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मजदूर नहीं ले पा रहे हैं योजनाओं का लाभ

झारखंड और बिहार में बड़ी संख्या में बीड़ी मजदूर हैं, जो पीढ़ीयों से इस पेशे में लगे हैं. इन मजदूरों के कल्याण के लिए श्रम कल्याण निधि बनायी गयी है. इस निधि से इन मजदूरों को आवास, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं दी जानी हैं.  इसके लिए बीड़ी कामगार कल्याण निधि अधिनियम, 1976 भी है और केंद्र सरकार की कई योजनाएं भी, लेकिन बिहार और झारखंड के सभी बीड़ी मजदूरों को इनका...

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शिक्षा की परीक्षा में जवाबदेही का सवाल- अनुराग बेहर

आम सोच यह है कि स्कूल व शिक्षक जवाबदेह नहीं हैं, इसलिए स्कूली शिक्षा की हालत खराब है। लेकिन यह मसला इतना परेशान करने वाला क्यों है? आइए, बात को ‘जवाबदेही’ शब्द से ही शुरू करें और इसके इस्तेमाल को समझों। आज इस शब्द का सबसे अधिक इस्तेमाल कारोबारी दुनिया में होता है। इस तरह की सोच यांत्रिक प्रणालियों का नतीजा है, वहां पर लोगों को किसी चीज की जिम्मेदारी...

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यह खुशहाली का रास्ता नहीं है- सीताराम येचुरी

भारतीय उद्योग जगत के एक हिस्से ने तो जोश के सारे रिकॉर्ड ही तोड़ दिए हैं। उद्योग जगत का यह जोश दहशत पैदा करने वाले तरीके से याद दिलाता है कि किस तरह पूंजीपति वर्ग के एक हिस्से ने 1930 के दशक में जर्मनी में हिटलर के उभार में मदद की थी। आज जब साल 2008 की आर्थिक मंदी के बाद से विश्व पूंजीवाद का संकट लगातार बना हुआ है,...

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गुजरात मॉडल की असलियत- कृष्ण स्वरुप आनंदी

जनसत्ता 19 फरवरी, 2014 : गुजरात का विकास चर्चा का विषय बना दिया गया है। ऐसा दावा किया जा रहा है कि अन्य राज्यों के लिए ही नहीं, बल्कि समूचे देश के लिए भी एक बेहतरीन अनुकरणीय मॉडल गुजरात ने प्रस्तुत किया है। उस मॉडल को देशव्यापी बनाने का सपना जोर-शोर से लोगों को दिखाया जा रहा है। विकास, सुशासन, समृद्धि, रोजगार सृजन जैसे शब्द तेजी से हवा में उछाले...

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विषमता का विकास- सुषमा वर्मा

जनसत्ता 17 फरवरी, 2014 : विश्व बैंक की प्रबंध निदेशक क्रिस्टीना लेगार्ड ने हाल ही में यह रहस्योद्घाटन  किया कि भारत के अरबपतियों की दौलत पिछले पंद्रह बरस में बढ़ कर बारह गुना हो गई है। क्रिस्टीना के अनुसार, इन मुट्ठी भर अमीरों के पास इतना पैसा है जिससे पूरे देश की गरीबी को एक नहीं, दो बार मिटाया जा सकता है। लेगार्ड के इस बयान से पुष्टि होती है...

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