Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/हिंसा-से-बेअसर-भारतीय-मध्य-वर्ग-आकार-पटेल-10471.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | हिंसा से बेअसर भारतीय मध्य वर्ग-- आकार पटेल | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

हिंसा से बेअसर भारतीय मध्य वर्ग-- आकार पटेल

भारत में ऐसे तीन बड़े इलाके हैं, जहां लंबे समय से हिंसक संघर्ष चलता आ रहा है. पहला, जम्मू-कश्मीर है, दूसरा मध्य भारत का आदिवासी क्षेत्र है जो झारखंड, ओड़िशा व छत्तीसगढ़ से जुड़ा हुआ है, और तीसरा हिस्सा पूर्वोत्तर भारत का जनजातीय इलाका है. इन संघर्षों की जमीनी हकीकत को समझने के लिए इसकी प्रकृति से संबंधित कुछ अहम तथ्यों को जानना जरूरी है.

उत्तर में जम्मू-कश्मीर की समस्या यह है कि घाटी की मुसलिम आबादी को यह लगता है कि देश के विभाजन के समय उनकी राय नहीं ली गयी. तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा किया गया जनमत-संग्रह का वादा वापस ले लिया गया है. बाद में सिलसिलेवार प्रक्रिया के तहत राज्य का विलय भारतीय संघ में कर लिया गया, जिसे कुछ कश्मीरी वैध नहीं मानते हैं. 

हालांकि, इस मामले को संयुक्त राष्ट्र में काफी पहले ही घसीटा जा चुका है, लेकिन शीत युद्ध और विभाजित सुरक्षा परिषद के कारण कोई नतीजा नहीं निकल सका. हकीकत को स्वीकार करने में असफल कश्मीरियों ने करीब तीन दशक पहले हिंसक विद्रोह कर दिया. इन कश्मीरियों की दो पीढ़ियां ताकतवर सैन्य उपस्थिति में पली-बढ़ी हैं. 

उनके हिंसक विद्रोह के चलते हिंदुओं के एक बड़े तबके को कश्मीर घाटी से पलायन करना पड़ा.लेकिन, हमें नहीं भूलना चाहिए कि दशकों से जारी कश्मीर की अलगाववादी हिंसा इस राज्य के बाहर नहीं फैली है. बीते दशकों में मुंबई या दिल्ली में कोई बम धमाका या हमला कश्मीरियों द्वारा नहीं किया गया है. बंदूक उठानेवाले कश्मीरी अपने राज्य में ही भारतीय सुरक्षा बलों के खिलाफ खड़े हुए. भारत के बाकी हिस्से में उन्हें भले ही आतंकवादी माना जाता हो, लेकिन ज्यादातर कश्मीरी उन बंदूक उठानेवालों को इस नजर से नहीं देखते हैं. 

भारत सरकार का कहना है कि कश्मीर घाटी में अलगाववाद की समस्या बाहरी ताकतों की देन है. यदि पाकिस्तान से कोई शरारत न हो, तो कोई विवाद नहीं होगा. हालांकि, कश्मीरियों के खिलाफ भारी हिंसा को देखते हुए यही लगता है कि हम उनके साथ बतौर भारतीय व्यवहार नहीं कर सके हैं. 

संघर्ष का दूसरा क्षेत्र पारंपरिक आदिवासी इलाकों से संसाधनों को निकालने से जुड़ा है. यहां खनिज पदार्थों और कोयला की बहुतायत है तथा भारतीय राज्य इन संसाधनों का दोहन 'राष्ट्रीय संपत्ति' के नाम पर करना चाहता है. 

दुर्भाग्य से हम उन आदिवासियों के साथ भी उचित व्यवहार नहीं कर सके हैं, जिनकी जमीनें ली गयी हैं या ली जा रही हैं. कुछ हद तक यह जान-बूझकर नहीं हो रहा है. भारत न तो एक सक्षम देश है, और न ही धनी. सरकार पूरी तरह से बहुसंख्यक आबादी, खासकर गरीबों, को शिक्षा और स्वास्थ्य मुहैया नहीं करा सकती है. लेकिन, आबादी में आठ फीसदी की हिस्सेदारी रखनेवाले आदिवासियों पर कुर्बानी का दबाव कुछ अधिक ही है. उन्हीं की जमीनों से निकले कोयला से भारतीय शहरों में एयर कंडीशनों और वाशिंग मशीनों को बिजली मिलती है. उन्हीं के जंगलों को काटा और प्रदूषित किया जाता है. 

