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हुंडरू में युवाओं ने सौर ऊर्जा से खोली आजीविका की अनोखी राह

रंगबिरंगी छतरी के नीचे खड़े कैमरा लटकाये इन युवाओं को देखिए. बेदिया जनजाति से आने वाले ये युवा स्वयं से रोजगार सृजन कर आत्मनिर्भर होने की अद्भुत मिसाल हैं. इन युवाओं ने रोजगार के लिए फोटोग्राफी के हुनर को अपनाया है और वह भी ऐसी जगह पर जहां बिजली की आपूर्ति नहीं  है. सौर ऊर्जा को बिजली के विकल्प के रूप में अपनाया और नयी  तकनीक का इस्तेमाल करते हुए ये आज अपने परिवार का भरण पोषण तो कर ही रहे हैं, साथ ही अपनी जिंदगी को एक बेहतर दिशा देने के लिए भी प्रयासरत हैं.

हुंडरू फॉल - रांची से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर एक झरना है, जो अब राज्य का एक नामी पर्यटन स्थल के रूप में जाना जाता है. यदि आप इस जगह घुमने गये हों और किसी कारण वश आपके पास  निजी कैमरा मौजूद नहीं है, तो आपके हुंडरू फॉल के सफर को यादगार बनाने में ये युवा काफी मददगार होंगे. इस पर्यटन स्थल पर ये युवा फोटोग्राफी करते दिख जायेंगे. फोटो खींचा और दस मिनट में फोटो की कॉपी आपके हाथों में. दो से पांच किलोमीटर के दायरे में आने वाले गांवों के  इन युवाओं ने स्वयं से स्वयं के लिए  रोजगार का सृजन किया है. 16 से 21 वर्ष उम्र के ये युवा किसी सरकारी सुविधा, तकनीकी प्रशिक्षण अथवा बिजली की उपलब्धता के बिना ही अपनी पूरी क्षमता और दक्षता के साथ अपना रोजगार कर रहे हैं.

बिजली नहीं, जुगाड़ र्फामूला है कारगर
हुंडरू झरना के पास पहुंचने पर पता चला कि यहां पर बिजली आपूर्ति की कोई सुविधा ही नहीं हैं. बिजली की कमी को पूरा करने के लिए ये युवा सोलर ऊर्जा का इस्तेमाल करते हैं जो इनकी कुशलता और बुद्धिमता का अनूठा परिचय देती है. इनमें से एक हैं-अजय बेदिया. पास के ही हुंडरू गांव के रहने वाले हैं.  इंटर फाइनल की परीक्षा दी है. पिछले तीन सालों से इस पर्यटन स्थल पर फोटोग्राफी का काम कर रहे हैं. अजय बताते हैं कि इस काम की शुरुआत सबसे पहले नित्यानंद नाम के एक युवा जो उसी क्षेत्र के एक गांव का रहने वाला है, ने शुरुआत की थी. सबसे पहले उसी ने एक फोटो प्रिंटर खरीदा था. उस समय वह यहां पर फोटोग्राफी किया करते थे. धीरे धीर इसकी जानकारी अन्य लड़कों को हुई और वे भी  रोजगार करने यहां आ गये. आज कुल मिला कर 16 लड़के फोटोग्राफी के इस रोजगार से जुड़े हैं.

सोलर ऊर्जा बनी बिजली का विकल्प
हुंडरू झरना के आसपास ऐसे कई रंग बिरंगी छतरियों वाले मचान (स्टाल) मिलेंगे. सभी का अपना मचान है. मचान में फोटोग्राफी के लिए जरूरी वस्तुएं हैं. एक टेबुल है, जिस पर प्रिंटर रखा है. साथ में सादे कार्ड रखे हैं और नमूने के तौर पर पर्यटकों को दिखाने के लिए फोटो लगे हुए एलबम भी.  प्रिंटर के तार से लगी एक बड़े आकार की बैटरी है, जिसे एक सोलर प्लेट से जोड़ दिया गया है. यह बैटरी को चार्ज करता रहता है. अजय बेदिया कहते हैं : बिजली के बिना बैटरी अधिक देर तक काम नहीं करती. इसे देखते हुए हमने सोलर प्लेट की व्यवस्था की और अब यहां पर दिन भर इसे चार्ज करते हैं और काम करते हैं.

यह पूछने पर कि अभी वो कौन-सा कैमरा इस्तेमाल करते हैं, वह बताते हैं कि पहले तो एक छोटा कैमरा निकॉन से काम करना प्रारंभ किया था, लेकिन जब हुनर आया तो अब बड़ा कैमरा इस्तेमाल कर रहा हूं. कैमरा के लिए पूंजी नहीं थी, तो कर्ज लिया और काम की शुरुआत की.  मानव बेदिया भी हाल ही में इस रोजगार से जुड़े हैं. नजदीक के ही गांव हुंडरू जर्रा में रहते हैं.

