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Event | नये भूमिअधिग्रहण कानून, जनआंदोलन और उनकी राजनीति का असर पर दो दिवसीय बैठक

नये भूमिअधिग्रहण कानून, जनआंदोलन और उनकी राजनीति का असर पर दो दिवसीय बैठक

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published Published on Oct 28, 2013   modified Modified on Oct 28, 2013
निमंत्रण

नये भूमिअधिग्रहण कानून, जनआंदोलन और उनकी राजनीति का असर पर दो दिवसीय बैठक

नवंबर 19-20-2013 9ः30 प्रातः से सांय 6ः00 बजे तक, गांधी शांति प्रतिष्ठान,
दीन दयाल उपाध्याय मार्ग, नई दिल्ली

प्रिय साथियों,

जिंदाबाद

जनआंदोलनांे के बरसों चले लम्बे संघर्ष के बाद देश में औपनिवेशिक भूमि अधिग्रहण कानून, 1894 के स्थान  पर ‘‘उचित मुआवजे का अधिकार, भूमिअधिग्रहण में पारदर्शिता, पुनर्वास और पुर्नस्थापना कानून, 2013‘‘ आया है।
आम चुनाव व विधानसभा चुनाव कई राज्यों में होने वाले है। राजनीतिक दल, सत्ता व विपक्ष इन सभी ने  मतदाताओं को निशाना बनाते हुए नयी-नयी योजनाओं और कानूनों पर काम करना शुरू कर दिया है। निर्वाचन क्षेत्रों में भी खूब हलचल हो रही है। सत्तानशीन यू.पी.ए. सरकार ने चुनावों को ध्यान में रखते हुए और अपना राजनीतिक लाभ देखते हुए कुछ महत्वपूर्ण कानून भी पारित किए हैं। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के साथ-साथ नया भूमि अधिग्रहण बिल 2013 भी लागू किया। यद्यपि विकास की प्रक्रिया में लोगों की भागीदारी जैसे मुख्य प्रश्न को छोड़ दिया गया है। प्राकृतिक संसाधनों पर समुदाय के अधिकारो की गरिमा, समानता, न्याय के साथ मजबूत बनाने जैसे विकास के व्यापक सवालों को मुखातिब ही नही किया गया है।

जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय 80 के दशक से सरकारी भूमि अधिग्रहण, जो कि सार्वजनिक उद्देश्य के नाम पर प्रख्यात क्षेत्र की शक्ति के इस्तेमाल से होता रहा है, का एक वैकल्पिक ढंाचा तैयार करने की प्रक्रिया में कार्यरत है। भूमि अधिकार की रक्षा, प्रकृति पर आधारित समुदाय की आजीविका, सरकारी विकास में विस्थापन को अवश्यंभावी बनाने के तरीके को नकारते हुये एक पूरी विकास योजना का ढंाचा तैयार करना, यह सब समंवय ने देश के समक्ष रखा है।

90 के शुरूआती दशक में भारत सरकार को एक विधेयक मसौदा पेश किया, बाद में 2006 में एक अलग संस्करण राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् को दिया जिसे उसके द्वारा स्वीकार किया गया। फिर उसके बाद से कई प्रस्तुतियंा, संसदीय स्थायी समिति, ग्रामीण विकास मत्रंालय, अन्य संबंधित मंत्रालयों और राजनीतिक पार्टियों को दी गई। जो अधिनियम अभी संसद द्वारा पारित हुआ है वह हमारे इन्ही प्रयासों से का परिणाम है। इन सबके पीछे आंदोलनों के लम्बें संघर्षों का अनुभव रहा। दो अलग-अलग अधिनियमों, एक भूमि अधिग्रहण और एक पुनर्वास व पुर्नस्थापना के बदले यह एक व्यापक अधिनियम है। इसमें अलग से सामाजिक प्रभाव आंकलन, परियोजना प्रभावित परिवारों की एक विस्तारित परिभाषा, भूमिहीनों और भूमि मालिकों के अलावा अन्यों को भी पुनर्वास एंव पुर्नस्थापना के लाभ और ग्राम/बस्ती सभा की विभिन्न स्तरांे पर भूमिका, परियोजना प्रभावित परिवारों की सहमति आदि को भी शामिल किया गया।
 
बहरहाल, इस नए अधिनियम में कई समस्याएं हैं जिसे समंवय ने बताया है जैसे कि यह ज़बरन भूमिग्रहण और उसके आस-पास के विवाद को खत्म नहीं करेगा। यह न तो विस्थापन के कष्टों को खत्म करेगा और न ही समुदाय के अधिकारों को मान्य करेगा। लोकतांत्रिक विकास के लिये और कारपोरेट की लूट के खिलाफ हमारा संघर्ष जारी रहेगा। फिर भी यह आवश्यक है कि हम में से जो भी नए कानून व रणनीतियों के लिये संघर्ष का हिस्सा रहे हैं, वो इस नये कानून को अन्य कानूनों के साथ कीमती प्राकृतिक संसाधनों पर कारपोरेट लूट को चुनौती देने के का उपकरण बनाये।

