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पानी की कहानी कहने वाले पर्यावरण के गुरु का जाना

अनुपम भाई सरलता, सहजता और विनम्रता की ऐसी मूर्ति थे जो प्रकृति, पानी, पर्यावरण और मानवता के बीच एक गहरा संबंध बनाते रहे। वे हमेशा ही बड़ी से बड़ी सच्चाई को बिना किसी से डरे, बिना किसी लालच और द्वेष के निष्पक्ष होकर बोल देते थे। मैंने अपने जीवन में उनके जैसे सहज, सरल किंतु बेबाक लोग कम ही देखे हैं।

 

अनुपमजी ने अपनी जीवन-यात्रा पानी व पर्यावरण को समर्पित कर दी। इन दिनों वे उसे और बड़ी यात्रा बनाने में जुटे रहते थे। उनकी सोचने-विचारने की प्रक्रिया में तो प्रकृति रची-बसी थी ही, वे जीवन भी प्राकृतिक ढंग से ही जीते थे। दुख है कि प्रकृति के इस अनन्य प्रेमी को विकास की आधुनिक जीवनशैली समय से 30 साल पहले ही ले गई, वरन् हमें तो ये पूरी-पूरी उम्मीद थी कि वे तीन दशक तक और पानी, पर्यावरण और प्रकृति की सेवा करेंगे। उनके जाने की क्षतिपूर्ति आसान नहीं है। वे पानी और पर्यावरण पर काम करने वाली संस्था तरुण भारत संघ के 30 साल अध्यक्ष रहे। हमने उन्हें मैदानी काम करते हुए देखा है। कभी लगता नहीं था कि अन्य संस्थाओं की अध्यक्षों की तरह वे भी दफ्तर-कुर्सी लेकर बैठ जाएंगे। वे तो प्रकृति के अनन्य सेवी और प्रेमी होने के चलते खूब पांव-पांव चलते और गांवों में जाते। वहां लोगों के साथ जाकर तालाब बनवाने, घंटों तक खुद श्रमदान करने, तालाबों के प्रति जागरूकता लाने के लिए रैलियां निकालने, पोस्टर बनाने, उनकी भाषा सरलतम रखने और पानी सहेजने की परंपरागत तकनीकों को खोजकर उन्हें जनसामान्य के बीच लाने का प्रयत्न वे सदा करते रहते थे। मुझे याद आता है कि उन्होंने कभी भी कागजी या दस्तावेजी रिपोर्ट पर भरोसा नहीं किया बल्कि वे खुद जमीन पर जाकर चीजों की पड़ताल करने, तथ्य जुटाने, उनका विश्लेषण करने और फिर सही-सही निष्कर्ष देने में यकीन करते थे।

 

उन्होंने अपने जीवनकाल में जो काम शुरू किया, वह ऐसा था जो इस सदी के लिए बहुत जरूरी था। उन्होंने जल और पर्यावरण पर न सिर्फ आधुनिक तकनीकों का गहन अध्ययन किया बल्कि जल प्रबंधन के परंपरागत तरीकों को भी खूब गहराई से जाना। असल में वे जानते थे कि जब तक जन को जल से नहीं जोड़ा जाएगा, तब तक जल प्रबंधन या संरक्षण को जन-आंदोलन नहीं बनाया जा सकेगा। स्वयं को सार्वजनिक रूप से सबका बनाकर रखना उनके व्यक्तित्व की खासियत थी। ऐसे लोग अब दुनिया में कम हैं जो अपने आपको सबके लिए समर्पित करके रखते हैं। अनुपमजी का हमारे बीच से जाना पानी और पर्यावरण के गुरु का चले जाना है। उनके जीवन में अद्भुत समता और सादगी तथा बातचीत में सहजता और सरलता थी। वे गहरी से गहरी बातों को लोगों को सहजता से समझा देते थे। उनकी एक विशेषता और थी कि वे कभी अपने किए पर दावे नहीं करते थे। वे बस करते जाते और अपनी इस वसुंधरा को श्रेष्ठ बनाने का प्रयत्न करते रहते। उन्होंने जो लिखा, उसे कभी कॉपीराइट नहीं करवाया। इतना परिश्रम करने के बावजूद उन्होंने अपनी विरासत सबके लिए खुली रखी और सबको सौंप दी। उन्होंने अपना कोई घर तक नहीं बनाया और इसका कभी उन्हें मलाल भी नहीं रहा। वे अक्सर कहते थे- पूरा भारत देश ही मेरा घर है। ऐसे उच्च और श्रेष्ठ विचारों के धनी रहे अनुपम भाई।

उनके चले जाने से अंदेशा है कि कहीं पानी व पर्यावरण की उनकी विरासत को विराम न लग जाए! उनका जाना एक ऐसे इंसान का जाना है, जिनमें अब भी पानी और पर्यावरण के लिए खूब काम कर गुजरने की सद्इच्छा थी।

 

(लेखक मैगसेसे पुरस्कार प्राप्त पर्यावरणविद् हैं और जलपुरुष नाम से जाने जाते हैं।)