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ये मुखिया मैडम भी हैं और सहिया दीदी भी

पूर्वी सिंहभूम के पोटका पंचायत की मुखिया पानो सरदार रोज सुबह सवेरे अपनी साइकिल पर सवार होकर निकल जाती हैं और अपने गांव के घर-घर जाकर लोगों को स्वास्थ्य से जुड़े मसलों पर जागरूक करती हैं और अगर कोई व्यक्ति रोग से पीड़ित नजर आया तो उसे अस्पताल ले जाकर उसका इलाज भी करवाती हैं. उनकी इस यात्र के दौरान गांव के लोग उनसे मिलकर पंचायत से जुड़ी समस्याओं का निराकरण भी उनसे करवा लेते हैं. दरअसल पानो सरदार मुखिया होने के साथ-साथ सहिया भी हैं और गांव के लोग मानते हैं कि वे दोनों जिम्मेदारियां ठीक तरीके से निभा रही हैं.

सहिया के तौर पर अनुकरणीय है उनका काम काज
पानो सरदार आज भले ही मुखिया है मगर सहिया के तौर पर उनके काम-काज की इलाके भर में मिसाल दी जाती है. प्रसव के मरीजों को अस्पताल पहुंचाने और गंभीर मरीज होने की स्थिति में एमजीएम लेकर जाने में भी वह जरा भी नहीं हिचकिचाती है. गर्भवती महिलाओं तथा नवजात शिशुओं को आंगनबाड़ी केंद्र तक ले जाकर उनका रजिस्ट्रेशन कराती हैं. बीसीजी के टीकाकरण के लिए भी महिलाओं को प्रेरित करती हैं ताकि बच्चे समयानुसार टीका लगवा सकें. गांव में स्वास्थ्य समिति भी है जहां नाला, नलकूप, कुआं, तालाब जाने के रास्ते की साफ-सफाई भी स्वास्थ्य समिति के द्वारा ही होती है.

2007 में चुनी गयी थी सहिया
पानो सरदार बताती हैं कि सहिया के रूप में उनका चयन ग्राम सभा में 2007 में किया गया था. वे तब से सहिया के काम-काज को बखूबी निभा रही हैं. दरअसल सहिया का काम-काज अब उनके जीवन में इतना रच बस गया है कि वे इससे खुद को अलग देख ही नहीं पातीं. वे कहती हैं कि मुखिया के पद पर उनकी जीत का कारण भी सहिया के रूप में उनकी बनी पहचान ही है. इलाके भर के लोग उन्हें बेहतर सहिया के तौर पर पहचानते थे, जिससे उन्हें मुखिया के रूप में चुनने में कोई परेशानी नहीं हुई.

दोनों काम एक साथ करने का फैसला
पानो बताती हैं कि जब उन्होंने मुखिया पद के लिए चुनाव जीत लिया तो उनके गांव सरमंदा के लोगों ने उनसे पूछा कि वे अब क्या करेंगी. कौन से पद को स्वीकारेंगी और किस पद को छोड़ देंगी? गांव के लोगों को लगता था कि पानो मुखिया बन गयी तो उन्हें दूसरी ऐसी सहिया दीदी कहां मिलेगी. ऐसी में पानो ने फैसला किया कि वह दोनों काम एक साथ करेंगी.

मुस्तैदी से टलती है परेशानियां
यह पूछे जाने पर कि दोनों काम एक साथ करने पर उन्हें कोई परेशानी तो नहीं होती, पानो कहती हैं, वे इसके लिए मुस्तैद रहती हैं कि एक काम के कारण दूसरा काम खराब न हो. वे टीकाकरण के दो दिन पहले ही पूरे गांव में घूम कर लोगों को बता देती हैं और सूची बना लेती हैं कि किस-किस को टीका दिलाना है. उनका स्वास्थ्य केंद्र गांव से महज एक किमी की दूरी पर ही है सो वे शार्ट नोटिस पर भी हाजिर हो जाती हैं और लोगों को परेशानी नहीं होने देती.

बैठक में जाती है तो भी नहीं होती परेशानी
अगर किसी प्रशिक्षण या प्रखंड स्तरीय बैठक में शामिल होने के लिए बाहर जाना पड़ा तो वे एएनएम या गांव की किसी महिला को सूचित करके जाती हैं. चुकि प्रखंड मुख्यालय भी ज्यादा दूर नहीं है सो लोगों को आम तौर पर परेशानी नहीं होती.

