Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
कृषि | छोटी सी पहल ने बदली सौ गांवों की तकदीर
छोटी सी पहल ने बदली सौ गांवों की तकदीर

छोटी सी पहल ने बदली सौ गांवों की तकदीर

Share this article Share this article
published Published on Dec 17, 2015   modified Modified on Dec 17, 2015
कभी पानी को तरसते थे, आज साल भर में तीन फसल उगा रहे किसान

राजस्थान के सौ गांवों के खेतों में फसल नहीं उगायी जाती थी, क्योंकि वहां सिंचाई के माकूल साधन नहीं थे. सिंचाई के लिए पानी की बात तो दूर, ग्रामीणों को पेयजल भी मयस्सर नहीं था. मुंबई की एक महिला कार्यकर्ता द्वारा किये गये अथक प्रयास के बाद आज उन गांवों में न सिर्फ लोगों को पेयजल मिल रहा है, बल्कि खेतों में साल भर में तीन फसलें भी उगायी जाने लगी हैं.


प्रत्येक दिन समाचार पत्रों में राजस्थान के हालात पर छपने और टेलीविजन चैनल पर दिखनेवाली खबरों ने मुंबई की महिला सामाजिक कार्यकर्ता अमला रुइया को इस समस्या के समाधान के लिए सोचने पर विवश कर दिया. अमला बताती हैं कि मैंने सरकार के द्वारा पानी के टैंकरों से ग्रामीणों को पेयजल उपलब्ध कराते हुए देखा. इसे देख कर मैंने सोचा कि यह समस्या का स्थायी समाधान नहीं है. इसके लिए स्थायी समाधान करने की जरूरत है. क्यों न किसानों की समस्या का स्थायी हल निकाला जाये.


समाधान के लिए बनाया ट्रस्ट : राजस्थान में सूखे की समस्या से लोगों को निजात दिलाने के लिए मन में बात आते ही अमला रुइया ने आकार चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना की.

वे कहती हैं कि आम तौर पर राजस्थान के किसान देश में सबसे गरीब माने जाते थे. वे सिंचाई के परंपरागत तकनीक के आधार पर बारिश के पानी से फसलों की सिंचाई किया करते थे. इसके लिए यह जरूरी था कि वहां के लोगों के साथ मिल कर समस्या के स्थायी समाधान के हम अपने कारगर मॉडल पर काम करें.

गांवों के पास बनवाने लगीं चेक डैम : फसलों की सिंचाई के लिए पहले उन्होंने वर्षाजल का संचयन करने के लिए गांवों के पास चेक डैम का निर्माण करवाना शुरू किया. यहां की छोटे-छोटे पहाड़ों की श्रेणियों को बरसात के पानी को जमा करने के लिए चिनाई जरिये जोड़ दिया गया. यह उन पहाड़ी इलाकों की छोटी-छोटी पहाड़ियों की श्रेणियां छोटे-छोटे जलाशयों के रूप में ज्यादा प्रभावी साबित हुए. उनसे लोगों को बड़े बांधों की तरह लाभ मिलना शुरू हो गया और लोगों को इन जलाशयों से किसी प्रकार का नुकसान भी नहीं हुआ.

इन छोटे-छोटे जलाशयों को देख कर ग्रामीण एक गांव से दूसरे गांव में जाने लगे. इन इलाकों के लोग संपत्ति और अन्य वस्तुओं के नुकसान होने के जोखिम के बावजूद इन जलाशयों में भरपूर मात्रा में जल का संचयन किया. उनका यह काम काफी प्रभावी साबित हुआ. अमला रुइया की इस प्रकार की पहली परियोजना राजस्थान के मंडावर गांव में काफी सफल रही और यहां के किसान एक साल के दौरान दो चेक डैम की मदद से फसल उपजा कर करीब 12 करोड़ रुपये की आमदनी की.

किसानों ने भी लगायी पूंजी : 1999-2000 के बीच राजस्थान के गांवों में एक चैक डैम के निर्माण में करीब पांच लाख रुपये की लागत आती थी. मंडावर में निर्मित चेक डैम की सफलता के बाद किसान अन्य परियोजनाओं में भी अपनी पूंजी लगाने लगे. एक चेक डैम के निर्माण में जितनी लागत आती थी, उसका 40 फीसदी हिस्सा किसान जुटाते थे. अमला बताती हैं कि किसानों की सहभागिता बढ़ने के बाद लगा कि उनकी परियोजना सफल हो जायेगी.

इसलिए हर कार्यों में किसानों को शामिल करने लगीं और परियोजना के कामों में आनेवाली लागत में उनकी पूंजी का भी इस्तेमाल की. इससे किसानों को अहसास होता था कि जिस परियोजना का काम कराया जा रहा है, वे उसके मालिक हैं.

जागरूकता अभियान : चेक डैम के निर्माण की प्रक्रिया शुरू करने के साथ ही गांवों में किसानों के बीच सिंचाई के लिए बांधों के निर्माण और वर्षा जल संचयन के लिए जागरूकता अभियान चलाया गया.

इसके बाद चेक डैम के निर्माण के लिए स्थानीय लोगों और विशेषज्ञों की सलाह पर समुचित स्थान का चयन किया गया. फिर ग्रामीणों ने श्रम के साथ-साथ पूंजी मिलाना भी शुरू किया. इन इलाकों में दो से तीन महीने के दौरान एक चेक डैम का निर्माण किया जाने लगा.


साल में उपजने लगी तीन फसल : अमला बताती हैं कि चेक डैम्स के निर्माण के बाद जिन गांवों में साल में एक फसल उपजाना मुश्किल था, अब तीन फसलें उपजायी जाने लगीं. सबसे पहले इन इलाकों के किसानों ने रबी की फसल उगायी थी. इसके बाद सब्जियां और अन्य फसलें भी उगायी जाने लगीं.


किसानों की आमदनी बढ़ी : साल भर तक सिंचाई के पर्याप्त साधन मिलने के बाद खेतों में एक फसल के स्थान पर तीन-फसलों के उगने के बाद यहां के किसानों ने अपनी आय बढ़ायी.

उन्होंने पशुपालन का भी काम शुरू कर दिया. कई घरों में तो मवेशियों की संख्या आठ से 10 तक पहुंच गयी. दुधारू पशुओं से दूध, घी और मक्खन का उत्पादन किया जाने लगा.

लोगों के पास मोटरसाइिकल और जुताई के लिए ट्रैक्टर्स भी हो गये. आज स्थिति यह है कि राजस्थान के सौ गांवों में चेक डैम्स के जरिये सिंचाई करके भरपूर फसल उगायी जाती हैं और उससे किसानों की भरपूर आमदनी भी होती है. इन गांवों को मिला कर इस समय किसानों को सालाना करीब तीन सौ करोड़ रुपये की आमदनी हो रही है.


http://www.prabhatkhabar.com/news/vishesh-aalekh/story/663506.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close