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हौसले के हथौड़े से टूटे पहाड़

कोडरमा। झरखी-विशनपुर गांव के लोगों ने हौसले के हथौड़े से पहाड़ों का सीना चाक कर अपना रास्ता बना लिया। जनप्रतिनिधियों व प्रशासनिक अधिकारियों ने जब फरियाद नहीं सुनी तो ग्रामीणों ने स्वयं सड़क बनाने का बीड़ा उठाया और उनके अदम्य साहस के आगे जंगल-पहाड़ सभी नतमस्तक हो गए। दुर्गम पहाड़ों-जंगलों के बीच से झरखी से जरगा तक करीब सात किलोमीटर लंबी सड़क का 70 प्रतिशत काम चार महीनों में पूरा कर लिया है। करीब पांच किमी लंबी सड़क बन चुकी है, मात्र दो किमी शेष है जो दो-तीन माह में बन जाएगी।

जानकारों के अनुसार दुर्गम पहाड़ों व जंगलों से घिरे झरखी-विशनपुर से जरगा तक यदि सरकारी खर्च पर कच्ची सड़क बनवाई जाए तो एक करोड़ रुपये से ज्यादा लागत आएगी। वह भी बगैर डोजर व अन्य मशीनों की सहायता के सड़क निर्माण संभव नहीं है। दूसरी ओर, ग्रामीण श्रमदान और सामान्य औजारों से सड़क बना रहे हैं।

कोडरमा जिला अंतर्गत कोडरमा प्रखंड की जरगा पंचायत का हिस्सा झरखी-विशनपुर गांव जाने के लिए कोई सड़क नहीं है। यह गांव जरगा से करीब सात किमी दूर है। गांव की आबादी करीब तीन हजार है। किसी व्यक्ति को बीमार पड़ना यहां अभिशाप है। अक्सर बीमार व्यक्ति अस्पताल तक नहीं पहुंच पाता, रास्ते में ही दम तोड़ देता है। ग्रामीण दरोगी सिंह के अनुसार पिछले दस वर्षो में तीस लोगों की मौत अस्पताल ले जाने के दौरान रास्ते में जंगलों के बीच हो चुकी है।

जब किसी ने नहीं सुनी गांव लोगों ने सितंबर 2009 में बैठक कर सड़क निर्माण में दीवार की तरह बाधक बने पहाड़ों का सीना चाक करने का निर्णय लिया। युवा वर्ग ज्यादा जोश खरोश के साथ आगे बढ़े। फिर क्या था, क्या बच्चे, क्या बूढ़े, यहां तक कि महिलाओं ने भी साथ दिया। आज 5 बड़ी पहाडि़यों में तीन पर ग्रामीणों ने फतह हासिल कर करीब पांच किमी लंबी और 12 फीट चौड़ी सड़क बना ली है। इसके बाद दो अन्य पहाड़ों की चुनौती अब ग्रामीणों के लिए आसान दिखने लगी है। उनका दावा है कि अगले दो-तीन माह में सड़क आवागमन के लिए तैयार हो जाएगी। सप्ताह के प्रत्येक सोमवार को करीब दो-तीन सौ ग्रामीण रोड निर्माण का काम अपने श्रमदान से करते हैं। स्थानीय ग्रामीण सरयू सिंह, दरोगी सिंह, मुंद्रिका सिंह, गनौरी सिंह, कैलाश सिंह, प्रदीप सिंह, मनोज सिंह, सुनील कुमार, नंदू सिंह, विजय सिंह आदि का कहना है कि सड़क निर्माण के बाद आवागमन की भयंकर समस्या से निजात मिल जाएगी। ग्रामीणों का कहना है कि यदि प्रशासन उनकी समस्याओं पर गंभीर होता तो आज स्थिति कुछ और होती।