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हर 20 सेकेंड में मर जा रहा एक बच्चा, जानिये इस बीमारी के खतरे!

रांची. दुनिया में निमोनिया से प्रत्येक 20 सेकेंड में एक बच्चे की मौत होती है। इसका प्रमुख कारण है पीडि़त बच्चों के साथ घर में लापरवाही। जब बच्चा बीमार पड़ता है, तो लोग खुद से इलाज शुरू कर देते हैं और जब डॉक्टर तक पहुंचते हैं तब देर हो चुकी होती है। इसलिए जब भी सरदी, खांसी, सांस तेज चलना, छाती से घर्र घरघराहट की आवाज आती तो डॉक्टर से मिलें। आज पूरी दुनिया में निमोनिया बच्चों में मेजर किलर की भूमिका में है। उक्त बातें सीएमपीडीआई के मयूरी प्रेक्षागृह में शिशुरोग विशेषज्ञों ने कही। मौका है पेडिकॉन : 12 के दूसरे दिन का। कांफ्रेंस में देश के कई राज्यों के शिशुरोग विशेषज्ञ हिस्सा ले रहे हैं। आयोजन इंडियन एकेडमी ऑफ पेडियाट्रिक्स झारखंड व रांची चैप्टर ने संयुक्त रूप से किया है।
दूसरे दिन दो दर्जन से अधिक शिशुरोग विशेषज्ञों ने बच्चों में होनेवाली अलग अलग बीमारियों के बारे में जानकारी दी। इनमें सर गंगाराम हॉस्पिटल के डॉ किशन चुघ ने सेप्टिक शॉक के बारे में बताया। कहा कि इसके मैनेजमेंट के लिए प्रोटोकॉल बना है। पटना के डॉ एके ठाकुर ने कंजेनाइटल हाइपोथायराइडज्म के बारे में बताया। कहा कि इस बीमारी के कारण बच्चों के शारीरिक, मानसिक विकास रुक जाता है। कटक के डॉ मानस रंजन उपाध्याय ने कहा कि बच्चों में ऑक्सीजन की कमी होने से आंखों की रोशनी जा सकती है। कोलकाता की डॉ सुतपा गांगुली ने बच्चों में होनेवाली क्रोनिक हेपेटाइटिस के बारे में जानकारी दी। इनके अलावा बेंगलुरु की डॉ भारती दास, कोलकाता के डॉ नुपूर गांगुली, डॉ सुष्मिता बनर्जी, डॉ रीता ब्रत कुंडू, डॉ जयदीप चौधरी, गोवाहटी के डॉ विजोन साहा समेत अन्य डॉक्टरों ने व्याख्यान दिए।
बच्चों के हार्ट सर्जरी से नहीं घबराएं
नारायण हृदयालय के पेडियाट्रिक्स कार्डियोलॉजिस्ट डॉ भारती दास ने कहा कि माता पिता को बच्चों की होनेवाली हर्ट सर्जरी से घबराना नहीं चाहिए। यह सर्जरी अब काफी आसान और बेहतर हो चुकी है। नयी तकनीक में तो आज बच्चा जन्म लिया और तुरंत हर्ट की सर्जरी ठीक कर उसके दिल के छेद को बंद किया जा रहा है। लेकिन, जागरुकता के अभाव में घरवाले बच्चों का इलाज नहीं कराते। हमारे अस्पताल में सालाना दो हजार बच्चों की सर्जरी होती है। सर्जरी के बाद बच्चें ताउम्र नार्मल जीवन जीते हैं। इसलिए जब भी किसी बच्चे का शरीर नीला पड़े, हर्ट में छेद हो या फिर एएसडी, वीएसडी की बीमारी हो तो इलाज कराने से कतराएं नहीं।
सूबे में 35 फीसदी बच्चों की मौत निमोनिया से

रिम्स के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. एके वर्मा ने बताया कि झारखंड में हर साल 35 प्रतिशत बच्चों की मौत निमोनिया से हो जाती है। इस तरह यह बच्चों की मौत का सबसे बड़ा कारण है जबकि डायरिया का स्थान दूसरा है। इलाज में देरी के कारण इंफेक्शन बढ़ जाने से यह जानलेवा साबित हो रहा है। इसके अलावा डॉक्टर और अटेंडेट में संवाद व समन्वय के अभाव के कारण बच्चे इन बीमारियों का आसानी से शिकार बन जाते हैं।