अनगिनतों की आजीविका को खतरे में डालकर ताप विद्युत संयंत्रों, बांधों, परमाणु उर्जा संयंत्रों, विशेष निवेश क्षेत्रों, औद्योगिक गलियारों व निर्माण क्षेत्रों राजमार्गो, बंदरगाहों, हवाई अड्डों, रियल एस्टेंट परियोजनाओं और अन्य बुनियादी ढांचों आदि को बनाने के लिये जिस तरीके से सरकार योजनायें है उससे भूमि अधिग्रहण और बढ़ेगा ही और यह कानून इसमें और सुविधा देगा।

कारपोरेट और कारपोरेट मीडिया के द्वारा एक उद्देश्यपूर्ण प्रचार फैलाया जा रहा हैं की यह कानून       औद्योगिकरण को नुकसान पहुंचायेगा। पर हम यह मानते हैं कि यह कानून देश में हलचल मचा देगा। देश में गंभीर भूमि विवाद खड़े करेगा। यह सिर्फ और सिर्फ भूमि अधिग्रहण की सुविधा देगा। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि नए कानून को समझा जाए, इसके साथ हुआ जाए और नये संघर्ष के लिए इसे एक उपकरण के तौर पर देखा जाए।

नये कानून के नियमों को ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जनता की टिप्पणी के लिये रखा गया है। पहले की तरह हम इसे अच्छी तरह पढ़ेगे, इसके साथ हमे लगना पड़ेगा। ताकि हम अपनी सही प्रतिक्रिया दे सके।

इन्ही सब संदर्भों में हम आपको दो दिन के लिए आमत्रिंत करते हैं, ताकि नए अधिनियम के प्रावधानों चर्चा व परामर्श करके हम इस कानून के नियमों का प्रस्ताव बना सके। साथ ही आगामी चुनावों में जनआंदोलनों की रणनीति भी पर बहस चर्चा व परामर्श किया जा सके।

यह बैठक नवंबर 19-20-2013 9ः30 प्रातः से सांय 6ः00 बजे तक, गांधी शांति प्रतिष्ठान, दीन दयाल उपाध्याय मार्ग, नई दिल्ली में आयोजित होगी।

प्रांरभिक ऐजेंडाः

पहला सत्र: नये कानून की समझ
दूसरा सत्र: समुदायों पर इस कानून के प्रावधानों के असरों पर चर्चा
तीसरा सत्र: नये कानून और प्रस्तावित नियमो का उत्तर
चौथा सत्र: आनेवाले विधानसभा और आम चुनाव

हमें उम्मीद है कि आप हमारे साथ शामिल होंगे इस महत्वपूर्ण बैठक में भी मिलकर सरकार व कंपनियों दवारा ज़मीन हड़पने की नीति के विरोध में एक सांझा रणनीति तैयार करेंगे। सही विकास का उचित प्रचार करने के लिये जवाबी विवरण बना सके।

हमें आपके साथ का इंतजार है। इस विषय में कोई अन्य जानकारी चाहे तो कृप्या बताये।

 सहयोग में
मेधा पाटकर, प्रफुल्ला सामंत्रा और लिंगराज आजाद, (ओडिसा) ओडिसा, अरुंधती धुरु (उ0प्र0), डा0 सुनीलम्, अराधना भार्गव एंव मीरा(मध्य प्रदेश), सी. आर. नीलांकदन (केरल), डी. गैबेरियल (तमिलनाडु), गौतम बंदोपाध्याय (छत्तीसगढ़), सिस्टर सीलीया (कर्नाटक), महेन्द्र यादव एंव कामायनी स्वामी (बिहार), आनंद मझगावकर एंव कृष्णकांत (गुजरात), रामाकृष्णन् राजू, पीएस अजय एंव सरस्वती कुरवेला (आंध्र प्रदेश), सुनीति सु.र., विलास भोंगाडे, सुहास कोहल्हेकर, प्रसाद बागवे (महाराष्ट्र), भूपेन्द्र रावत, राजेन्द्र रवि, मधुरेश कुमार और सीला एम. (दिल्ली), विमलभाई (उत्तराखंड)
विस्तृत जानकारी के लिये संपर्क:napmindia@gmail.com , 9212587159, 9818905316    

गांधी शांति प्रतिष्ठान,दीन दयाल उपाध्याय मार्ग, नई दिल्ली


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