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भूख | गरीबी और असमानता
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इंडिया में आर्थिक असमानता: “अरबपति राज” में ब्रिटिश राज से भी ज्यादा है असमानता - रिपोर्ट


इंडिया के भौगोलिक आकार और जनसंख्या, जो अब दुनिया में सबसे अधिक है, को देखते हुए इंडिया में आर्थिक विकास का वितरण विश्व की आर्थिक असमानता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। इसलिए इंडिया में आय और संपत्ति की असमानता को सटीक रूप से मापना अत्यधिक आवश्यक है।
हाल ही में वर्ल्ड इनइक्वलिटी डाटाबेस ने एक शोध प्रकाशित किया है। इस शोध पेपर को नितिन कुमार भारती, लुकास चांसल, थॉमस पिकेटी, और अनमोल सोमनची ने लिखा है। शोध पेपर में, इंडिया में बढ़ रही आय और संपत्ति की असमानता को प्रस्तुत किया है।
इस पेपर को तैयार करने के लिए उन्होंने राष्ट्रीय आय के खाते, कुल संपत्ति, कर दाताओं की तालिकाओं, अरबपतियों की सूची और आय, उपभोग और संपत्ति पर किये गए सर्वेक्षणों का इस्तेमाल किया है।


आइये जानते हैं इस रिपोर्ट की मुख्य बातें:

  • आज़ादी के बाद से 1980 के दशक की शुरुआत तक असमानता में गिरावट आई। फिर धीरे-धीरे असमानता बढ़ने लगी; और 2000 के दशक की शुरुआत में तो असमानता आसमान को छूने लगी।
  • अध्ययन की पूरी अवधि के दौरान, सबसे बड़े अमीर लोगों की आय और संपत्ति में उनकी हिस्सेदारी बढती हुई दिखाई दी।
  • 2014-15 और 2022-23 के बीच, बड़े धनाढ्य लोगों द्वारा निर्मित आर्थिक असमानता संपत्ति के जमावड़े के रूप में स्पष्ट दिखती है।
  • 2022-23 तक आते-आते, सबसे अमीर 1% लोगों की संपत्ति में हिस्सेदारी 22.6% के पास पहुँच गई।
  • असमानता की ऐसी स्थिति ने दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और अमेरिका को भी पछाड़ दिया है।
  • पहले के शोध कार्यों का हवाला देते हुए पेपर में इस बात की ओर भी संकेत किया कि शुद्ध संपत्ति के नजरिए से देखने पर भारत की आयकर प्रणाली प्रतिगामी हो नज़र आती है।
  • वैश्वीकरण की इस लहर का फायदा आम भारतीय तक पहुँचाने के लिए कुछ कदम उठाने आवश्यक हैं। जैसे-  आय और संपत्ति दोनों को आधार बनाकर कर कोड का पुनर्गठन किया जाना चाहिए। साथ ही स्वास्थ्य, शिक्षा और पोषण में व्यापक– सार्वजनिक निवेश किया जाना चाहिए।
  • अगर वीत्तीय वर्ष 2022-23 में, देश के 167 सबसे धनी परिवारों की शुद्ध संपत्ति पर 2% का “सुपर टैक्स” लगाया जाएँ तो राजस्व में राष्ट्रीय आय के 5% के बराबर बढ़ोतरी होगी।
  • पेपर इस बात पर जोर देता है कि इंडिया में आर्थिक डेटा की गुणवत्ता काफी खराब है और हाल ही में इसमें गिरावट भी देखी गई है। इसलिए यह संभव है कि ये नए अनुमान वास्तविक असमानता का पूरी तरह से प्रतिनिधित्व नहीं कर पा रहें हो।


 

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