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कृषि | गांठ बांध लिया सादगी का मंत्र

गांठ बांध लिया सादगी का मंत्र

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published Published on Jun 21, 2010   modified Modified on Jun 4, 2014

तरनतारन [लुधियाना],[धर्मवीर मल्हार]। आज की नई पीढ़ी से अगर किसी राजनेता की बात की जाए तो उसकेजेहन में क्या छवि उभरेगी। यही ना, साफ-शफ्फाक लंबा कुर्ता-पायजामा, हाथ में ब्लैकबेरी फोन, अगल-बगल में एक दो गनर और नीचे कोई लंबी सी चमचमाती कार। लेकिन इसकेठीक उलट अगर आप तरनतारन जिले के गाव तुड़ की गलियों में पुरानी सी साइकिल पर आते-जाते और हाथ में फावड़ा-कुदाल लिए तरलोचन सिंह तुड़ को देखें तो आपको यकीन नहीं होगा कि यह व्यक्ति तीन बार जीतकर देश की संसद में पहुंचा है। सिर्फ वही नहीं, बल्कि उनकेभाई व पिता भी एक-एक बार तरनतारन क्षेत्र से सासद रहे हैं।

तरलोचन को सादगी और संघर्ष का यह मंत्र अपने दादा सरदार जगतार सिंह से विरासत में मिला। सरदार जगतार सिंह ने आजादी के संघर्ष में अंग्रेजों से लोहा लिया था। दादा से मिला यह मंत्र तरलोचन सिंह ने जिंदगी भर केलिए गांठ बाध लिया। तरलोचन सिंह तुड़ पहली बार 8वीं लोकसभा में सासद बने। इससे पहले छठी लोकसभा में उनकेपिता जत्थेदार मोहन सिंह तुड़ और सातवीं लोकसभा में बड़े भाई लहंगा सिंह जीतकर पहुंचे थे। इसके बाद तरलोचन सिंह 12वीं व 13वीं लोकसभा में भी तरनतारन से जीतकर संसद पहुंचे।

तीन-तीन बार की सासदी हासिल करना किसी भी व्यक्ति को मद में चूर करने केलिए काफी है, लेकिन तरलोचन ने सादगी का दामन कभी नहीं छोड़ा। बीए पास तुड़ आज भी अपनी 18 एकड़ जमीन पर खेती अपने हाथों से करते हैं। पशुओं की देखभाल, दूध दुहने का काम भी खुद ही करते हैं। कहीं आने-जाने के लिए उन्होंने लग्जरी कार नहीं, बल्कि साइकिल रखी है।

रुआब-दाब के लिए न कोई नौकर, न कोई गनर। सादगी भरा जीवन बसर करने वाले तुड़ की बेटी अमेरिका में डाक्टर है, जबकि शादीशुदा बेटा हरभजन सिंह पीएचडी कर रहा है। बीए पास बहू सतवंत कौर कहती है कि डैडी जी सादा रहना व खाना पसंद करते हैं। दिन में पोते आदर्श मोहन सिंह व पोती लवलीन कौर के साथ टाइम गुजारने वाले तरलोचन सिंह तुड़ कहते हैं कि अगर नेता लोग अकड़ व ऐश में जीवन बसर करेंगे तो देश की हालत ठीक नहीं रहेगी। देश में 60 फीसदी लोग पेट भर खा नहीं पाते। ऐसे में देश चलाने वाले नेताओं को ही कुछ सोचना चाहिए।

जिंदगी की 65 बसंत देख चुके तुड़ बताते हैं कि साइकिल चलाने से शरीर स्वस्थ रहता है। वे आगे कहते है कि अब सियासत जनसेवा नहीं रही। इसलिए उनका इकलौता बेटा हरभजन सिंह सियासत से कोसों दूर है। उनका दावा है कि सादगी भरे जीवन के साथ उन्होंने किसी से विरोध नहीं रखा। अपने सियासी जीवन में उन्होंने कभी किसी अवैध कार्य के लिए सिफारिश नहीं की।


http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_6636101.html
 

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