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कृषि | गोबर बढ़ा रहा है किसानों की आमदनी, मज़ाक नहीं है

गोबर बढ़ा रहा है किसानों की आमदनी, मज़ाक नहीं है

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published Published on Jun 27, 2020   modified Modified on Jun 27, 2020

-गांव कनेक्शन, 

आमतौर पर लोग गोबर को बेकार की चीज समझते हैं, शहरी भारत के लिए गोबर शिट से कम नहीं है। यहां तक की दूसरों को दिमागी कमजोर बताने के लिए लोग आसानी से कह देते हैं, तुम्हारे दिमाग में गोबर भरा है? या फिर गोबर गनेश कहने से भी नहीं चूकते। ग्रामीण इलाकों की बात करें तो कुछ किसान इसे खाद के रूप में इस्तेमाल करते हैं। बहुत सारी जगहों पर खाना बनाने के लिए सुखाकर इसे उपला-कंडा बनाकर जलाते भी हैं। फिर भी इसकी कीमत लगभग न के बराबर है, लेकिन गुजरात के एक गांव के सैकड़ों किसान इसी गोबर (Animal Dung) से कमाई कर रहे हैं।

"हमारा जीवन भैंसों और दूध पर निर्भर है। गाय-भैंस जब दूध नहीं देती हैं तो उनको पालना भारी पड़ता है, लेकिन अब उनके गोबर (स्लरी) को खाद के रूप में हम बेच रहे हैं, तो दूध भले न हो लेकिन गोबर से पैसे मिलते रहते हैं तो दिक्कत नहीं होती।" जकरियापुर गांव के नट्टू भाई परमार (55 वर्ष) अपने द्वार पर एक तरफ फूले रबर के एक गुब्बारे (गोबर गैस प्लांट) को दिखाते हुए कहते हैं।

नट्टू भाई के गांव में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) और पशुधन मंत्रालय की तरफ से दूध के कारोबार से जुड़े (गाय-भैंस पालने वाले सभी) घरों में 2 क्यूबिक क्षमता वाले गोबर गैस प्लांट लगवाए गए हैं। जिससे महिलाओं को खाने बनाने के गैस मिल रही है, जबकि जो तरल गोबर मिलता है, (जो अभी तक बेकार माना जाता था) उसे किसानों से खरीदकर उसकी जैविक खाद बनाई जाती है जिससे किसानों की रोजाना अतिरिक्त आमदनी हो रही है। एनडीडीबी इस तरह का पायलट प्रोजेक्ट पहले आणंद जिले के मुजकुआ गांव में 2 साल से संचालित है।

हमारे देश में किसानों के पास दो तरह के पशु हैं, एक दूध देने वाले दूसरे दूध न देने वाले (नर और मादा-गाय सांड)। इन्हें कोई छुट्टा कहता है तो कोई अवारा। यूपी और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में ये पशु बड़ी समस्या हैं, लेकिन अगर मैं जकरियापुरा की तरह देखूं तो ये पशु ही किसान की आमदनी बढ़ा सकते हैं, क्योंकि दूध भले न दें वे गोबर और गोमूत्र रोज देती हैं। स्लरी से रोज पैसा मिलेगा।" गिरिराज सिंह, केंद्रीय पशुधन मंत्री जकरियापुर गांव गुजरात की राजधानी अहमदाबाद से करीब 125 किलोमीटर दूर आणंद जिले के बोरवद तालुका में आता है। ग्राम पंचायत दहेवाण और इसके आसपास का इलाका दूध उत्पादन का गढ़ माना जाता है। गांव के आसपास कच्चा तेल भी निकाला जाता है।

इस गांव को राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड ने गोद लेकर यहां पर किसानों के साथ कई प्रयोग किए हैं। जिसके तरत गोबर गैस और मुर्गी पालन प्रमुख हैं। ये भी पढ़ें- छुट्टा पशु समस्या: 'यूरिया की तरह गाय के गोबर खाद पर मिले सब्सिडी, गोमूत्र का हो कलेक्शन' गुजरात के जकरियापुरा में लगाए गए गोबर २ क्यूबिक मीटर के प्लांट , जिनमें औसतन रोज ४०-५० किलो गोबर डालना होता है।

राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के कार्यकारी निदेशक मीनेश शाह कहते हैं, "किसानों की आमदनी अगर बढ़ानी हो तो इसमें डेयरी और पशुधन को शामिल करना पड़ेगा, क्योंकि इसमें संभावनएं बहुत हैं। हमारी कोशिश है कि पशुपालकों की दूध के अलावा भी आमदनी हो। गोबर से गोबर गैस बना लो, जो स्लरी निकलती है उसे हम एक रूपए से 2 रुपए लीटर खरीद रहे हैं जिसकी जैविक खाद बन रही है। इसकी मांग बहुत है, जितनी बनाओ उतनी आमदनी बढ़ेगी।"

जकरियापुरा में कुल 461 घर हैं, जिसमें से 368 घरों में पशुपालन था। एनडीडीबी ने यहां महिलाओं की एक कॉपरेटिव (सहकारी समिति) बनाकर इन सभी घरों में गोबरगैस यूनिट लगवाई है और इसका कार्यभार महिलाओं को भी सौंपा है। एनडीडीबी ही ये स्लरी खरीद भी रहा है। जिसे प्रोसेज कर खाद बनाई जा रही है। एडीडीबी के मुताबिक इसे अमूल जैसी संस्थाओं के माध्यम से किसानों तक वापस पहुंचाया जाएगा।

पूरी विजयगाथा पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


अरविंद शुक्ला, https://www.gaonconnection.com/desh/converting-animal-dung-into-slurry-and-manure-may-increase-dairy-farmers-income-47066


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