Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/हर-रोज-ढाई-हजार-किसान-छोड़-रहे-हैं-खेती-9736.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | हर रोज ढाई हजार किसान छोड़ रहे हैं खेती | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

हर रोज ढाई हजार किसान छोड़ रहे हैं खेती

लेखक एवं सामाजिक कार्यकर्ता किशन पटनायक ने कहा कि खेती और किसान की वर्तमान दशा के बीच यक्ष प्रश्न यह उठ खड़ा हुआ है कि वास्तव में किसान कौन हैं, किसान की क्या परिभाषा हो? एेसा इसलिए है कि वित्तीय योजनाओं के संदर्भ में किसान की एक परिभाषा है, तो राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो का कोई दूसरा मापदंड है, पुलिस की नजर में किसान की अलग परिभाषा है... इन सबके बीच किसान बदहाल और परेशान है।


उतार-चढ़ाव के बीच कृषि विकास दर रफ्तार नहीं पकड़ रही है। कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, 2012-13 में कृषि विकास दर 1.2 प्रतिशत थी जो 2013-14 में बढ़कर 3.7 प्रतिशत हुई और 2014-15 में फिर घटकर 1.1 प्रतिशत पर आ गई। पिछले कई वर्षों में बुवाई के रकबे में 18 प्रतिशत की कमी आई है। विशेषज्ञों के अनुसार, कई रिपोर्टों को ध्यान से देखने पर कृषि क्षेत्र की बदहाली का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले दो दशकों में भारी संख्या में किसान आत्महत्या कर चुके हैं और अधिकतर आत्महत्याओं का कारण कर्ज है, जिसे चुकाने में किसान असमर्थ हैं। जबकि 2007 से 2012 के बीच करीब 3.2 करोड़ गांव वाले जिसमें काफी किसान हैं, शहरों की ओर पलायन कर गए हैं। इनमें से काफी लोग अपनी जमीन और घर-बार बेच कर शहरों में आ गए।


जाने माने चिंतक के एन गोविंदाचार्य ने कहा कि गांव और किसानों की स्थिति आज बेहद खराब है। पंचायती राज व्यवस्था के इतने साल बीत जाने के बाद भी लोग गांव से पलायन करने को मजबूर है जबकि खेती के प्रति रूझान लगातार कम हो रहा है। उन्होंने कहा कि इसका कारण पंचायतों का वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर नहीं होना है। एेसे में केंद्रीय बजट का 7 प्रतिशत सीधे गांव को दिया जाए ताकि गांव में संसाधन विकसित किये जा सकें।


गांव से पलायन करने के बाद किसानों और खेतीहर मजदूरों की स्थिति यह है कि कोई हुनर न होने के कारण उनमें से ज्यादातर को निर्माण क्षेत्र में मजदूरी या दिहाड़ी करनी पड़ती है। 2011 की जनगणना के अनुसार हर रोज ढाई हजार किसान खेती छोड़ रहे हैं। भारी संख्या में गांव से लोगों का पलायन हो रहा है जिसमें से ज्यादातर किसान हैं।


5 साल में 70 हजार किसान अात्महत्याएं
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के पिछले 5 साल के आंकडों के मुताबिक सन् 2009 में 17 हजार, 2010 में 15 हजार, 2011 में 14 हजार, 2012 में 13 हजार और 2013 में 11 हजार से अधिक किसानों ने खेती-बाड़ी से जुड़ी तमाम दुश्वारियों समेत अन्य कारणों से आत्महत्या की राह चुन ली। महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में किसानों की आत्महत्या की दर सबसे अधिक रही है।


देश में 640 में से 340 जिलों में मानसून की बारिश में 20 प्रतिशत तक कमी दर्ज की गई है। आज भी सिंचाई के लिए ज्यादातर किसान प्रकृति पर निर्भर हैं। बेमौसम बरसात, ओलावृष्टि के कारण भारी मात्राा में हर साल फसलों की बर्बादी होती है। पटनायक ने कहा कि इन सब के बीच किसान सरकारी सहायता को लेकर केंद्र और राज्य के द्वन्द्व के बीच झूलता नजर आता है। एेसी बात नहीं है कि यह समस्या आज खड़ी हुई है लेकिन ढाई दशक पहले कृषि को जब बाजारवाद के आसरे छोड़ने का निर्णय किया गया, समस्या वहीं से विकट होती गई।


वैश्विक स्थितियों की मार
किसानों के लिये संकट की बात यह है कि पूरी दुनिया में अनाज के भाव कम हुए हैं एेसे में उत्पादन घटने के बावजूद भारत में फसल के दाम बढ़ने की उम्मीद नहीं है। अगर उत्पादन घटेगा तो किसानों को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ेगा और यह किसान की समस्याओं को और बढ़ा सकता है।


बुंदेलखंड विकास आंदोलन के आशीष सागर ने कहा कि खेती किसानी का खर्च बढ़ा है लेकिन किसानों की आमदनी कम हुई है जिससे किसान आर्थिक तंगहाली के दुष्चक्र में पड़ गया है। किसानों की आय राष्ट्रीय औसत से काफी कम है। एेसे में भी किसान सरकार से किसी वेतनमान की मांग नहीं कर रहा है बल्कि वह तो अपनी फसलों के लिए उचित न्यूनतम समर्थन मूल्य मांग रहा है ताकि देश के लोगों के साथ अपने पेट भी ठीक से भर सके। उन्होंने कहा, कुल मिलाकर देश एक बड़े संकट की तरफ बढ़ रहा है जहां कोई किसानी नहीं करना चाहता लेकिन भोजन सभी को चाहिए। इस गम्भीर विषय पर समय रहते केन्द्र और राज्य सरकारों को संजीदा होना होगा और इस पर व्यावहारिक रणनीति बनानी होगी।


विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले दशकों में खाद्यान्न जरूरतों में वृद्धि के चलते वैकल्पिक खाद्य वस्तुओं, मसलन डेयरी उत्पादों, मत्स्य व पोल्टी उत्पादों के विकल्पों पर भी ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि खेती के समानांतर रोजगार के नएे विकल्पों की जरूरत महसूस की जा रही है। जब औद्योगिक उत्पादन लगातार उतार चढ़ाव झेल रहा है एेसे में अर्थव्यवस्था को आधार प्रदान करने वाले कृषि क्षेत्र के लिए मौसम की बेरूखी के कारण खाद्यान्न उत्पादन में कमी की आशंका संकट की स्थिति का संकेत दे रही है।


सागर ने कहा कि सवाल यह है कि आने वाले बजट में गांव और किसानों को मजबूत बनाने के लिए सरकार के पास क्या है?