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Catch the rain: रेगिस्तान में बारिश का पानी बचाने की अनोखी जुगत, मिलेगा सालभर पीने का मीठा पानी

-गांव कनेक्शन,

जैसलमेर में इस वर्ष मानसून में जो नाम मात्र की बारिश हुई वो तपते रेगिस्तान में गिरकर छन्न (सूख) गई। ये इलाका ज्यादातर सूखे और दूसरी आपदाओं से घिरा रहा है इसलिए यहां गरीबी है और ज्यादातर मकान कच्चे हैं। इसलिए बारिश के पानी को भी सुरक्षित रखने के इंतजाम न के बराबर हैं। लेकिन पाकिस्तान की सीमा से सटे एक गांव में जुलाई में हुई बारिश का पानी लोगों ने जमा कर लिया है और उम्मीद है कि उनके अगले कई महीने इस पानी के सहारे कट जाएंगे। धोरों में पीने के साफ और मीठे पानी की समस्या का स्थाई समाधान की एक पायलट प्रोजेक्ट की कोशिश रंग लाई है।

दरअसल, पाकिस्तान की सीमा से महज 60 किमी दूर सम पंचायत समिति में रामगढ़ पंचायत के बंजारों की ढाणी में 11 बंजारे परिवारों के घरों में बारिश के पानी को जमा करने के लिए टांकों (water tank) का निर्माण किया गया है। एक टांके का क्षेत्रफल 1200-1300 वर्ग फीट है, जिसमें 5-6 लोगों के परिवार के लिए सालभर का पानी सुरक्षित हो सकता है लेकिन ये बारिश पर निर्भर करता है कि किस साल कितनी बारिश हुई। पानी का टांका, जिसमें पक्के मकानों की छतों के टांके की छत का पानी भी जमा हो जाता है। एक टांके (टंकी) की लागत करीब 84,500 रुपए है। इसमें 25 फीसदी लागत लाभार्थी परिवारों ने वहन की है। जिन परिवारों के पास अपना हिस्से के पैसे नहीं थे उन्होंने टांका खोदने और बनाने श्रमदान किया है। इस लागत में एक वाटर प्यूरी फायर भी शामिल है।

यह टांके वाटर हार्वेस्ट और अरावली संस्थान के सहयोग से पंचायत के सबसे गरीब परिवारों के घरों में बनाए गए हैं। टांके बनाने में रेगिस्तान के वातावरण, लोगों की जरूरत और विज्ञान का सहारा लिया गया है। अरावली संस्था राजस्थान सरकार की ऑटोनोमस बॉडी है। जिसका स्थापना 1993 में हुई थी। ये संस्था रेगिस्तानी इलाकों में लोगों की आजीविका पर काम करती है। क्या है योजना? इसी साल मार्च में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 'जल शक्ति अभियानः कैच द रेन' अभियान की शुरूआत की थी। अरावली संस्था के कार्यक्रम निदेशक वरुण शर्मा गांव कनेक्शन को बताते हैं, "अभियान की शुरूआत में पीएम मोदी ने कहा था कि जल संरक्षण अभियान एक जन आंदोलन के रूप में बढ़ना चाहिए। जिसमें जमीन पर काम हो और लोगों की सहभागिता रहे।

इसी विचार के साथ हमने रेगिस्तान के सबसे पिछड़े परिवारों का चयन किया है।" पीएम आवास योजना के लाभार्थी परिवारों का चयन वरुण आगे बताते हैं, "जल संरक्षण बात को ध्यान में रखते हुए अरावली ने यूनाइटेड किंगडम (ब्रिटेन) की वाटर हार्वेस्ट संस्था की मदद से जैसलमेर जिले में हाशिए पर रह रहे परिवारों का चयन किया गया है। पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर पीएम आवास योजना के 11 लाभार्थी परिवारों के घरों में टांके बनाए गए हैं। ऐसा इसीलिए क्योंकि बंजारों की ढाणी में इन 11 परिवारों के पास ही पक्के मकान थे।" गरीबी के कारण पश्चिमी राजस्थान के इस इलाके में लोगों के अधिकतर कच्चे घर हैं। चयन प्रक्रिया में परिवारों की मासिक आय, पानी के लिए उनका संघर्ष और महिलाओं की स्थिति को देखा गया। छत पर आने वाले बारिश के पानी को पाइप के जरिए टांके तक पहुंचाया गया है। इसीलिए इस काम के लिए पक्के घरों की जरूरत थी। जुगताराम (35 वर्ष) उन 11 परिवारों में शामिल हैं, जिनके घर में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम और टांका बनाया गया है। जुगताराम के परिवार में 5 सदस्य और हैं, जिनमें पत्नी, दो बेटे और दो बेटी शामिल हैं। मुख्य काम बकरी पालन, मजदूरी या बंटाई पर खेती करना है।

जुगताराम की पत्नी जाटव देवी बताती हैं, "खेती-बाड़ी के अलावा घर के काम में सबसे ज्यादा समय पानी का इंतजाम करने में ही जाता था। सिर पर 2-3 किमी दूर से पानी लाना पड़ता था। टैंक (ट्रैक्टर आदि से) भी यहां 700 रुपए का डलता है, टैंकर से पानी मंगाना हर परिवार के बस का नहीं।" जुगताराम कहते हैं, "इस बार जैसलमेर में सिर्फ एक बार ही बारिश हुई है। उस बारिश से टांके में पांच हजार लीटर के आस-पास पानी भर गया। इससे कुछ महीने तो अच्छे से निकलेंगे। अगर बारिश अच्छी हो तो हमारे सालभर पीने के पानी का इंतजाम इन टांकों की मदद से हो जाएगा।" अपनाई गई है आगौर तकनीक चूंकि मरुस्थलीय जिलों में बारिश बेहद कम होती है। इसीलिए प्रत्येक परिवार को उसकी जरूरत के मुताबिक पीने का पानी मिल सके इसके लिए आगौर तकनीक अपनाई गई है। छत के पानी के अलावा टांके की भी अपनी एक छत बनाई गई है। ताकि जितनी भी बारिश हो उसका पूरा पानी टांके में ही जाए। इसे ही स्थानीय भाषा में आगौर कहते हैं।

एक टांके का क्षेत्रफल 1200-1300 स्क्वायर फीट है। इस काम में तकनीक सहयोग देने वाले वाटर हार्वेस्ट के कंट्री डायरेक्टर ओमप्रकाश शर्मा से गांव कनेक्शन ने बात की। वे बताते हैं, "हमने इस बात का पूरा ख्याल रखा है कि प्रत्येक परिवार को सालभर पीने का पानी मिले। इसीलिए आगौर तकनीक अपनाई गई है। मान लीजिए अगर पीएम आवास योजना में बने घर का क्षेत्रफल सिर्फ 500 स्क्वायर फीट ही है तो आगौर का क्षेत्रफल 700 से 800 स्क्वायर फीट रखा गया है। ताकि परिवार की जरूरत के मुताबिक 1200-1300 स्क्वायर फीट क्षेत्रफल का टांका बनाया जा सके। चूंकि यहां भू-जल बिलकुल नहीं है, इसीलिए बारिश के पानी पर ही निर्भर रहना पड़ता है।"

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