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साक्षात्कार | भारत में कोरोना से बड़ा संकट नफ़रत और भूख है- अरुंधति रॉय
भारत में कोरोना से बड़ा संकट नफ़रत और भूख है- अरुंधति रॉय

भारत में कोरोना से बड़ा संकट नफ़रत और भूख है- अरुंधति रॉय

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published Published on Apr 21, 2020   modified Modified on Apr 21, 2020

दुनियाभर में कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन के बहुत गंभीर परिणाम सामने आ रहे हैं. आप अपने देश, जहाँ कई प्रकार की असमानताओं के कारण, स्थिति और भी जटिल हो जाती है, के बारे में हमारे दर्शकों को क्या कहना चाहेंगी?

अगर संक्रमण के शिकार लोगों की संख्या पर नज़र डालें तो कोविड अभी तक भारत पर बड़े संकट के तौर पर नहीं नज़र आ रहा, हालाँकि इन आंकड़ों की विश्वसनीयता के बारे में भी निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता. हम पर कोविड का संकट तो है ही, पर इससे भी अधिक भारत इस समय नफरत और भूख के संकट और लॉकडाउन से पैदा हुई तकलीफों से ज्यादा जूझ रहा है. शारीरिक दूरी सुनिश्चित करने के लिए लागू किये गये इस लॉकडाउन में शारीरिक दबाव कहीं ज्यादा है.

दरअसल, मुसलमानों के प्रति नफरत के इस संकट की पृष्ठभूमि में, दिसंबर से नागरिकता क़ानून के खिलाफ हो रहे आन्दोलन और उसके बाद दिल्ली में मुसलमानों के कत्लेआम की घटनाएं शामिल हैं. और आज इस समय जब हम यह बातचीत कर रहे हैं, कोरोना की आड़ में युवा-छात्रों को गिरफ्तार किया जा रहा है. वकीलों, वरिष्ठ संपादकों, राजनीतिक कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों के खिलाफ मुकदमे दर्ज किये जा रहे हैं. कुछ लोगों को जेल में भी डाल दिया गया है.

आपने बताया कि बेहद नफरत का माहौल है; ऐसी स्थिति में आप भारत की हिन्दू राष्ट्रवादी सरकार को क्या कहना चाहेंगी, जो कहीं न कहीं इस तनाव को और बढ़ा रही है ?

सरकार इस तनाव को बढ़ा रही है क्योंकि यही उसका वास्तविक उद्देश्य भी है. प्रधानमंत्री और भारतीय जनता पार्टी का पितृसंगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ लम्बे समय से कहता रहा है कि भारत एक हिन्दू राष्ट्र है, और आरएसएस की वैचारिकी में भारत के मुसलमानों की वही हैसियत है जो जर्मनी में यहूदियों की थी. और आप देखें कि जिस तरह यहूदियों को कलंकित करने के लिए घेटो में ‘टायफस’ का इस्तेमाल किया गया था ठीक उसी तरह मुसलमानों को कलंकित करने के लिए कोविड का इस्तेमाल किया जा रहा है. 

मेरे पास सरकार को कहने के लिए तो कुछ नहीं है, हाँ, मैं अपने देश और बाकी दुनिया के लोगों को अवश्य यह कहना चाहूंगी कि इस स्थिति को हल्के में न लें क्योंकि हालात दरअसल जातिसंहार की ओर बढ़ रहे हैं. इस सरकार का एजेंडा भी यही है. 

जब से यह सरकार सत्ता में आई है मुसलमानों को लगातार निशाना बनाया जा रहा है, उनके खिलाफ ‘मोब-लिंचिंग’ की घटनाएं होती रही हैं. कोविड जैसी बीमारी के नाम पर जिस तरह से उन्हें कलंकित किया जा रहा है उसे देखकर ऐसा लगता है मानों सरकारी नीति को सड़कों पर लागू किया जा रहा हो. 

मुसलमानों के खिलाफ चरम हिंसा की आशंकाएं बढती जा रही हैं. नये नागरिकता कानून के आने के पहले से ही देश में कैदी-शिविरों का निर्माण शुरू कर दिया गया था. और अब कोरोना संकट के बीच भारत में जो हालात बन रहें हैं उस पर पूरे विश्व को नज़र रखनी चाहियें. और इससे ज्यादा इन खतरों के बारे में मैं क्या कहूँ.

आप कह रही हैं कि हालात जातिसंहार की ओर बढ़ रहे हैं तो यह सचमुच काफी चौंकाने वाली बात है. हाल ही में एक लेख में आपने लिखा था कि ‘यह त्रासदी तत्काल, वास्तविक और बहुत बड़ी है.  लेकिन यह त्रासदी नई भी नहीं है.  यह उस रेलगाड़ी की तरह हैं जो वर्षों से पटरियों से उतर कर टकराने के लिए आगे बढ़ रही थी.’  आपको क्या लगता है कि इतनी  गम्भीर स्थिति में, जब हालात जातिसंहार की ओर बढ़ रहे हैं तो आखिर वह कौन है जो आँखें मूँद कर बैठा और जिसे आँखें खोलकर देखने की ज़रुरत है ?

ये पंक्तियाँ मैंने अमरीका की स्वास्थ्य व्यवस्था को इंगित करते हुए लिखीं थीं पर ये भारत की मौजूदा स्थिति पर भी लागू होती हैं. देखा जाए तो सारी दुनिया की ऑंखें बंद हैं. दुनिया का हर राजनेता भारत के प्रधानमंत्री को गले लगा रहा है, उसका स्वागत कर रहा है. प्रधानमंत्री किसी स्टेट्समैन की तरह व्यवहार करने का प्रयास करते हैं लेकिन जब कभी हिंसा होती है तो वे चुप्पी साध लेते हैं. 

दरअसल जब दिल्ली में मुसलमानों के कत्लेआम की घटनाएं हो रही थी तो ट्रंप भारत में ही थे. ट्रंप ने भी चुप्पी साधे रखी, कोई कुछ नहीं बोला. भारत के मुख्यधारा के मीडिया का एक बड़ा हिस्सा लोगों की भावनाएं भड़का कर जातिसंहारक प्रवृति का हो चला है. टी.वी. एंकर, अपने-अपने स्टूडियो में बैठे एक सदस्यीय ‘लिंचिंग-मोब’ बन गये हैं. इस तरह की घटनाएं दिन ब दिन बढ़ती जा रहीं हैं. 

पूरा साक्षात्कार पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.


मीडियाविजिल, http://www.mediavigil.com/op-ed/arundhati-roy-interview-on-dw-news/


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