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कछुआ चाल से चल रहा है समेकित बाल विकास कार्यक्रम

सुप्रीम कोर्ट के कई अंतरिम आदेशों के बावजूद सरकार समेकित बाल विकास कार्यक्रम को अभी तक सार्विक नहीं बना पायी है। इस बात का खुलासा चौदहवीं लोक लेखा समिति की रिपोर्ट(2014-15) से हुआ है।

लोक लेखा समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 14 लाख बसाहटों में आंगनबाड़ी केंद्रों को संचालित कर पाने का महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का लक्ष्य निकट भविष्य में पूरा होता नहीं जान पड़ता। (देखें नीचे दी गई लिंक)  

रिपोर्ट बीते अप्रैल महीने में लोकसभा को सौंपी गई थी और सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश 2001 में पीयूसीएल द्वारा दायर एक याचिका से संबंधित हैं।

 लोक लेखा समिति ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से हासिल सूचनाओं के आधार पर रिपोर्ट में दर्ज किया है कि बीते साल के अक्तूबर महीने तक समेकित बाल विकास कार्यक्रम के अंतर्गत 10 परियोजनाओं और 33 हजार आंगनबाड़ी का संचालन लंबित था। समेकित बाल विकास कार्यक्रम के अंतर्गत 7076 परियोजनाओं और कुल 13.75 लाख आंगनबाड़ी केंद्रों के संचालन की मंजूरी दी गई है।

 गौरतलब है कि मंजूरी हासिल कर चुकी परियोजनाओं और आंगनबाड़ी केंद्रों को संचालित करने में पीछे रहने के बावजूद महिला और बाल विकास मंत्रालय ने इस साल के मार्च महीने के अंत तक 13 हजार और आंगनबाड़ी केंद्रों को चलाने का लक्ष्य निर्धारित कर रखा था।

 सुप्रीम कोर्ट ने 2006 के दिसंबर में सरकार को निर्देश दिया कि साल 2008 के दिसंबर महीने तक कम से कम 14 लाख आंगनबाड़ी केंद्र खोले जायें। इस निर्देश के बावजूद समेकित बाल विकास कार्यक्रम को सार्विक बनाने के मोर्चे पर सरकार अब भी पीछे चल रही है।

 सरकार ने साल 2012 में समेकित बाल विकास कार्यक्रम को मजबूती प्रदान करने और कार्यक्रम की बनावट में बदलाव को मंजूरी दी थी। बारहवीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत कार्यक्रम को 1,23,580 करोड़ रुपये का बजट आबंटन हुआ और नये रुप में कार्यक्रम साल 2012-13 तथा 2014-15 में चरणबद्ध ढंग से लागू किया गया।

 गौरतलब है कि लोक लेखा समिति की चौदहवीं रिपोर्ट प्रोफेसर के वी थॉमस की अध्यक्षता में तैयार हुई है। यह रिपोर्ट सीएजी की 2012-13 की रिपोर्ट संख्या-22 पर आधारित है। सीएजी की रिपोर्ट संख्या 22 महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से संबंधित है। मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली पिछली लोक लेखा समिति(2013-14) समेकित बाल विकास कार्यक्रम का परीक्षण पूरा नहीं कर पायी थी।

 समेकित बाल विकास कार्यक्रम के बारे में लोक लेखा समिति के प्रमुख तथ्य

आँगनबाड़ी केंद्रों के संचालित ना होने के बारे में लोक लेखा समिति की रिपोर्ट में तीन प्रमुख कारण बताये गये हैं- अदालती मुकदमे, केंद्रों के संचालन से संबंधित वित्तीय प्रक्रिया तथा आंगनबाड़ी कर्मियों और सहायकों की नियुक्ति में विलंब।

 महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा प्रदत्त सूचना के अनुसार समेकित बाल विकास कार्यक्रम में 31 दिसंबर 2013 तक बाल विकास परियोजना पदाधिकारी के 3209 पद, पर्यवेक्षक के 19831 पद तथा आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के 114368 पद खाली थे।

सुप्रीम कोर्ट ने 13 दिसंबर 2006 को आदेश दिया था कि अनुसूचित जाति, जनजाति की बसाहटों में प्राथमिकता के आधार पर आंगनबाड़ी केंद्र खोले जायें लेकिन आदेश के 8 साल बाद केवल 19 राज्य़ ही इसके अनुकूल आचरण कर पाये हैं। पूरी अवधि में महिला और बाल विकास मंत्रालय ने इस मोर्चे पर सक्रियता नहीं दिखायी और राज्यों से सूचना हासिल होने का इंतजार करती रही।

 महिला एवं बाल विकास मंत्रालय या फिर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा अभी तक ऐसा कोई सर्वेक्षण नहीं करवाया जा सका है जिससे पता चले कि अनुसूचित जाति, जनजाति अथवा अल्पसंख्यक समुदाय की सारी बसाहटों में आंगनबाड़ी केंद्र संचालित हो रहे हैं या नहीं।

 महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के पास इस बात की कोई पक्की सूचना नहीं है कि कितनी बसाहटों में समेकित बाल विकास कार्यक्रम के अंतर्गत केंद्र खुले हैं। राज्यों द्वारा सूचना ना भेजना मंत्रालय के पास जानकारी ना होने की प्रमुख वजह है।

