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हिमाचल में उग सकेगा बेमौसमी अमरूद

सोलन। उत्तराखंड की तरह हिमाचल प्रदेश के बागबान भी अमरूद की बेमौसमी फसल उगा सकते हैं। इससे जहां उन्हें फसल के अच्छे दाम मिलेंगे, वहीं इससे फसल को बीमारियों से भी बचाया जा सकेगा। यह संभव है क्रॉप रेगुलेशन (बहार नियंत्रण) से। इस विधि से तैयार अमरूद को उत्तराखंड में करीब 8 माह तक लोगों को सड़कों के किनारे बेचते देखा जा सकता है। यह अमरूद बरसात के मौसम में होने वाले अमरूद से स्वाद व गुणवत्ता में श्रेष्ठ होता है।

यह बात उत्तराखंड के पूर्व बागबानी निदेशक व डॉ. परमार यूनिवर्सिटी नौणी के पूर्व निदेशक विस्तार शिक्षा डॉ. डीआर गौतम से दैनिक भास्कर से बातचीत में कही। उन्होंने बताया कि वर्तमान में हिमाचल प्रदेश में बरसात के मौसम में अमरूद की फसल आती है। इसके कारण इसमें फल में मक्खी व फंगस लग जाती है,जिससे अमरूद की गुणवत्ता व स्वाद प्रभावित होता है। इससे बागबानों को अपनी फसल औने-पौने दामों पर बेचनी पड़ती है। उन्होंने कहा कि क्रॉप रेगुलेशन से हम बरसात में होने वाली अमरूद की फसल को अक्टूबर से फरवरी माह के बीच ले सकते हैं।

क्रॉप रेगुलेशन की विधि
डॉ. डीआर गौतम के अनुसार अमरूद की फसल में नई वृद्धि से फूल की कलियां निकलते ही 100 ग्राम यूरिया को 10 लीटर पानी में घोल बनाकर 10 दिन के अंतराल में दो बार छिड़काव करें। इससे अधिकतर पत्ते झड़ जाएंगे और बाद में नई कोंपलें आएगी।

दूसरी विधि
इस समय नई कोंपलों को दो-तिहाई काट दें। इससे नई कोंपलें निकलेगी। इससे जुलाई-अगस्त में पौधों पर दोबारा फूल आएगा और अक्टूबर से फरवरी तक फसल तैयार होगी। यह अमरूद 50 से 60 रुपए प्रति किलोग्राम बिकता है। तीसरी विधि में सिंचाई वाले बगीचों में दिसंबर से जून तक सिंचाई बंद करना है, लेकिन यह विधि दक्षिण भारत में ही कारगर है। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश में अभी तक क्रॉप रेगुलेशन का कार्य नहीं होता। यदि हिमाचल के बागबान भी इन विधियों को अपनाएं तो वह अमरूद की अच्छी फसल ले सकते हैं।

परती व बारानी पर खेती
डॉ. गौतम ने बताया कि निचले पहाड़ी क्षेत्रों में परती/बारानी भूमि पर अमरूद की सफल खेती की जा सकती है। इन क्षेत्रों के बागबान मार्च से मई तक पौधों में फूल आते हैं, जिनके फल बरसात के मौसम में पकते हैं। बहुत कम स्थानों में अमरूद के पौधों पर जुलाई-अगस्त में फूल आते हैं और अक्टूबर के अंत से मध्य फरवरी तक फल तैयार होते हैं।