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हर आठवें एचआईवी पॉजिटिव की मौत, 8 साल में गई दो हजार जान

रायपुर। राज्य में एचआईवी पॉजिटिव मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। चिंताजनक स्थिति यह है कि हर आठवां एचआईवी पॉजिटिव दम तोड़ रहा है। साल 2006 से 2014 तक की स्थिति में प्रदेश में 16867 लोग एचआईवी की गिरफ्त में आ चुके थे। इनमें से 1924 की मौत हो चुकी है। मौजूदा पॉजिटिव मरीजों की संख्या 21994 है।

एक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक सीजीसैक्स ने अब तक सिर्फ 21994 एचआईवी एड्स पीड़ितों की पहचान की है, जबकि प्रदेश में 50 हजार से अधिक पॉजिटिव लोग हैं। इन्हीं पॉजिटिव लोगों से वाइरस तेजी से फेल रहा है। सीजीसैक्स को बने पूरे 14 साल हो चुके हैं। बावजूद इसके अभी प्रदेश में सिर्फ 5 एआरटी सेंटर हैं, जहां दवाइयां मिलती हैं, जबकि जिलों की संख्या 27 हो चुकी है।

अभी 7 लिंक एआरटी जरूर खोले गए हैं यानी करीब 21 लाख की आबादी में सिर्फ एक एआरटी-लिंक एआरटी सेंटर। राज्य एचआईवी पीड़ितों के डेथ रेट में देश के शीर्ष 3 राज्यों में शुमार है। हालांकि छत्तीसगढ़ में एचआईवी मरीजों को मुख्यधारा में जोड़ने के लिए कई योजनाएं हैं।

इन मौतों के लिए जितना जिम्मेदार राज्य स्वास्थ्य विभाग, राज्य एड्स नियंत्रण समिति (सीजीसैक्स) है, उतने ही मरीज। ये मरीज इस बीमारी को छुपाते हैं, इलाज नहीं करवाते और पॉजिटिव आने पर रिपोर्ट तक को झुठला देते हैं।

मौत के ये हैं कारण -

1- टेस्ट पॉजिटिव आने के बाद मरीज दवा लेने नहीं आते।

2- दवाएं ले जाते हैं, लेकिन उनका सेवन नहीं करते हैं।

सीजीसैक्स की लापरवाही-

नॉको से दवाओं की सप्लाई न होने पर अब तक की स्थिति में दवा खरीदी के लिए कोई बजट नहीं है। दवा खत्म होने पर दूसरे राज्यों पर निर्भर रहना पड़ता है, दवा मिली तो ठीक, नहीं तो मरीजों को खाली हाथ लौटाया जाता है। एक दिन भी दवा लेने में चूक हुई तो ये वाइरस दोबारा सक्रिय हो जाते हैं।

जल्द यह प्रावधान भी होगा लागू-

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक दवा उपलब्ध न होने पर बाहर से खरीद सकता है। उसे उसका बिल एआरटी सेंटर में देना होगा। उसका पैसा वापस मिल जाएगा।

पहली बार दवा बजट प्रस्ताव-

दवाओं की कमी से निपटने के लिए इस साल सीजीसैक्स ने राज्य सरकार को 3 महीने की दवा खरीदी की वैकल्पिक व्यवस्था के लिए बजट की मांग की है। 81 लाख रुपए का बजट तैयार कर भेजा गया है।

सामाजिक स्वीकार्यता का अभाव

एचआईवी-एड्स को लेकर सामाजिक स्वीकार्यता नहीं है। लोग बीमारी को छिपाते हैं,दवाइयां खाना नहीं चाहते। रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद उसे झूठलाया जाता है। हालांकि यह सच है कि एआरटी सेंटर्स कम हैं, इन्हें बढ़ाया जाएगा। - डॉ. एसके बिंझवार, अतिरिक्त परियोजना संचालक, सीजीसैक्स