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कृषि | काली की मेहनत से बंजर में छायी हरियाली- शिकोह अलबदर

काली की मेहनत से बंजर में छायी हरियाली- शिकोह अलबदर

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published Published on Mar 25, 2014   modified Modified on Jun 4, 2014
रांची से पलामू जाने वाले एनएच - 75 पर  ब्रांबे से उेढ़-दो किमी बायीं ओर लगभग छह-सात एकड़ भूमि में हरी-भरी सब्जियां की फसल, फूल और फल आपको हर मौसम में दिख जायेंगे. बरबस आपका ध्यान यह दृश्य अपनी ओर आकर्षित कर लेगा. इन खेतों में आपको तमाम तरह के मौसमी सब्जियां मिल जायेंगी. ये जमीन कई वर्ष तक बंजर पड़ी रही थीं. लेकिन एक इनसान की मेहनत और लगन ने इस बेकार पड़ी भूमि को हरा-भरा बना दिया. आज इस भूमि पर उपजाया जाने वाली मौसमी सब्जी, फूल और फल को आसपास के बाजार में भी बेजा जाता है और बाहर भी भेजा जाता है. ये खेत हैं रांची जिले के ब्रांबे के किसान काली उरांव के. पर जमीन पर मालिकाना हक किसी और का है, जिसे उन्होंने किराये पर ले रखा है.

बंजर भूमि को बनाया उपजाऊ
काली उरांव महज आठवीं पास हैं, लेकिन इनके पास खेती-बाड़ी की व्यापक समझ है. हालांकि खेती का उनका पेशा पुश्तैनी है, लेकिन एक समय ऐसा था जब उनके पास बहुत कम जमीन हुआ करती थी. उनके पास पहले एक एकड़ ही खेती के लायक जमीन थी. धीरे-धीरे उन्होंने खेती के लिए गांव के लोगों से जमीन मांगी. यह जमीन बंजर थी, लेकिन काली को इस भूमि से सोना उगाने का जुनून था. जमीन लेने के बाद उनका पहला काम उसे खेती के लायक बनाना था. खेती के लायक जमीन तैयार करने में उन्हें चार साल लग गये. यह काम उन्होंने वर्ष 2001 में प्रारंभ किया था. भूमि को जोता और उसको समतल बनाया. इसके बाद सिंचाई की व्यवस्था की और अलग-अलग किस्म की सब्जी लगायी. उन्हें सब्जी का अच्छी पैदावार मिली तो खेती को और बढ़ाया. काली कहते हैं : शुरुआत में तो खेती का काम ज्यादा नहीं था. बाद में इस जमीन को लिया तो कुछ सब्जी की पैदावार की और पैदावार भी ठीक हुई थी. तब लगा कि  बड़े पैमाने पर अच्छी पैदावार की जा सकती है. तब जाकर खेती के काम को आगे बढ़ाया.

दूसरे किसानों से भी मिली सहायता
खेती-बाड़ी के काम के लिए प्रारंभ में काली ने अपने गांव के आस-पास के क्षेत्रों का भ्रमण किया और दूसरे किसानों से मिले. किसानों से मिलने के क्रम में उन्नत खेती की कई जानकारियां मिली. वह बताते हैं कि  सिंचाई के प्रबंधन के लिए ही इटकी के सोमू जी से मिले, जिन्होंने ड्रिप सिंचाई तकनीक के विषय में जानकारी दी. तब इन खेतों के लिए नेटाफेम से सहयोग लेकर ड्रिप सिंचाई की व्यवस्था की गयी. सिंचाई के लिए वे पास की ही एक छोटी नदी के पानी का इस्तेमाल करते हैं. इस नदी में 14 फीट का उन्होंने पांच कच्च कुआं खोदा दिया है. गरमी के दिनों में जब नदी सूख जाती है, तो कच्च कुआं का इस्तेमाल सिंचाई के लिए किया जाता है.

सब्जी के साथ फूलों की भी खेती
काली मौसमी सब्जी के अलावा फूलों की भी खेती करते हैं. वह साल में करीब 20 किंवटल गेंदा फूल की खेती कर लेते हैं. एक किलों गेंदा फूल का बाजार रेट 15 से 20  रुपया थोक में मिलता है. उनका मानना है कि अच्छे पैदावार के लिए मौसम सही होना चाहिए. मौसम के खराब होने और वर्षा होने से कई बार फसल बरबाद हो जाती है, जिससे किसानों को अत्यधिक घाटा सहना पड़ता है. काली से उनकी सालाना आय पूछने पर वह कहते हैं कि सालाना आय का कोई ठीक नहीं होता है. घाटा भी सहना पड़ता है. यदि बीस हजार की पूंजी लगाये तो ऐसा भी हुआ है कि पंद्रह हजार पूंजी डूब गयी, लेकिन मुनाफा भी होता है. खेती की कमाई से उनका परिवार सुखी जीवन जी रहा है.

जैविक खेती की उपज का मिले सही दाम
काली बताते हैं कि खेती से परिवार का पालन-पोषण हो रहा है. खेती कर वह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे रहे हैं.  इनका पूरा परिवार खेती के काम में लगा हुआ है और उनकी एक बेटी खुशबू उरांव अर्थशास्त्र में स्नातक कर रही हैं और उनकी योजना आगे सरकारी नौकरी में जाने की है. खुशबू बताती हैं कि जब भी छुट्टी होती है तब खेतों का काम करती हैं. सरकारी योजनाओं के लाभ मिलने के विषय पर पूछने पर वह काली उरांव कहते हैं : सरकारी योजनाओं का थोड़ा लाभ हुआ है, लेकिन अधिकतम लाभ नेटाफेम से ही हुआ है. जैविक खेती के विषय पर उनका मत है कि यदि उपज का सही दाम मिले तो किसान जैविक खेती ही करेंगे. जैविक खेती में उपज कम होता है और मेहनत भी लगती है, इसलिए उपज का सही दाम भी मिलना जरूरी है. आज काली अपनी उपज को नजदीक के बाजार ब्रांबे तथा मखमंदरो में बड़े व्यापारी को उपलब्ध कराते हैं.


http://www.prabhatkhabar.com/news/100232-story.html


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