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हौसले के पंख से मिली मंजिल

राजगंज, धनबाद [शुभंकर राय]। कहते हैं हौसले हों बुलंद तो कोई भी कार्य नामुमकिन नहीं। इसे सच कर दिखाया है एक ग्रामीण महिला गीता ने। अथक प्रयास व अदम्य साहस के साथ बुलंद हौसले ने पहले तो खुद को कामयाबी दिलाई। इसके बाद उनके प्रयास से आसपास की सैकड़ों महिलाओं की जिंदगी में नया सबेरा आया।

हौसले के पंख से उसे मंजिल मिल गई। स्वावलंबन के साथ विकास की बहुआयामी किरणों से पूरा इलाका रोशन हो गया। यह कहानी उस ग्रामीण महिला की है जो 16 वर्ष की उम्र में ब्याही गई। उस वक्त वह निरक्षर थी। पति भी विकलांग।

औरों की तरह ब्याही गई यह महिला गीता जब ससुराल धारकिरो आई तो सब कुछ ठीक-ठाक नहीं था। खुद तो पढ़ी-लिखी नहीं थी। ऊपर से पति पैर से कुछ विकलांग। बच्चे हुए। उसके समक्ष यह बड़ी मुश्किल घड़ी थी कि आगे बढ़े तो कैसे, बच्चों को पढ़ाए तो कैसे, लेकिन हौसले के पंख ने उसे मंजिल तक पहुंचा दिया। उसके हौसले और पति की प्रेरणा उसे देहरी से बाहर निकली। पहले तो अपनी बेटियों को पढ़ाई के लिए प्रेरित किया फिर बेटी से सीख लेकर खुद पढ़ना-लिखना शुरू की। बेटी ने मैट्रिक परीक्षा दी और उसने मध्यमा।

इसके बाद तो मानो समाज सेवा के हौसले को पंख लग गए। गीता चली दूसरों को जगाने। यह आठ वर्ष पूर्व 2002 की बात है। उसने कई नरेगा मजदूरों को मस्टर रोल पर अंगूठा लगाकर मजदूरी पाते थे उन्हें उसने हस्ताक्षर करना तथा बैंक व पोस्टआफिस के खाते पैसा निकालना सिखाया। अब तक 40 मजदूरों को वह साक्षर बना चुकी है और यह अभियान आज भी जारी है। मजदूरों को बताया कि उनका हक क्या है।

कई जगहों पर निरक्षर मजदूरों से नरेगा के कार्य में तीन दिन का हाजिरी के बदले छह दिन की हाजिरी पर अंगूठा का निशान लगवा लिया जाता था। जब मजदूर साक्षर होने लगे तो यह हेराफेरी रुक गई। यही नहीं बुजुर्ग मजदूरों को बताया के बेटा-बेटियों के भरोसे नहीं रहकर अपने भविष्य के लिए भी कुछ करें। उनसे रोजाना पांच रुपया जमा करने को कहा।

वहीं महिलाओं को बताया कि बिना सरकारी मदद के भी कुटीर उद्योगों से भी जिंदगी संवर सकती है। इस क्रम में उसने महिलाओं के 21 स्वयं सहायता समूह गठित करने में महत्वपूर्ण निभाई। इस बालिकाओं को बाल विवाह कानून समेत सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ जागरूक करने का काम कर रही है। उसके काम का ही नतीजा है कि गीता का ग्राम शिक्षा समिति की अध्यक्ष चुनी गई। वह धारकिरो मध्य विद्यालय में शिक्षकों के कमी होने पर खुद बच्चों को पढ़ाने लगीं। इसके लिए कोई पारिश्रमिक नहीं। उसके काम से प्रभावित होकर सतत शिक्षा अभियान में प्रेरक बनाया गया।

गत वर्ष एक अक्टूबर 2009 को गीता देवी धावाचिता नोडल महेशपुर पंचायत की नरेगा प्रेरक के लिए चुनी गई। गीता के एक बेटा व दो बेटियां हैं। बेटा नरेगा मजदूर के रूप में काम करता है जबकि इंटर पास पति घर पर ट्यूशन पढ़ाते हैं। खुद गीता समाज को जागरूक करने में भिड़ी हुई हैं। उसे इस बात से संतुष्टि मिल रही है कि उसकी जिंदगी समाज के एक बड़े वंचित वर्ग के जीवन में नवविहान लाने में काम आ रही है।