 सुप्रीम कोर्ट नें ताकीद की थी कि अगर आंगनबाड़ी केंद्र से वंचित कोई ग्रामीण समुदाय जहां कम से कम 40 बच्चे 6 साल से कम उम्र के हों आंगनबाड़ी केंद्र खोलने की मांग करता है तो उसे मांग के तीन महीने के अंदर आंगनबाड़ी केंद्र प्रदान किया जाय। हालांकि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने समेकित बाल विकास कार्यक्रम के तीसरे चरण में ऐसी मांग वाले कुल 20 हजार आंगनबाड़ी केंद्रों की स्थापना की मंजूरी दी लेकिन लोक लेखा समिति ने अपनी रिपोर्ट में पाया कि साल 2011-12 में मंत्रालय द्वारा छह राज्यों में केवल 20130 मांग आधारित आंगनबाड़ी केंद्रों को अनुमोदित किया गया।

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा प्रदान की गई सूचना के अनुसार आंगनबाड़ी केंद्रों में वज़न के लिहाज से मापे गये बच्चों में सामान्य वज़न के बच्चों की संख्या 31 मार्च 2007 के 49.9% प्रतिशत से बढ़कर 31 मार्च 2011 को 58.84% और 31 दिसंबर 2013 को 71.62% हो गई है।

लोक लेखा समिति की रिपोर्ट के अनुसार समेकित बाल विकास कार्यक्रम का 7067 पूर्ण रुप से संचालित परियोजनाओं तथा 13.42 लाख आंगनबाड़ी केंद्रों के जरिए संचालन किया जा रहा है। यह संख्या मार्च 2014 की है। समेकित बाल विकास कार्यक्रम की सेवाएं 1045.08 लाख लाभार्थियों को दी जा रही हैं जिसमें 849.40 लाख बच्चे 6 साल से कम उम्र के हैं जबकि 195.68 लाख संख्या गर्भवती और दूध पिलाने वाली माताओं की है। 3-6 साल की उम्र के तकरीबन 370.7 लाख बच्चों को प्रीस्कूल शिक्षा दी जा रही है जिसमें लड़कों की संख्या 188.19 लाख और लड़कियों की संख्या 182.51 लाख है। 

समेकित बाल विकास कार्यक्रम के अंतर्गत छह तरह की सेवाएं प्रदान की जाती हैं। इसके अंतर्गत पूरक पोषाहार, टीकाकरण, रेफरल सेवा, स्वास्थ्य जांच, प्रीस्कूल अनौपचारिक शिक्षा तथा स्वास्थ्य एवं पोषण से संबंधित शिक्षा की सेवा आंगनबाड़ी केंद्रों द्वारा प्रदान की जाती है।

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने साल 2011 में आंगनबाड़ियों से संबंधित दिशानिर्देश जारी किए थे। दिशानिर्देशों में कहा गया था कि आंगनबाड़ी केंद्रों में महिलाओं और बच्चों के बैठने के लिए अलग से कमरा होना चाहिए, रसोईघर अलग से होना चाहिए, खाद्य-पदार्थ के संग्रह के लिए भंडारघर होना चाहिए, बच्चों की सुविधा के अनुकूल शौचालय होना चाहिए, बच्चों के खेलने के लिए अलग से जगह होनी चाहिए साथी ही स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था होनी चाहिए।

सीएजी की रिपोर्ट के आधार पर लोक लेखा समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल 2701 आंगनबाड़ी केंद्रों को नमूने के तौर पर जांचने के बाद पाया गया कि 866 आंगनबाड़ी केंद्र अपने विहित स्थान से कहीं और किसी प्राइमरी स्कूल या किराये की जगह पर चल रहे हैं और अगर स्कूल चल रहे हों तो आंगनबाड़ी केंद्रों को खुली जगह पर चलाया जा रहा है।विभिन्न राज्यों में नमूने के तौर पर जांचे गये 40 से 60 प्रतिशत आंगनबाड़ी केंद्रों में अलग से भंडारघर, रसोईघर या खेलने-कूदने की जगह नहीं थी।

लोक लेखा समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि जांचे गये आंगनबाड़ी केंद्रों में से 52 प्रतिशत आंगनबाड़ी केंद्रों में शौचालय नहीं था जबकि 32 प्रतिशत आंगनबाड़ी केंद्रों में स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था नहीं थी।
 
इस कथा के विस्तार के लिए निम्नलिखित लिंक देखें--
 

Public Accounts Committee (2014-15) report on Integrated Child Development Services (ICDS) Scheme of Ministry of Women & Child Development, PAC no. 2045, Fourteenth Report (presented to Lok Sabha on 27 April, 2015 and Rajya Sabha on 28 April 2015), Please click hereto access 



Report of the Comptroller and Auditor General of India on Performance Audit of Integrated Child Development Services (ICDS) Scheme, CAG Report no. 22 of 2012-13-Union Government (Ministry of Women and Child Development), please click here to access



Budgetary Allocations to Ministry of Women and Child Development 2015-16  


Supreme Court Orders on the Right to Food: A Tool for Action, August, 2008, Right to Food Campaign Secretariat

 

 

National Food Security Act 2013

 

 

 

PUCL plea in SC questions delay in implementation -Krishnadas Rajagopal, The Hindu, 31 May, 2015



Reduced budgetary allocations will affect programs for nutrition, women and child welfare: Maneka Gandhi to Niti Aayog, DNA, 20 May, 2015  


Why is calorie intake rising? -Himanshu, Livemint.com, 13 May, 2015  


Social Sector Spending in 2015-16, Economic and Political Weekly, Vol-L, No. 16, April 18, 2015



After 50% fund cut, Maneka Gandhi to ask Jaitley for more money for women & children, First Post, 20 March, 2015 


Let Them Eat Schemes -Ruhi Kandhari, Tehelka Magazine, Volume 12, Issue 4, 24 January, 2015