Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]शिक्षा/सातवीं-पास-इंजीनियर-4400.html"/> शिक्षा | सातवीं पास इंजीनियर | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

सातवीं पास इंजीनियर

आंध्र प्रदेश में वारंगल से 15 किलोमीटर दूर एक बस्ती में मशहूर पोचमपल्ली रेशमी साड़ियां बनानेवाले कारीगर रहते हैं. बस्ती की महिलाएं दिन भर साड़ी के लिए रेशमी धागा तैयार करने में लगी रहती हैं.

पहले धागे की फ़िनिशिंग 42 पिनों वाले आसू नामक उपकरण से की जाती थी. इसके जरिये एक साड़ी लायक धागा तैयार करने में एक महिला को औसतन नौ हजार बार अपने हाथों को आगे-पीछे करना पड़ता था, जिससे ना केवल उनके हाथों और पीठ पर असर होता था, बल्कि दाहिने आंख की रोशनी पर भी प्रभावित होती थी. लेकिन 39 वर्षीय चिंताकिंडी मल्लेशम के एक आविष्कार ने अब यह तरीका पूरी तरह बदल दिया है.

मल्लेशम की मां लक्ष्मी भी उन सैकड़ों महिलाओं में से एक थी जो पेट की आग बुझाने के लिये अपने हाथों और आंखों की रोशनी से समझौता कर रही थीं. लक्ष्मी साड़ी बनाने के इस काम से परेशान हो चुकी थी और बार-बार मल्लेशम को आगाह करतीं कि वह कोई और काम करे. मां और उनके जैसी दूसरी औरतों को इस तकलीफ़ से छुटकारा दिलाने को मल्लेशम ने अपना मकसद बना लिया.

सातवीं पास मल्लेशम के लिए बिजली से चलनेवाली आसू मशीन बनाने की राह आसान नहीं थी. लोग उन्हें निकम्मा और और मूर्ख समझते थे. एक समय तो ऐसा आया जब उन्हें कर्ज देने वालों ने उनसे तगादे शुरू दिये. उस स्थिति के बारे में मल्लेशम बताते हैं कि लोगों को लगता था मैं कोई और काम नहीं करना चाहता इसलिए मशीन बनाने में अपना समय बरबाद कर रहा हूं.

मैं ज्यादा पढ़ा-लिखा भी नहीं था, इसलिए लोगों को मुझ पर भरोसा नहीं होता था. इसके बाद मल्लेशम हैदराबाद चले गये. वहां उन्होंने एक बिजली मिस्त्री के रूप में काम करना शुरू किया और अपनी मशीन पर भी काम जारी रखा.

एक दिन उन्होंने ऐसी मशीन देखी, जिसे देख कर उन्हें लगा कि इसकी तकनीक का इस्तेमाल वह अपनी आसू मशीन के लिए कर सकते हैं. मल्लेशम को अंतत: सफ़लता मिली. हनी-बी और इनोवेशन फ़ाउंडेशन की मदद से उन्हें मशीन का पेटेंट भी मिल गया.

उन्होंने मशीन का नाम अपनी मां के नाम लक्ष्मी आसू रखा. इस मशीन के आने के बाद न केवल महिलाओं को आराम मिला, बल्कि उनकी उत्पादन क्षमता भी बढ़ी. पहले जितने समय में एक साड़ी पूरी होती थी, अब उतने समय में तीन-चार साड़ियां बन कर तैयार हो जाती हैं.

2005 पांच में पहली बार जब लक्ष्मी आसू बन कर तैयार हुई तो इसकी कीमत 15 हजार रुपये थी. यह अब 13 हजार है. यह दिखाता है कि मल्लेशम सिर्फ़ मुनाफ़ा कमाने के लिए नहीं, बल्कि अपने आसपास रहनेवाले 30 हजार परिवारों के लिए काम कर रहे हैं. मल्लेशम हर महीने 4-5 मशीन अपनी वर्कशॉप में बनाते हैं. हालांकि अब भी पारंपरिक आसू काफ़ी संख्या में चल रही हैं, लेकिन उन लोगों की कमी नहीं है जिनके लिए मल्लेशम की मशीन वरदान साबित हुई है.
(साभार : सिविल सोसायटी)