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सशक्तीकरण | ऐसे बदलती है दुनिया...

ऐसे बदलती है दुनिया...

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published Published on Jul 25, 2009   modified Modified on Jun 4, 2014

 दसवीं तक भी नहीं पढ़े एक शख्स का ऐसा आविष्कार, जिसने देश की दसियों हजार महिलाओं की जिंदगियां बदल कर रख दी हैं.

कुछ दिन पहले तक विजया और लता नाम की बहनें कोयंबतूर में नाममात्र की तनख्वाह पर नौकरी किया करती थीं. पिछले साल नवंबर में उन्होंने जैसे-तैसे 85,000 रूपए इकट्ठा किए और उनसे एक स्थानीय कारीगर द्वारा ईजाद की गई मशीन खरीद डाली. बस तभी से मानो उनकी सारी आर्थिक परेशानियां छूमंतर हो गईं. इसका मतलब ये नहीं कि ये कोई नोट छापने की मशीन है. दरअसल इससे महिलाओं की सैनिटरी नैपकिन बनाई जाती है.

बेहद कम लागत में तैयार होने वाली इस सैनिटरी नैपकिन को बनाने वाली मशीन 47 वर्षीय ए मुरुगनंथम का आविष्कार है जिन्हें दसवीं कक्षा में ही अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी. प्रति घंटे 120 नैपकिन का उत्पादन करने वाली ऐसी करीब 100 मशीनें अब तक पूरे देश में लगाई जा चुकी हैं जिनमें से 29 तो सिर्फ हरियाणा में ही हैं. इसके अलावा इन मशीनों को उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, बिहार और उत्तराखंड में भी लगाया जा रहा है. एक मोटे-मोटे अनुमान के मुताबिक मुरुगनंथम की ये मशीन आज देश भर में करीब ढाई लाख महिलाओं के काम आ रही है.

अपने आविष्कार की जबर्दस्त सफलता के बावजूद मुरुगनंथम ने अपनी इस मशीन का पेटेंट अधिकार बेचने से साफ इनकार करते हुए एक निजी कंपनी का ब्लैंक चेक वापस कर दिया. उनका कहना था कि वो अपनी मशीन का उपयोग ग्रामीण और गरीब शहरी महिलाओं के बीच सफाई और स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए करना चाहते हैं. मुरुगनंथम के मुताबिक देश के ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादातर महिलाएं सैनिटरी पैड के रूप में कपड़े का इस्तेमाल करती हैं जो कि असुरक्षित है और इससे तमाम तरह की बीमारियां होने का खतरा रहता है.

पढ़े पूरी कहानी नीचे दी गई लिंक पर-
http://www.tehelkahindi.com/business/366.html

 


 


http://www.tehelkahindi.com/business/366.html
 

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