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ऑनलाइन जगा रहे शिक्षा का अलख

महज 50 रुपये मासिक शुल्क पर दी जा रही हैं सुविधाएं
बड़ा हौसला रखनेवाले ही जिंदगी के उस मुकाम को छू लेते हैं, जहां वे किसी पहचान के मोहताज नहीं होते. ऐसा ही अनोखा काम कर दिखाया है मुंबई की नील डिसूजा और सोमा वाजपेयी ने. नील और सोमा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डिजिटिलाइजेशन की गुमनाम दूत बन कर देश के स्लम एरिया और दूरस्थ गांवों में सुविधाविहीन बच्चों में इंटरनेट के जरिये शिक्षा का अलख जगा रहे हैं.

भारत के शहरों के स्लम एरिया और दूरस्थ ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट शिक्षा से दूर होते बच्चों की खाई को पाटने का काम कर रहा है. कंप्यूटर टैबलेट और क्लास क्लाउड तकनीक के जरिये ग्रामीण और स्लम क्षेत्र के बच्चे आसानी से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं. सुविधाविहीन बच्चों को इंटरनेट के जरिये शिक्षा प्रदान की जा रही है. 

मुंबई से की काम की शुरुआत

मुंबई उपनगरी मलवानी के स्लम एरिया का एक स्कूल के बच्चे सुविधाओं के अभाव से जूझ रहा था. वहां न तो बिजली की व्यवस्था थी और न ही अन्य किसी प्रकार की सुविधाएं. यहां बच्चों को इंटरनेट के बारे में कोई जानकारी भी नहीं थी. बच्चे शिक्षा प्राप्त करने के लिए संघर्षों का सामना कर रहे थे. स्थिति यह कि इस स्कूल में कोई शिक्षक पढ़ाना भी नहीं चाहता था. यदि कभी-कभार कोई शिक्षक आ भी जाते, तो कुछ महीने पढ़ाने के बाद वे वहां से चले भी जाते. 

यहां की शिक्षा बदतर व्यवस्था के लिए बहुत हद तक बिजली की समस्या भी बहुत हद तक जिम्मेदार थी. इस प्रकार की चुनौतियों का सामना करनेवाले बच्चों की दुनिया ही बदल कर रख दी नील डिसूजाऔर सोमा वाजपेयी की एक तरकीब ने. इन दोनों ने मिल कर न सिर्फ मुंबई की मलवानी के स्लम एरिया के सुविधाविहीन बच्चों को, बल्कि देश के तमाम स्लम एरिया और दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों को अच्छी शिक्षा प्रदान कराने के लिए वर्ष 2013 में जया लर्निंग लैब की शुरुआत की. इस लर्निंग लैब के जरिये स्लम और ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों को इंटरनेट के जरिये शिक्षा प्रदान की जाने लगी. हालांकि, इस समय तक देश में बिजली आपूर्ति की समस्या एक बड़ी चुनौती थी. ऐसे में नील और सोमा ने कंप्यूटर टैबलेट और क्लास क्लाउड के माध्यम से बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया. खास कर ऐसे परिवारों के बच्चों को जो एक स्थान से विस्थापित होकर दूसरे शहरों में रह रहे हों. 

मंगोलिया के अनाथालयों को भी दिया सहयोग

भारत के गरीब और सुविधाहीन बच्चों को शिक्षा देने का काम शुरू करने के पहले नील डिसूजाने मंगोलिया के अनाथालयों के बच्चों को शिक्षा देने का बीड़ा उठाया. वे जानते थे कि मंगोलिया में ऑनलाइन डिजिटल सामग्रियां गुणवत्तापूर्ण हैं, लेकिन इसकी पहुंच हर किसी के पास तक नहीं है. 

श्ऐसे में उन्होंने शिक्षा के प्रति बच्चों की बढ़ती दूरियों को कम करने के लिए एक डिजिटल तंत्र को ईजाद किया और उसके जरिये इसकी खाई को पाटना शुरू कर दिया. मंगोलिया के अनाथालयों के बच्चों को शिक्षा के प्रति जागरूक करने के दौरान नील डिसूजाकी मुलाकात पूर्व बैंकर सोमा वाजपेयी से हुई, जो क्लासरूम में किसी तकनीक के इस्तेमाल करने में काफी दिलचस्पी रखती थीं. यहीं पर दोनों ने मिल कर जया लर्निंग लैब्स की स्थापना की. 
ऐसे आया आइडिया
नील डिसूजा बताते हैं, ‘मैंने खुद से जोड़ने के लिए कई बंद हो चुके स्कूलों का दौरा किया. ऑनलाइन कई बेहतरीन शैक्षणिक सामग्रियां उपलब्ध हैं, मगर बच्चे बिजली, इंटरनेट और उदासीन प्रशिक्षकों की वजह से उन चीजों प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं. हमारे दिमाग में एक तरकीब आया कि हम इन स्कूलों की बुनियादी मुद्दों को उठा कर बच्चों का सहयोग करना होगा.'
इसके बाद उन्होंने क्लास क्लाउड का निर्माण किया, जहां से वे शिक्षकों और बच्चों को पढ़ने और पढ़ाने के बेहतर टूल्स उपलब्ध कराते हैं.

