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हर तीसरे दिन रेप चौथे दिन मर्डर

बिलासपुर. महिला उत्पीड़न रोकने के तमाम दावे खोखले नजर आते हैं, जब ऐसे मामलों का आंकड़ा सामने आता है। जिले में महिला प्रताड़ना के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। 2008 से अब जिले के विभिन्न थानों में महिलाओं से संबंधित करीब 1609 मामले दर्ज किए गए हैं।

पुलिस सहित महिला उत्पीड़न निवारण समिति को इन पर अपराध रोकने की जिम्मेदारी है, पर दोनों असरहीन रहे हैं। अधिकांश मामले तो महिला थाने तक पहुंच ही नहीं पाते, वहीं महिला उत्पीड़न निवारण समिति के बारे में लोग जानते तक नहीं।

दहेज के लिए बलि



जिले में हर 17वें दिन एक महिला दहेज की बलि चढ़ा दी जा रही है। पिछले तीन साल में करीब 74 दहेज हत्या के मामले दर्ज हुए। 2007 में 26 महिलाएं इसका शिकार हुईं। 2006 में यह आंकड़ा 23 था। 2008 में इसमें थोड़ी कमी जरूर आई पर आंकड़ा पिछले दो सालों के आसपास ही घूमता रहा। अन्य मामलों में हर माह 10-10 के अनुपात में महिलाएं अपनी जान से हाथ धो रही हैं। तीन साल के भीतर दहेज व अन्य कारणों से 197 महिलाओं की जान जा चुकी है।



टोनही कानून कारगर नहीं



ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं सर्वाधिक टोनही प्रताड़ना की शिकार हैं। जिले में हर तीसरे दिन एक मामला टोनही प्रताड़ना का दर्ज हो रहा है। अक्टूबर 2008 में ऐसी ही एक घटना में मरवाही क्षेत्र की महिला बालकुंवर की उसके ससुर व देवर ने हत्या कर दी थी। टोनही प्रताड़ना की सर्वाधिक घटनाएं मस्तूरी क्षेत्र में होती है। अंधविश्वास दूर करने तथा लोगों में जागरूकता लाने के लिए पुलिस ने यहां कई बार अभियान चलाया, पर इसका असर नहीं हुआ।



शराबी पतियों से त्रस्त



थानों में दर्ज मामलों पर गौर करें तो महिलाएं अपने शराबी पतियों से ज्यादा प्रताड़ित व परेशान रहती हैं। वह परिवार टूटने के भय से थाना नहीं जाना चाहतीं। इससे उनका जीवन लात-घूंसा खाते बीत जाता है। महिलाएं इसी के चलते खुदकुशी के लिए भी मजबूर हो जाती हैं।



ये कहते हैं



पहले भी महिलाओं पर अत्याचार होता था, पर वे किसी से शिकायत नहीं कर पातीं थीं। थानों में बढ़ते मामले से पता चलता है कि महिलाएं जागरूक हो गई हैं, घर से निकलकर बेधड़क थानों तक पहुंच रही है। इसे बढ़ते अपराध से जोड़कर नहीं देखना चाहिए।



आर.विभाराव,अध्यक्ष छत्तीसगढ़ महिला आयोग



महिलाएं अपनी स्थिति के लिए खुद जिम्मेदार हैं। महिलाएं घर में आज भी प्रताड़ित हैं। वे थाना नहीं आना चाहती। सभी महिलाएं यहां पहुंचने लगे तो अपराध का आंकड़ा दस गुना बढ़ जाएगा।



उषाकिरण बाजपेयी, सदस्य कुटुंब न्यायालय परामर्शदात्री समिति



प्रताड़ित महिलाएं थाना नहीं आना चाहती। जब आती हैं तो प्राथमिकता के आधार पर उनकी रिपोर्ट लिखी गई। महिलाओं पर अत्याचार रोकने लोगों में जागरूकता लाना जरूरी है और पुलिस ऐसा प्रयास कर रही है।



विवेकानंद सिन्हा,एसपी



महिला अत्याचार निवारण समिति के सचिव व महिला बाल विकास विभाग के जिला अधिकारी एलआर कच्छप का कहना है समिति के पास महिलाएं शिकायत करने नहीं आतीं। यदि कोई उनके पास आएगा, तभी तो जानकारी होगी। उन्होंने बताया कि समिति की ओर से अब तक कोई जागरूकता शिविर नहीं लगाया गया है।



पुलिस के आंकड़ों पर एक नजर



प्रकरण 2006 2007 2008 2009 2010 (मार्च तक)
हत्या 28 29 39 23 04
हत्या का प्रयास 11 05 11 02 03
प्रताड़ना 120 129 136 39 18
दहेज मृत्यु 23 26 19 04 02
बलात्कार 61 71 23 07
अपहरण 27 20 22 09 02
शीलभंग 192 171 171 16 04
यौन उत्पीड़न 13 08 04 02 00
टोनही प्रताड़ना 13 12 10 03 01