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हरे कानून बदलेंगे रहन-सहन की तहजीब

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। जलवायु परिवर्तन के खतरों के खिलाफ देश में धीरे-धीरे खड़ी हो रही हरे कानूनों की नई बाड़ का असर आने वाले कुछ दिनों में आम आदमी की जिंदगी पर नजर आने लगेगा। मामला साफ हवा के नए मानकों का हो या ई-कचरे को नियंत्रित करने के पैमानों का। पर्यावरण केंद्रित नियम-कायदों का नया सांचा देश में रहन-सहन की तहजीब को नई शक्ल देने में जुटा है।

बीते एक साल में सरकार ने ध्वनि और वायु प्रदूषण के नए मानक तय किए हैं। अब देश में साफ हवा के मानक जमीन के उपयोग से नहीं बल्कि हवा की सेहत से तय होंगे। यानी व्यावसायिक क्षेत्रों को भी प्रदूषण का स्तर रिहायशी इलाके के बराबर रखना होगा। इसके अलावा शोर के लिए मानक ही नहीं उनके क्रियान्वयन के इंतजामों का असर भी अपेक्षित है। पर्यावरण मंत्रालय वर्ष 2010-11 के दौरान देश में ध्वनि प्रदूषण की निगरानी के लिए 35 केंद्र स्थापित कर रहा है। लिहाजा अब शोर की शिकायतों को अनसुना करना पुलिस के लिए भी आसान नहीं होगा।

इस बीच देश में ई-कचरे के बढ़ते ढेर को देखते हुए तैयार नए मानक आपको इलेक्ट्रानिक सामान की खरीद से पहले उनकी उम्र पूरी होने पर ठिकाने लगाने के उपाय सोचने पर तो मजबूर करेंगे ही। साथ ही साथ देश में ई-कचरे के प्रबंधन के तौर-तरीके भी बदलेंगे। इस बीच पर्यावरण और परिवहन मंत्रालय के बीच चल रही कवायद देश में खासकर डीजल वाहनों के लिए नियमों को चुस्त करने की कवायद में लगा है। इसके लिए सरकार मोटर वाहन कानून के भी कुछ प्रावधानों को सुधारने की तैयारी में है।

तटीय इलाकों और खनन क्षेत्रों में जारी अंधाधुंध विकास की रफ्तार पर भी बीते कुछ दिनों में हरे कानूनों का ब्रेक लगा है। कानूनी प्रावधानों और कोस्टल रेगुलेटरी जोन के नए मानकों के सहारे अब तटीय क्षेत्रों में निर्माण व खनन में मनमर्जी कठिन होगी। कोशिशें तो भारतीय भूभाग को हरी चादर से ढकने की भी हैं। लक्ष्य 2020 तक भारत में वनाच्छादित क्षेत्र का दायरा दो करोड़ हेक्टेयर तक बढ़ाने का है। पर्यावरण मंत्रालय इस संबंध में तैयार मिशन के मसौदे पर जन सुनवाई 11 जून से शुरू करने जा रहा है।

बहरहाल, बीते कुछ सालों में जेब की जरूरत के लिहाज से ही सही लेकिन लोगों के रहन-सहन में कुछ पर्यावरण मित्र तकनीकों ने अपनी पैठ भी बनाई है। भारत में जिस तरह सीएफएल बल्ब को अपनाया गया वो अपने आप में सफलता की शानदार मिसाल है। इसके चलते बेतहाशा बिजली खाने वाले पीले बल्ब की जगह सीएफएल दिलाने को शुरू की गई बचत बल्ब योजना आज दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी क्लीन डेवलपमेंट मैनेजमेंट योजना बन चुकी है। रेन वाटर हार्वेस्टिंग और हरित इमारतों के बढ़ते चलन ने भी तस्वीर बदलने की कोशिश की है। इसके अलावा देश में सौर ऊर्जा के उपलब्ध संसाधनों के मुकाबले भले ही उपयोग के पैमाने छोटे हों। लेकिन सोलर फोटो वोलेटिक सेल की स्थापित क्षमता के लिहाज से भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा देश है।