बेहतर काम के लिए मिला पुरस्कार
जहां तक मुखिया के काम-काज का सवाल है उसमें तो कोई दिक्कत होने का सवाल ही नहीं उठता. वे इस काम के लिए तो प्रतिबद्ध है ही. उनके मुखिया के तौर पर योगदान के लिए उन्हें राज्य ग्रामीण विकास संस्थान, पंचायतनामा और यूनिसेफ की ओर से हाल ही में पुरस्कृत भी किया गया है. इन्हें यह पुरस्कार अपने क्षेत्र की स्कूलों और आंगनबाड़ी केंद्रों की जमीन का समतलीकरण कराने,अपने क्षेत्र की लड़कियों को शिक्षा से जोड़ने, कुपोषण के खिलाफ जंग की शुरुआत करने और एक प्रमुख पथ का मुरमीकरण कराने के लिए दिया गया है.

मां आदर्श थी पानो की
पानो जब स्कूल में पढ़ती थी तभी से ही उनकी तमन्ना कुछ सार्थक करने की थी. उनका आदर्श थी उनकी माता जिनकी एक बात पानो ने गांठ बांध कर याद कर लिया था. उनकी मां कहा करती थीं कि पढ़ लिख कर औरों के विकास के लिए आगे रहोगी तो जमाना तुम्हारे पीछे रहेगा. यदि तुम पीछे रहोगी तो लोग तुम्हारे आगे ही रहेंगे.

घरवालों का मिलता है पूरा सहयोग
शादी के बाद परिवारिक जिम्मेदारियों और गृहस्थी में पानो की पढ़ाई तो छूट गई मगर अपना उद्देश्य नही भूली. आज वो सहिया के पद पर स्वास्थ्य के क्षेत्र मे काम करते हूए पंचायत के मुखिया पद को भी सुशोभित कर रही है. उन्हें अपने पति एवं घर के अन्य सदस्यों का पूर्ण समर्थन मिलता है.

तब कोई नहीं बनना चाहता था सहिया
पोटका पंचायत के सरमंदा ग्राम निवासी अनुसुचित जाति  की इस महिला ने अपने मन मे यह ठान लिया था कि वो गांव के लोगो की सेवा मे अपना जीवन समर्पित करेंगी.  इस दृढ़ निश्चय के साथ ही वर्ष 2007 में ग्राम सभा के माध्यम से सहिया उम्मीदवार बनी. उस समय महिलाएं सहिया जैसे पद के लिए उम्मीदवार नहीं बनना चाहता था. किसे पता था कि साधारण सी दिखने वाली यह महिला इस गांव के लिए असाधारण बनेगी. उन्हें सर्वसम्मति से ग्राम सभा द्वारा पानो को सहिया पद के लिए चुन लिया गया.

हर व्यक्ति को फाइलेरिया की खुराक
लगभग 1500 आबादी वाले इस गांव में सभी जाति के लोग रहते हैं. पानो सरदार का सहिया के रूप मे कार्य करते हुए एकमात्र लक्ष्य सरमंदा गांव में स्वास्थ योजनाओं का ग्रामीणों को अधिकाधिक लाभ  दिलाना है. प्राथमिक केन्द्र के निर्देश पर पोलियो खुराक तथा फाइलेरिया की दवाइयां ग्रामीणों के बीच बांटने की जिम्मेदारी इन्हें ही सौंपी जाती है. उनकी मेहनत इस बात की पुष्टि करती है कि सरमंदा गांव के हर घर के सदस्यों ने फाइलेरिया की दवाई का सेवन किया है.

बंध्याकरण के लिए करती हैं प्रेरित
इतना ही नही, सहिया के रूप मे ये अन्य जिम्मेदारियों का निर्वाह भी पूरी सजगता से करती हैं. अर्धरात्रि में भी गर्भवती महिलाओं को पोटका के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र अथवा जमशेदपुर स्थित एमजीएम अस्पताल ले जाने की जिम्मेदारी का पूरी तरह से पालन करती हैं.       

समय पर डाक्टर की अनुपस्थिति तथा समुचित इलाज न होने पर अपने वरीय पदाधिकारीयों को सूचित करने में क्षण भर का विलम्ब नहीं करतीं. सुरक्षित प्रसव कराने का इनका हमेशा अथक प्रयास होता है. बंघ्याकरण के लिए पानो महिलाओं का जागरूक करतीं हैं तथा अधिक से अधिक महिलाओं को बंध्याकरण शिविर मे भाग लेने के लिए प्रेरित करती हैं.        

पोटका स्थित सामुदायिक स्वास्थ केन्द्र में महिलाओं की हमेशा भीड़ होती है जहां पानो के नेतृत्व में महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी जानकारियां उपलब्ध करायी जाती है. जननी सुरक्षा योजना की राशि मिलने में देरी सबधीं शिकायत दर्ज करते हुए त्वरित कारवाई करने की अनुशंसा ग्रामीण महिलाओं द्वारा पानो के समक्ष की जाती है जिसकी सूचना वे संबधित पदाधिकारीयों को अविलंब देती हैं.