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हसदेव अरण्य: विधानसभा के संकल्प, सुप्रीम कोर्ट में हलफनामे के बावजूद बढ़ता कोयला खनन

मोंगाबे हिंदी, 19 फरवरी

छत्तीसगढ़ में बहुचर्चित हसदेव अरण्य के जंगल में पेड़ों की कटाई जारी है। राज्यपाल से लेकर विधानसभा तक ने, हसदेव अरण्य में कोयला खदानों पर रोक लगाने की बात कही है। यहां तक कि छत्तीसगढ़ सरकार ने खुद सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा दे कर किसी नई कोयला खदान को गैरज़रुरी बताया है। छत्तीसगढ़ के आदिवासी 1878 वर्ग किलोमीटर में फैले हसदेव अरण्य के घने जंगल में कोयला खनन का विरोध पिछले एक दशक से कर रहे हैं लेकिन इन सारी आवाज़ों को हाशिये पर डाल दिया गया है।

दिल्ली जैसे राज्य से भी बड़े इलाके में फ़ैले हसदेव अरण्य के जंगल में तीन कोयला खदान राजस्थान सरकार को आवंटित हैं, जिनका आदिवासी विरोध कर रहे हैं। इन तीनों खदानों का प्रबंधन और खनन का काम राजस्थान सरकार ने अडानी समूह को सौंप दिया है।

तीन खदानों में से एक, परसा ईस्ट केते बासन के पहले चरण का खनन, जिसमें से 2028 तक कोयले की आपूर्ति होनी थी, उसमें क्षमता से अधिक कोयला निकाला गया और 2021 में ही इस खदान का कोयला ख़त्म हो गया। अब इस कोयला खदान के दूसरे चरण में खनन प्रक्रिया शुरु हो गई है। इसी तरह एक अन्य खदान परसा के लिए भी खनन की प्रक्रिया पर काम चालू है। तीसरी खदान, केते एक्सटेंशन को लेकर भी अनुमान है कि अगले कुछ महीनों में यहां भी कामकाज शुरु हो सकता है।

इन तीनों ही खदानों के ख़िलाफ़ कई मामले हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में लंबित हैं। लेकिन, अदालतों की धीमी रफ़्तार के कारण इन पर सुनवाई नहीं हो पा रही है। अदालती कार्रवाई का हाल इससे समझा जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट ने हसदेव अरण्य में एक खदान — परसा ईस्ट केते बासन में खनन को यह कहते हुए मंजूरी दी थी कि खदान से जंगल पर होने वाले प्रभाव का अध्ययन करवा लिया जाए। लेकिन इस अध्ययन की रिपोर्ट तब आई, जब खदान के पहले चरण का लगभग सारा कोयला निकाला जा चुका था। 
पूरी रपट- मोंगाबे हिंदी