यदि दक्षिण मुंबई और दक्षिण दिल्ली में कोयला पाया जाता, तो इतना निश्चित है कि मानवाधिकारों, शोषण और पर्यावरण को लेकर खूब चर्चा होती. लेकिन, अपने अधिकारों के लिए आदिवासियों द्वारा किये जा रहे संघर्ष में उनके अधिक सहयोगी नहीं हैं. शोषण के खिलाफ हो रही इस हिंसा को माओवाद या वामपंथी उग्रवाद कहा जाता है. 

ऐसे साफ-सुथरे मुहावरे शहरी भारतीयों के लिए मुख्य कारणों की अवहेलना तथा उन लोगों को 'आतंकवादी' के रूप में स्वीकार करने को आसान बना देते हैं. 'अतिवादी', 'आतंकवादी', 'माओवादी' और 'जिहादी' जैसे शब्द सिर्फ इसी कारण हम पर थोपे जाते हैं. कश्मीर घाटी की हिंसा की तरह ही माओवादी हिंसा भी चेन्नई या कोलकाता नहीं पहुंची है, यह सिर्फ आदिवासी इलाकों तक ही सीमित है. हमारे शहरों में बारूदी सुरंग नहीं बिछायी गयी है और कॉरपोरेट कार्यालयों पर कब्जा नहीं किया गया है.

संघर्ष का तीसरा क्षेत्र पूर्वोत्तर है. यह भारत का वह हिस्सा है, जो मुगलों के अधीन नहीं रहा था. जनजातीय समूहों को अंगरेजों ने झुकाया और ये क्षेत्र काफी बाद में भारत में मिलाये गये हैं. 

कुछ जनजातियों ने 1947 से पहले भी विलय का प्रतिरोध किया था. उन्होंने अपनी हिंसा जारी रखी है. कई दशकों से भारतीय सेना, जो बड़ी संख्या में वहां तैनात है, इस प्रतिरोध को रोके हुए है. ध्यान रहे कि, पूर्वोत्तर के विद्रोही भी अपनी लड़ाई बेंगलुरु और हैदराबाद में नहीं लड़ रहे हैं. हमारे हवाईअड्डों पर कोई हमला नहीं किया गया है और न ही हमारे स्कूलों में बंधक बनाये गये हैं. 

आज लाखों कश्मीरी और पूर्वोत्तर के लोग भारत के शहरी केंद्रों में रहते हैं, जहां वे आजीविका के लिए पहुंचे हैं. उनके बारे में अक्सर यह खबर आती रहती है कि शहरों में उन्हें किराये पर घर देने से मना कर दिया गया, या उन पर उनकी पहचान के कारण हमले हुए. वे अपना संघर्ष अपने इलाकों में पीछे छोड़ कर आये हैं. यह कुछ ऐसा ही है कि ये मौतें और शोषण किसी और के देश में घटित हो रहे हैं.

इस मुख्य तथ्य ने भारतीय मध्य वर्ग को हमारे इन तीन संघर्षों की उपेक्षा के लिए तैयार किया है. वह हिंसा हमें जरा भी छूती नहीं है, इसलिए हम बड़ी आसानी से आधारभूत कारणों और शिकायतों से मुंह मोड़ लेते हैं. अपने ड्राइंग रूम से और अपने टेलीविजन स्टूडियो से इन सभी को हम ‘आतंकवाद' की संज्ञा दे देते हैं. हम इससे अपने को अलग कर सकते हैं और हम ऐसा कर पाने में भाग्यशाली हैं. इस कारण सरकार मनमाने ढंग से ऐसे लोगों के प्रति कठोर हो पाती है, क्योंकि इसकी कार्रवाई हम पर असर नहीं करती है और न ही उसमें हमारी कोई दिलचस्पी है.