क्या है क्लास क्लाउड

क्लास क्लाउड छोटी बैटरियों वाला एक ऐसा यंत्र है, जो ऑनलाइन शिक्षा देनेवाले स्कूलों और शिक्षण केंद्रों की शिक्षण सामग्री शक्तिशाली हॉटस्पॉट के जरिये ऑफलाइन में भी उपलब्ध कराता है.

बच्चों को पढ़ाने और पढ़ने के लिए जिन सामग्रियों की जरूरत होती है, वे सामग्रियां पहले से ही जया माइक्रो क्लाउड पर लोड किया गया होता है. इस यंत्र की बैटरी बिजली की समस्या से जूझनेवाले स्कूलों के बच्चों और शिक्षकों को यह यंत्र कम से कम 10 घंटे तक पढ़ने-पढ़ाने में सहयोग करती है. 

कहीं भी एक्सेसेबल है माइक्रो क्लाउड

वाइफाइ के जरिये जया लर्निंग लैब्स का माइक्रो क्लाउड देश के किसी भी कोने में एक्सेसबल है. यह तकनीक कम कीमतवाले टैबलेट को भी फूली सपोर्ट करती है. इसका उपयोग कर बच्चे पाठ्य सामग्रियों का इस्तेमाल कर सकते हैं. इस तकनीक के जरिये एक समय में एक साथ करीब 60 बच्चे माइक्रो क्लाउड से जुड़ सकते हैं. 

पाठ्यक्रम के आधार पर तैयार की गयीं सामग्रियां

माइक्रो क्लाउड पर देश के राज्यों द्वारा तैयार किये गये पाठ्यक्रम के आधार पर पठन-पाठन की सामग्रियां अपलोड की गयी हैं. क्लास रूम में बच्चों को सीखने और सिखाने के लिहाज से तीन अलग-अलग रूपों में शैक्षणिक सामग्रियां उपलब्ध करायी गयी हैं, ताकि शिक्षक और बच्चों को पढ़ाने और पढ़ने में किसी प्रकार की परेशानियों का सामना न करना पड़े. 

नियमित रूप से स्कूलों में पढ़ने के बाद बच्चे टैबलेट को घर ले जाकर भी पढ़ाई कर सकते हैं. माइक्रो क्लाउड पर पाठ्यक्रमों के अध्याय छात्रों की जरूरत के अनुसार उनके इस्तेमाल के लिए डिजाइन किया गया है, ताकि बच्चों को पढ़ाई करने में आसानी हो. माइक्रो क्लाउड पर उपलब्ध सामग्रियों के आधार पर बच्चों को शिक्षा प्रदान करने के बाद क्लास टेस्ट के जरिये उनके अध्ययन के स्तर का आकलन भी किया जा सकता है. छात्रों के टेस्ट का मूल्यांकन करने के बाद क्लास लेवल और छात्र स्तरीय रिपोर्ट शिक्षकों और उनके अभिभावकों को दिया जा सकता है. 

नील डिसूजा कहते हैं कि यह कोई जरूरी नहीं है कि क्लास का हर छात्र का अध्ययन स्तर एकसमान ही हो. कुछ छात्र जल्दी से किसी चीज को समझ लेते हैं और कुछ किसी विषय वस्तु को देर से समझते हैं. इसके अलावा, जब हमने अलग-अलग छात्रों के अध्ययन स्तर पर अध्ययन किया, तो पाया कि प्रत्येक छात्र को भिन्न-भिन्न विषय वस्तु में रुचि होती है. प्रत्येक छात्रों ने कहा कि उन्होंने क्लाउड पर खुद को लॉग इन करते हुए अपनी जरूरत के अनुसार टैबलेट में विभिन्न विषयों के अध्यायों को लोड किया है. 

महज 50 रुपये महीने पर बच्चों को दी जाती है सुविधाएं

क्लास क्लाउड के जरिये बच्चों को अध्ययन की सुविधा उपलब्ध कराने के बदले जया लर्निंग लैब की ओर से मात्र 50 रुपये महीने की दर से शुल्क लिया जाता है. इसके अलावा, यदि बच्चों के अभिभावक समर्थ हों, तो मात्र पांच हजार रुपये में क्लास क्लाउड वाला टैबलेट भी जया लर्निंग लैब की ओर से उपलब्ध कराया जाता है. नील डिसूजा कहते हैं कि सही मायने में हम तकनीकी शिक्षा में रुचि रखनेवाले बच्चों के स्कूलों तक पहुंचे हैं. वे कहते हैं कि यह हमारे लिए एक छोटी सी सफलता है. हमारा यह प्रयास आगे भी जारी रहेगा.