दसवीं पास हैं. पिता छोटी से होटल चलाते हैं. स्कूल जाते थे लेकिन अब नहीं जाते. मानव कहते हैं : पिता ने एक दिन पूछा  कि प्रिंटर खरीद दें तो काम कर सकोगे तो कहा कि हां करेंगे. फिर एक दिन रांची से प्रिंटर खरीदा और यहां मचान बनाया. फोटो खींचने के काम की शुरुआत की. लेकिन कहते हैं कि बिजली नहीं है तो अधिक देर तक काम नहीं कर पाते थे, इसलिए एक सोलर चाजर्र लिया और अब बैटरी उसी से चार्ज कर दिन भर यहीं काम करते हैं.  कितना कमा लेते हैं? यह सवाल किये जाने पर उनका जवाब था : नवंबर से सीजन प्रारंभ होता है, दिसंबर, जनवरी और फरवरी तक पर्यटकों की भीड़ आती रहती है. नये साल के मौके पर तो दिन भर की आमदनी औसतन 5000 से 6000 रुपये तक हो जाती है. सीजन के समय में तो महीना का 30,000 रुपये तक कमा लेते हैं.

सौंदर्यीकरण हो तो बढ़ेगा रोजगार
अजय बताते हैं कि सुबह आठ बजे यहां पर पहुंच जाते हैं और शाम पांच बजे तक यहीं रहते हैं. यही उनकी  दिनचर्या है. अजय प्रिंटर दिखाते हुए कहते हैं : कैमरा से फोटो खींच कर इसके मेमोरी कार्ड को प्रिंटर में लगाते हैं और इसी में स्क्रीन है. फोटो का चुनाव कर उसे प्रिंट कर ग्राहक को दे देते हैं. एक फोटो का मात्र 30 रुपया मूल्य लेते हैं. अजय के साथ यहां बेदिया जनजाति के कई युवा इस रोजगार से जुड़े हैं.

इन युवाओं से यह पूछने पर कि क्या इसके लिए कोई प्रशिक्षण अथवा सरकारी योजना का लाभ लिया है वो कहते हैं नहीं, इसके लिए कोई प्रशिक्षण नहीं लिया, थोड़ी बहुत ट्रेनिंग बड़ों से ली है लेकिन फोटो खींचते खींचते  इस कला की बारीकियों की अच्छी जानकारी हो गयी है. अजय का मानना है कि इस स्थल का और सौंदर्यीकरण होने से पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी तो और कई युवाओं को यहां रोजगार मिल सकेगा. बिजली की यदि सुविधा कर दी जाये तो बैटरी, सोलर प्लेट जैसी चीजों को रोजाना गांव से ढो कर लाना ले जाना नहीं होगा और काम करने में आसानी होगी.  

हालांकि इस ग्रामीण क्षेत्र के युवा अपने स्वावलंबन की राह खुद निकाल रहे हैं, लेकिन इस पंचायत के मुखिया की पर्यटन विभाग से कुछ शिकायत भी है. जिले के अनगड़ा प्रखंड के कुच्चू पंचायत के अंतर्गत आने वाला हुंडरू झरना पर्यटन स्थल राज्य के पर्यटन विभाग की उपेक्षा का दंश ङोल रहा है. पंचायत के मुखिया रमाकांत शाही बताते हैं कि हुंडरू झरना प्राकृतिक सौंदर्य के साथ प्राचीन देवी देवताओं का भी स्थल रहा है और इसलिए हम इस पर्यटन स्थल के विकास के लिए हर संभव काम करना चाहते हैं. लेकिन हमारे प्रयास को किसी प्रकार की तवज्जो नहीं मिलती. पर्यटन विभाग हमें इस पर्यटन स्थल के विकास के किसी प्रकार की योजनाओं तथा कार्यो में शामिल नहीं करता.

आदिवासी पिछड़ा क्षेत्र होने के कारण यहां के लोग इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं. वह कहते हैं : पर्यटन विभाग को यहां की ग्रामसभा या पंचायत से कोई मतलब ही नहीं है. जो भी हो रहा है वह पर्यटन विभाग की मन मरजी से हो रहा है. इस पर्यटन स्थल को इस प्रकार से विकसित करने की हमारी योजना है कि यहां के ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं को अपने गांव क्षेत्र में रोजगार मिल सके और उन्हें पलायन की जरूरत ही न पड़े.  पर्यटन से अजिर्त की जाने वाली राशि का कोई भी हिस्सा ग्रामसभा के विकास में नहीं लगाया जाता है. जबकि यहां पर टिकट से पैसा वसूला जा रहा है, मगर इसका कोई हिसाब-किताब नहीं दिया जाता और ना ही हमें इस काम में शामिल किया जाता है. कितने पर्यटक आये, कितना टिकट काटा गया और कितनी राशि संग्रह हुई, इसकी कोई जानकारी नहीं दी जाती है. जमीनी स्तर पर पर्यटन का विकास जिस तरह से होने चाहिए नहीं हो रहा है.  उनका मानना है कि यदि इस क्षेत्र को बेहतरीन पर्यटन स्थल बनाने की जिम्मेवारी पंचायत को दी जाये और पंचायत अपने नियमों के तहत यहां विकास करें तो उल्लेखनीय बदलाव आ सकेगा.