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…ताकि आचमन योग्य बन सके हरियाणा में यमुना का पानी

सजला और पुण्य सलिला कही जाने वाली यमुना की दुर्दशा दिल्ली के बाद सबसे अधिक हरियाणा में ही हुई है। यमुनानगर से ही यमुना मैली होना शुरू होती है और पानीपत पहुंचते-पहुंचते इसका पानी पशुओं के पीने लायक भी नहीं रहता। यमुना को शुद्ध करने के प्रयास हुए, लेकिन ये कागजों में दबे रहे। अब नये सिरे से प्रदेश सरकार यमुना को मैला होने से रोकने का प्रयास कर रही है। इसके लिए पानीपत से नमामी गंगे अभियान शुरू हो रहा है। सरकार की मंशा है कि यमुना के साथ लगते हरियाणा के जिलों का गंदा पानी ट्रीट किए बिना किसी सूरत में यमुना तक नहीं पहुंचना चाहिए।

1995 में शुरू हुआ सफाई अभियान : जहां तक हरियाणा का मुद्दा है, यमुना को प्रदूषण मुक्त करने के लिए लगातार कोशिशें होती रही हैं, लेकिन सार्थक परिणाम नहीं निकले। 25 फरवरी 1995 को यमुनानगर में तत्कालीन मुख्यमंत्री भजनलाल ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री कमलनाथ की अध्यक्षता में यमुना शुद्धिकरण परियोजना की आधारशिला रखी थी। इसके तहत हरियाणा के विभिन्न जिलों में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित किये थे। अब इनमें से अधिकतर प्लांट बंद हो चुके हैं और प्रदेश के ज्यादा जिलों का सीवरेज व नालों का पानी सीधा यमुना में गिराया जा रहा है।

कई योजनाएं बनी, नहीं चढ़ी सिरे : भारत में नदियों की सफाई 1985 में गंगा एक्शन प्लान के साथ शुरू हुई थी। इसका लक्ष्य गंगा के जल की गुणवत्ता को पुर्नस्थापित करना था। इसके साथ ही जापान बैंक (जेबीआईसी) के सहयोग से भारत सरकार के यमुना एक्शन प्लान चरण-एक शुरू हुआ। यमुना एक्शन प्लान में 3 राज्य उत्तर प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा आते हैं। यमुना एक्शन प्लान चरण-एक को अप्रैल 2002 में पूरा होना था, लेकिन परियोजना 2003 तक चलती रही। शुरुआत में 15 शहरों (जिनमें से 6 हरियाणा, 8 उत्तर प्रदेश और एक दिल्ली में हैं) में प्रदूषण घटाने का फार्मूला तैयार किया गया था। इसके लिए जेबीआईसी ने 17.77 करोड़ येन का कर्ज दिया था। हरियाणा (6 अरब येन), उत्तर प्रदेश (8 अरब येन) और दिल्ली (3.7 अरब येन) दिए गए।

हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने अप्रैल-1996 में हरियाणा के 6 और शहरों को इसमें शामिल करने का आदेश दिया। कुल मिलाकर 21 शहर यमुना एक्शन प्लान के दायरे में आए। यमुना एक्शन प्लान के चरण एक के बावजूद नदी की गुणवत्ता वांछित मानकों तक नहीं लाई जा सकी। ऐसा पाया गया कि दिल्ली के मलवहन घटक को कम करके आंका गया और महानगर की सरकार ने यमुना एक्शन प्लान के समानांतर तैयार किए मल उपचार संयंत्रों की क्षमता का अब भी पूरा उपयोग नहीं किया गया है।

 

दिल्ली में यमुना नहीं, नालों का पानी

दरअसल, दिल्ली में जो यमुना आती है, सही मायने में वह यमुना का असली स्वरूप ही नहीं। हथिनी कुंड बैराज से पानीपत तक करीब 100 किलोमीटर के हिस्से में यमुना सामान्य तौर पर बिल्कुल सूखी रहती है। यहां पर यमुना में जो पानी बहता है, वह आसपास के नालों से छोड़ा गया गंदा पानी ही है। यमुना के साफ पानी को तो पश्चिमी यमुना नहर से छोड़ा जाता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक हथिनी कुंड बैराज पर यमुना के पानी को पूरी तरह रोक लिया जाता है। वहां से इसे खेती के इस्तेमाल के लिए नहरों के माध्यम से छोड़ा जाता है। इसके अलावा हथिनी कुंड बैराज से निकलने वाली नहरों से ही हरियाणा के शहरों की पानी की जरूरतें पूरी की जाती हैं।

 

यमुना एक्शन प्लान चरण-2

भारत के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने दिसंबर-2004 में यमुना एक्शन प्लान का चरण-2 शुरू किया। इसे सितंबर-2008 में पूरा किया जाना था। यमुना एक्शन प्लान का चरण एक में पूरा किए गए कार्यों के आधार पर जेबीआईसी ने 2003 को 13.33 अरब येन की राशि स्वीकृत की। चरण-दो के लिए स्वीकृत कुल बजट 6.24 अरब रुपए था जिसे दिल्ली (3.87 अरब), उत्तर-प्रदेश (1.24 अरब), हरियाणा (63 करोड़), क्षमता निर्माण अभ्यास (50 करोड़) और पीएमसी-टीईसी कंसोर्टियम के बीच बांटा गया। इस चरण का कार्यकाल मार्च 2011 तक बढ़ाया गया। इसके बाद भारत सरकार ने दिसंबर-2011 में यमुना एक्शन प्लान चरण-3 को स्वीकृति दी। इसका अनुमानित बजट 16.56 अरब रखा गया और इसके केंद्र में दिल्ली को रखा।