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हेमंत सोरेन ने कहा, खनिजों का दंश भोग रहा है झारखंड

रांची. 14 वें वित्त आयोग के समक्ष झारखंड का पक्ष रखते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा : खनिज संपदा से परिपूर्ण होने के बावजूद झारखंड के लोग गरीब हैं. पूरे देश का पोषक माना जानेवाले झारखंड का एक तरह से शोषण हो रहा है.

राज्य की खनिज संपदा के बदले मिलनेवाली सालाना तीन हजार करोड़ की रॉयल्टी बिल्कुल नगण्य है. खनिजों के बदले झारखंड बहुत कुछ खो रहा है. हमारा पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है. नदियां प्रदूषित हो रही हैं. ध्वनि प्रदूषण बढ़ रहा है. खनिजों के आस-पास रहनेवाले लोगों का स्वास्थ्य गिर रहा है. खनन की वजह से विस्थापन हो रहा है. यूरेनियम के खनन क्षेत्र में विकलांग बच्चों का जन्म हो रहा है. आज झारखंड के लोग यह सोचने पर मजबूर हैं कि खनिज संपदा राज्य के लिए वरदान है या अभिशाप. खनिज संपदाओं के उत्खनन से होनेवाले प्रदूषण का दुष्प्रभाव पूरा राज्य ङोल रहा है. 

उन्होंने कहा : खनिजों से भरे ट्रकों का परिचालन होने के कारण वैसी सड़कें जिन्हें पांच साल तक चलनी चाहिए, साल भर में ही टूट जा रही हैं. खनन क्षेत्र की भूमि कृषि के लिए अनुपयोगी हो जाती है. खनन क्षेत्रों की बहुलता के कारण बड़े पैमाने पर गरीब अनुसूचित जनजाति व अनुसूचित जाति के लोगों का विस्थापन हो रहा है. अगर इन सब का मूल्यांकन किया जाये, तो पता चलेगा कि झारखंड को खनिजों से लाभ कम और नुकसान अधिक हो रहा है. झारखंड के लोग खनिजों के कारण अभिशाप भोग रहे हैं. खनन बंद कर देने से समस्या का समाधान नहीं होगा. झारखंड में खनन बंद करने पर पूरे देश में समस्या उत्पन्न हो जायेगी. खनिज संपदाओं के संरक्षण के लिए दी जानेवाली कुरबानी के लिए राज्य को पर्याप्त मुआवजा मिलना ही चाहिए.

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा : झारखंड जब राज्य बना था, तो अक्सर चर्चा होती थी कि खनिज तथा वन संपदा से भरपूर इस क्षेत्र को धरती का स्वर्ग बनाया जा सकता है. आज 13 वर्ष बीत गये, इस अवधि में नया राज्य गठन के समय जनता द्वारा देखे गये सपने पूरे नहीं हुए हैं. कई कमियां रही हैं. पदाधिकारियों, व्यवस्थाओं जैसी आधारभूत जरूरतों की भी कमी रही है. राज्य सरकार द्वारा धीरे-धीरे कमियों को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है. बावजूद इसके अभी भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा : ऐसा कोई मापदंड, जो राज्य की वास्तविक गरीबी व आधारभूत संरचना के अभाव को सही तरीके से नहीं दिखाता हो, उसका उपयोग नहीं किया जाना चाहिए. जीएसडीपी के आंकड़े राज्य की सही आर्थिक तसवीर को पेश नहीं करते. राज्य के जीएसडीपी और पर कैपिटा इनकम को आधार मान कर केंद्र से राज्य को राशि प्राप्त होती है. राज्य में जितना भी खनिज का उत्पादन होता है, उन खनिजों की पूरी कीमत जीएसडीपी का हिस्सा बन जाता है. इसी कारण प्रति व्यक्ति आय का आंकड़ा भी वास्तविकता से कहीं अधिक प्रतिवेदित होता है, जो बिल्कुल उचित नहीं है.

मुख्यमंत्री ने कहा : आम तौर पर वित्त आयोग द्वारा कई प्रकार की राशि की विमुक्ति को कई शर्तों तथा सुधारों से जोड़ दिया जाता है. इन शर्तों का अनुपालन विकसित राज्यों के लिए आसान होता है, लेकिन झारखंड जैसे पिछड़े राज्यों के लिए इन कड़ी शर्तों का पालन करना बहुत मुश्किल है. ऐसी कोई भी शर्त या रिफॉर्म का एजेंडा जो अप्रत्यक्ष रूप से विकसित एवं पिछड़े राज्यों में भेदभाव करे, उसे आयोग द्वारा नहीं अपनाया जाना चाहिए.

श्री सोरेन ने कहा : राज्य का 30 प्रतिशत हिस्सा वनों से अच्छादित है. इस वन क्षेत्र में झारखंड बनने के बाद 450 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र का इजाफा भी हुआ है. सुप्रीम कोर्ट के निदेश से जंगल-झाड़ की भूमि को भी वन क्षेत्र माना जाता है. इस वजह से किसी योजना का एक अंश भी वन भूमि में पड़ता है, तो योजना पूरी करने के लिए भारत सरकार की अनुमति प्राप्त करनी होती है. अनुमति प्राप्त करने में सालों लग जाते हैं. तब तक संबंधित परियोजना की लागत दोगुनी या तीन गुनी हो जाती है. इस कारण छोटी या बड़ी परियोजनाओं के कार्यान्वयन में देर तो होती है, साथ ही परियोजना लागत बढ़ने से विकास की योजनाओं में कमी भी करनी पड़ती है. जिससे राज्य का विकास प्रभावित होता है.

मुख्यमंत्री ने कहा : आधारभूत संरचना के विकास में राज्य को केंद्र से विशेष सहयोग की आवश्यकता है. बेरोजगारी और सरकारी नौकरी की कमी के कारण युवाओं में असंतोष बढ़ रहा है. इस बिंदु पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. आयोग की अपनी अनुशंसा में आधारभूत संरचनाओं के विकास के साथ ही साथ कौशल में विकास के लिए भी काफी राशि देनी चाहिए, जिससे बेरोजगार युवक स्वरोजगार में लग सकें.

राज्य में वामपंथी उग्रवाद की समस्या पर बल देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा : राज्य के विकास में उग्रवाद एक बड़ी बाधा है.  राज्य ने अपने स्तर से इस समस्या से निबटने की काफी कोशिश की है. उग्रवाद नियंत्रण के लिए केंद्र सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयासों में भी राज्य ने कंधे से कंधा मिला कर काम किया है. सारंडा और सरयू में की गयी सामूहिक कोशिश से उग्रवाद से निबटने के विकासात्मक समाधान के रूप में सामने आये हैं. यह अनुभव अन्य क्षेत्रों में भी  लाभकारी सिद्घ हो सकता है.