं कि 'पैसा कमा और टैक्स हेवन में डाल।"

फिर धीरे-धीरे इस पैसे को भारत लाने की कोशिश की जाती है। इसमें हमारे निकट स्थित टैक्स हेवन मॉरिशस और सिंगापुर मददगार साबित होते हैं। आश्चर्य नहीं कि वर्ष 2015 में जिन देशों में सबसे ज्यादा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आया, उनमें मॉरिशस और सिंगापुर शीर्ष पर थे। आज इन दोनों में ही सैकड़ों कॉर्पोरेट्स सक्रिय हैं। पनामा, बरमूडा, कैमैन आइलैंड्स, लीखतेंश्टाइन जैसे दूर बसे टैक्स हेवन के पूरक के रूप में वे काम करते हैं। और हां, ये सभी टैक्स हेवन बहुत छोटे देश हैं। जितना छोटा देश, उतने भ्रष्ट अधिकारी।

भारत में दिए जाने वाले कुल वाणिज्यिक कर्ज का 80 प्रतिशत चौदह सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों द्वारा दिया जाता है। इसके अलावा आईडीबीआई और आईएफसीआई जैसी दो बड़ी परियोजना वित्त संस्थाएं, भाजीबीनि जैसी बड़ी सांस्थानिक निवेशक कंपनी और ओरियंटल व जीआईसी जैसी जनरल इंश्योरेंस कंपनियां भी सरकारी हैं। ये सभी संस्थाएं दिल्ली से संचालित होती हैं, जो कि राजनीतिक और प्रशासनिक सत्ता का केंद्र है। ऐसे में वहां बैठे न्यस्त स्वार्थ यह सुनिश्चित करने की कोशिश करते हैं कि वित्तीय लेनदेन की प्रक्रिया निर्बाध संचालित हो सके। एक ऐसे देश में, जहां रीस्ट्रक्चरिंग का मतलब लोन डिफॉल्टरों को और एवरग्रीन कर्ज मुहैया कराना हो, वहां पर और उम्मीद भी क्या की जा सकती है?

आज नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स की सूची में देश की शीर्ष कंपनियों के रोस्टर शामिल हैं। आरबीआई के आकलनों के अनुसार शीर्ष 30 लोन डिफॉल्टर्स के पास ही सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों के कुल एनपीए का एक तिहाई हिस्सा फंसा हुआ है। गत 31 मार्च तक देश की शीर्ष पांच सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों का महज 44 कर्जदारों पर 4.87 लाख करोड़ रुपया बकाया था। कुछ डिफॉल्टर तो ऐसे भी हैं, जो पहले भी डिफॉल्टर हो चुके हैं, इसके बावजूद उन्हें कर्ज देने में दरियादिली दिखाई जाती रहती है।

प्लांट और मशीनरी के खर्चों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाए गए आंकड़ों से बचाई गई रकम, निर्यातों की कम आंकी गई इनवॉइसेस और आयातों की ज्यादा आंकी गई इनवॉइसेस की मदद से जुटाई गई रकम का एक बड़ा हिस्सा ही विदेशी बैंकों में जमा किया जाता है। क्या कभी किसी ने आश्चर्य किया है कि आखिर सऊदी अरब अमीरात ही भारत के मर्केंडाइज निर्यातों का दूसरा सबसे बड़ा ठिकाना क्यों है और मर्केंडाइज आयातों का वह तीसरा सबसे बड़ा स्रोत भी क्यों है? यूएई से ही सबसे अधिक मात्रा में कानूनी-गैरकानूनी स्वर्ण आयात क्यों किया जाता है? पिछले साल ही भारत ने 35 अरब डॉलर कीमत का 900 टन सोना आयात किया है। वास्तव में पनामा जैसे टैक्स हेवन देशों में बसी रहस्यपूर्ण कंपनियां इन निर्यातों में पैसा लगाती हैं।

अमेरिका स्थित प्रतिष्ठित थिंक टैंक ग्लोबल फाइनेंस इंटेग्रिटी के अनुसार अकेले वर्ष 2015 में भारतीयों ने अवैध रूप से 83 अरब डॉलर की रकम विदेशों में भिजवाई है। यह पैसा गया कहां? स्विट्जरलैंड जैसे देशों में, जहां पर बैंकिंग संबंधी गोपनीयता को सुरक्षित रखा जाता है, हालांकि वहां की बैंकें जमाए कराए पैसों पर कोई ब्याज नहीं देतीं। टैक्स हेवन देशों की कॉर्पोरेशंस में जाने वाले इन पैसों का दुनियाभर के कारोबारों में निवेश किया जाता है। आपको आश्चर्य नहीं होता कि हमारे इतने कारोबारी यकायक विदेशों में इतनी संपत्ति कैसे खड़ी कर लेते हैं? वक्त बदल गया है और पनामा इस बदले हुए वक्त की हकीकत है।

(लेखक आर्थिक-राजनीतिक विश्लेषक हैं। ये उनके निजी विचार हैं