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‘तुम हमें जमीन दो, हम तुम्हें फायदे में हिस्सा देंगे’ : हरीश गुप्ता

नई दिल्ली.  एक 'लोकलुभावन' पहल के तहत खनन मंत्रालय ने प्रस्ताव किया है कि कंपनियों ने जिन लोगों की जमीन खनन के लिए अधिग्रहीत की हैं, उन्हें लाभ का एक निश्चित हिस्सा दिया जाएगा। उधर ग्रामीण विकास मंत्री विलासराव देशमुख ने तो इससे भी आगे बढ़कर मास्टर स्ट्रोक जड़ दिया है। 


उत्तरप्रदेश के भट्टा परसौल में मायावती सरकार की जमीन अधिग्रहण प्रक्रिया के विरोध में किसानों के प्रदर्शन की पृष्ठभूमि में महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देशमुख ने राहुल गांधी का दिल जीतने की कोशिश की है।


देशमुख ने जून मध्य से शुरू होने वाले संसद के मानसून सत्र में पेश होने के लिए तैयार जमीन अधिग्रहण विधेयक में एक नया प्रावधान शामिल किया है। इसके तहत अधिग्रहित जमीन से उद्यम को होने वाले फायदे का 80 प्रतिशत किसानों को मुआवजे के रूप में देने का प्रस्ताव रखा गया है।


यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने प्रदर्शनकारियों को आश्वस्त किया है कि नए जमीन अधिग्रहण कानून में किसानों के हितों का ध्यान रखा जाएगा। इसी को आगे बढ़ाते हुए देशमुख ने कहा कि लैंड डेवलपर्स को अपने लाभ का 80 प्रतिशत का भुगतान उन किसानों को करना होगा, जिनकी जमीन ली गई है। इससे जमीन के लिए मोल-भाव करने की किसान की संभावनाएं खत्म नहीं होंगी और बिल्डर उनका शोषण भी नहीं कर सकेंगे।


देशमुख ने एक बिजनेस चैनल से बातचीत में कहा कि जमीन के अधिग्रहण के समय दिए गए नगद मुआवजे के अलावा डेवलपर्स को इस राशि का भुगतान किसानों को करना होगा। उन्होंने उदाहरण दिया कि एक किसान की एक एकड़ जमीन के लिए एक लाख रुपए दिए गए।


बाद में वह जमीन 30 लाख रुपए में बेची गई। ऐसे में विकास की लागत और करों को चुकाने के बाद हुए लाभ के 80 प्रतिशत का भुगतान किसान को करना होगा।


कहां क्या व्यवस्था


हरियाणा की कांग्रेस सरकार ने किसानों को जमीन अधिग्रहण के 30 सालों तक प्रतिवर्ष प्रति एकड़ 10 हजार रुपए देने की व्यवस्था की है। मुआवजे की दर भी बढ़ाकर 20 लाख रुपए प्रति एकड़ निर्धारित की है।


उत्तरप्रदेश की बसपा सरकार ने इससे आगे बढ़कर प्रति एकड़ 15 हजार रुपए 33 सालों तक भुगतान करने की व्यवस्था की है।