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कोटा की कोचिंगों को भी पीछे छोड़ता है बिहार का ये गांव-- मनीष शांडिल्य

बिहार के गया ज़िले की मानपुर पटवा टोली बुनकरों की बस्ती है। हाल के दिनों में यह चर्चा में रहा है। यहां से इस साल 17 छात्र भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) के लिए चुने गए हैं। लेकिन ऐसा नहीं नहीं कि यह कोई पहली बार हुआ हो।

बीते पांच वर्षों से हर साल करीब 10 छात्र पटवा टोली से लगातार आईआईटी के लिए चुने जाते रहे हैं। इतना ही नहीं बीते दो दशक से अधिक समय से यहां के छात्र लगातार आईआईटी के साथ-साथ भारत के दूसरे नामी-गिरामी इंजीनियरिंग संस्थानों में दाखिला पा रहे हैं।

श्रीदुर्गाजी पटवाय जातीय सुधार समिति के सभापति गोपाल पटवा बताते हैं, ‘‘यह सिलसिला 1992 में शुरु हुआ था। अब तक यहां के कम से कम 150 छात्र आईआईटी के लिए चुने गए हैं।''

 

मंदी से निकले इंजीनियर
पटवा टोली के तंग गलियों से गुजरते पावरलूम के ठक-ठक का शोर हमेशा कानों से टकराता रहता है। यहां करीब डेढ़ हजार बुनकर परिवार बमुश्किल आधा किलोमीटर के दायरे में रहते हैं। यहां के लोगों के मुताबिक मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में राजा मान सिंह ने यह मोहल्ला बसाया गया था।

 

मान सिंह गया से जयपुर वापस जाने लगे तो कुछ बुनकर यहीं रह गए। नब्बे के दशक के आस-पास तक यहां का मुख्य पेशा बुनकरी ही बना रहा। लेकिन इसी दौरान आई मंदी के बाद बुनकर परिवार अपने बच्चे को पढ़ाने पर भी ध्यान देने लगे।

बिहार के गया ज़िले की मानपुर पटवा टोली बुनकरों की बस्ती है। हाल के दिनों में यह चर्चा में रहा है। यहां से इस साल 17 छात्र भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) के लिए चुने गए हैं। लेकिन ऐसा नहीं नहीं कि यह कोई पहली बार हुआ हो।

बीते पांच वर्षों से हर साल करीब 10 छात्र पटवा टोली से लगातार आईआईटी के लिए चुने जाते रहे हैं। इतना ही नहीं बीते दो दशक से अधिक समय से यहां के छात्र लगातार आईआईटी के साथ-साथ भारत के दूसरे नामी-गिरामी इंजीनियरिंग संस्थानों में दाखिला पा रहे हैं।

श्रीदुर्गाजी पटवाय जातीय सुधार समिति के सभापति गोपाल पटवा बताते हैं, ‘‘यह सिलसिला 1992 में शुरु हुआ था। अब तक यहां के कम से कम 150 छात्र आईआईटी के लिए चुने गए हैं।''

 

मंदी से निकले इंजीनियर
पटवा टोली के तंग गलियों से गुजरते पावरलूम के ठक-ठक का शोर हमेशा कानों से टकराता रहता है। यहां करीब डेढ़ हजार बुनकर परिवार बमुश्किल आधा किलोमीटर के दायरे में रहते हैं। यहां के लोगों के मुताबिक मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में राजा मान सिंह ने यह मोहल्ला बसाया गया था।

 

मान सिंह गया से जयपुर वापस जाने लगे तो कुछ बुनकर यहीं रह गए। नब्बे के दशक के आस-पास तक यहां का मुख्य पेशा बुनकरी ही बना रहा। लेकिन इसी दौरान आई मंदी के बाद बुनकर परिवार अपने बच्चे को पढ़ाने पर भी ध्यान देने लगे।

दूसरी ओर सफल छात्र तैयारी करने वालों की हर तरह से मदद करते हैं, उनका हौसला बढ़ाते हैं। साल 2000 से जितेंद्र प्रसाद की पहल पर बने नवप्रयास के बैनर तले स्टुडेंट्स का मार्गदर्शन किया जा रहा है।

नवप्रयास के आकाश कुमार ने बताया, ‘‘हम उन्हें ग्रुप स्टडी में मदद करते हैं, पढ़ाते हैं, दसवीं के बाद अचानक ग्यारहवीं में पढ़ाई का बोझ बहुत बढ़ जाता है। ऐसे में हम हर साल एक वर्कशॉप कर उन्हें बताते हैं कि इस दवाब में कैसे योजनाबद्ध तरीकें से पढ़ें।''

 

योगदान
अभी पटवा टोली में पांच स्टडी सेंटर चल रहे हैं, यहां के बच्चों के सफलता के पीछे उनकी काबिलियत और मेहनत के साथ-साथ ऐसे सेंटर्स का भी अहम योगदान है। जैसा कि इस साल आईआईटी में सफल रहे एक छात्र विकास कुमार बताते हैं, ‘‘यहां पढ़ाई करते हुए एक रुचि पैदा होती है, एक प्रतियोगी माहौल मिलता है, इससे पढ़ाई में निखार आता है।''