Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
कृषि | स्वास्थ्य की ‘जड़ें’ : हल्दी से तीन गुणा अधिक कमा रहा है यह किसान
स्वास्थ्य की ‘जड़ें’ : हल्दी से तीन गुणा अधिक कमा रहा है यह किसान

स्वास्थ्य की ‘जड़ें’ : हल्दी से तीन गुणा अधिक कमा रहा है यह किसान

Share this article Share this article
published Published on Oct 13, 2021   modified Modified on Oct 13, 2021

-डाउन टू अर्थ,

भारतीयों ने हल्दी की एंटीवायरल खूबियों के चलते वर्ष 2020 में इसका खासा सेवन किया, इसकी कोरोना वायरस (कोविड-19) महामारी के दौरान इसे फायदेमंद बताया जा रहा था। 

खाना पकाने में इस्तेमाल के अलावा, लोगों ने काढ़े के रूप में इसका जमकर सेवन किया। लॉकडाउन के दौरान बाजार में शुद्ध शाकाहारी हल्दी के लैटेस से लेकर चिया टरमरिक कुकीज और डिटॉक्स चाय जैसे कई उत्पाद बढ़ गए हैं।

हालांकि, हल्दी पाउडर के उपभोक्ताओं तक पहुंचने से पहले, कुरकुमा लोंगा पौधे के भूमिगत तनों या प्रकंदों (राइजोम) को प्रसंस्करण (प्रोसेसिंग) की एक लंबी और बोझिल प्रक्रिया से गुजरना होता है। पहले प्रकंद को साफ किया जाता है, 45 मिनट से एक घंटे तक उबाला जाता है, खुले में 15-20 दिन तक सुखाया जाता है और फिर उस पर पॉलिश की जाती है।

इस दौरान, वाष्पशील उत्पादों और लंबे समय तक खुले में सुखाए जाने के कारण प्रकंद का वजन 30 फीसदी तक कम हो जाता है। बागवानी विज्ञान विश्वविद्यालय, बगलकोट के साथ बंगलुरू में अपने कॉलेज में सहायक प्रोफेसर (मसाले और रोपण फसलें) हरीश बीएस के पास इस प्रक्रिया का एक सरल विकल्प है। हरीश ने बताया, “राइजोन को साफ किया जा सकता है, उसे आलू के चिपमेकर से काटा और फिर उसे धूप में सुखाया जा सकता है।” उन्होंने कहा, न्यूनतम प्रसंस्करण होने से हल्दी के फायदे बने रहते हैं।

केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान (सीएफटीआरआई), मैसूर के वैज्ञानिकों ने पाया कि पारम्परिक विधि से होने वाले प्रसंस्करण की तुलना में इस विधि से होने वाले प्रसंस्करण में ज्यादा पीलापन आता है। कच्चे प्रकंद में 6.36 फीसदी पीलापन होता है और उबाले गए प्रकंद में इसकी मात्रा 4.64 फीसदी होती है।

सीएफटीआरआई के पास हल्दी के प्रसंस्करण के लिए इसी तरह की एक तकनीक है, लेकिन इसमें इस्तेमाल होने वाला उपकरण खासा महंगा है और सामान्य किसानों की पहुंच से दूर है।

कटहल और केले को प्रोत्साहन देने पर काफी काम कर चुके केरल के एक पत्रकार श्री पादरे ने कहा: स्लाइस की एक उपयुक्त शेल्फ लाइफ (जीवन) होगी, क्योंकि हल्दी एक पारम्परिक रक्षक है। इसके चिप्स में मिलावट करना खासा मुश्किल होगा।

हल्दी के प्रसंस्करण की पारम्परिक प्रक्रिया के चलते प्रदूषण भी फैल रहा है।

मैसूर विश्वविद्यालय में जलवायु परिवर्तन पर काम करने वाले एक पीएचडी के छात्र नागार्जुन कुमार एसएम के परिवार के पास कर्नाटक के चामाराजनगर जिले के गुंदुलपेट तालुक में शिवपुरा गांव में 30 एकड़ का हल्दी का फार्म है। वह पर्यावरण पर कार्बन का बोझ कम करने के लिए कुछ करना चाहते हैं।

खेती की अच्छी प्रक्रियाओं से एक एकड़ जमीन में लगभग 20 टन हल्दी पैदा हो जाती है। उन्होंने बताया, “पारम्परिक प्रक्रिया से इतनी ज्यादा हल्दी को उबालने के लिए, आपको टहनियों और लकड़ियों के साथ हल्दी की लगभग 35 टन सूखी पत्तियां जलानी पड़ती हैं। इसके लिए लकड़ी आपको खरीदनी पड़ती है।”


उन्होंने कहा, जिले में लगभग 40,000 एकड़ कृषि भूमि है और यहां जलाने के लिए लगभग 1,00,000-2,00,000 टन सूखी पत्तियों की जरूरत होगी। इससे खासा ज्यादा प्रदूषण हो सकता है।

इसके अलावा, हल्दी की पत्तियों का इस्तेमाल व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य तत्वों को निकालने के लिए किया जा सकता है। केरल और गोवा में इसका पारम्परिक रूप से खाने- करी, अचार में और खाना पकाने के दौरान मछली पर लपेटने और मिठाइयों में किया जाता है। इससे खाने में हल्की सी सुगंध आ जाती है।

उन्होंने हरीश की विधि के साथ प्रयोग करने का फैसला किया और लगभग 250 किलोग्राम हल्दी का प्रसंस्करण किया। जहां प्रकंद सिर्फ 100 रुपये प्रति किलोग्राम बिकता है, वहीं नागार्जुन ने इस तरीके से तैयार पाउडर 300-350 रुपये प्रति किलोग्राम कीमत में बेचा। उन्होंने कहा, “यह आय दोगुनी करने का आसान तरीका है।” कटाई के लिए अगली फसल दिसंबर में तैयार हो जाएगी। उनकी 1,000 किलोग्राम हल्दी पाउडर पैदा करने और धीरे-धीरे इसे बढ़ाने की योजना है।

नागार्जुन ने बांदीपुर नैचुरल्स एग्रीफार्म्स प्रा. लि. नाम से कंपनी पंजीकृत कराई है और सोशल मीडिया के माध्यम से और लोगों को बताकर उत्पाद का प्रचार करते हैं। उन्होंने कहा, “उत्पादन कोई समस्या नहीं है, बल्कि विपणन में समस्या आती है। और एक अच्छी कीमत पर विपणन काफी बड़ी समस्या है।” जैसे जैसे इस “औषधि” की वैश्विक स्तर पर मांग बढ़ती है, तो इस समस्या का आसानी से समाधान होने की संभावना है।

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


विभा वार्षेण्य, https://www.downtoearth.org.in/hindistory/agriculture/farming/roots-of-health-how-a-simple-processing-method-helps-turmeric-farmers-earn-more-79662
 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close