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साक्षात्कार | अब वार्ड सदस्य को भी चाहिए योजनाओं के कमीशन में हिस्सा : दयामनी

अब वार्ड सदस्य को भी चाहिए योजनाओं के कमीशन में हिस्सा : दयामनी

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published Published on Jul 10, 2013   modified Modified on Jul 10, 2013
हमारे गांवों का कितना विकास हुआ है. क्या चुनौतियां हैं. विकास के मौजूदा मॉडल से आप कितनी सहमत हैं?

मौजूदा विकास को दो-तीन तरह से देखना होगा. पहले समझना होगा कि विकास का मतलब क्या है. किस तरह का विकास होना है और किसका विकास होना है. आज सरकार की नजर में विकास का जो पैमाना है, जिसे मेनस्ट्रीम सोसाइटी विकास मानती है, और जो विकास हो रहा है क्या कल वह विकास होगा? यह एक बड़ा सवाल है.


जो जी रहे हैं, उसी से सीख रहे हैं. आज हम जिसे विकास मानते हैं : रोड बनना, सड़क बनना, डैम बनना, खदान-फैक्टरी बनना. रियल स्टेट सेक्टर. इसमें एक-एक चीज का विश्लेषण कर देखें तो विकास के नाम पर विनाश ही हुआ है. विकास के नाम पर विस्थापन हुआ है. विस्थापितों का जीवन नारकीय हो गया है. विस्थापितों के पास घर, भोजन नहीं है. 84 मौजा डूबा गया तेनुघाट में डैम बनने पर. कृषि भूमि खत्म हो रही है. फलदार वृक्ष खत्म हो रहे हैं. तो क्या अमेरिका से जो अनाज आ रहा है, उससे हमारे यहां फूड सिक्यूरिटी करेंगे. हमारा आहार वनोपज था, उससे फूड सिक्यूरिटी करना चाहते हैं या नूडल्स से. यह सवाल है.


राज्य की शिक्षा व्यवस्था को ग्रामीण परिप्रेक्ष्य में आप कैसे देखती हैं?

शिक्षा व्यवस्था को ठीक करने के लिए हमें हर पक्ष को देखना होगा. मैं जैक (झारखंड एकेडमिक काउंसिल) की तीन साल तक सदस्य रही हूं. मेरा अनुभव काफी कड़वा रहा. आप कहते हैं कि गांव का विकास करेंगे, लोगों को शिक्षित करेंगे और नक्सलवाद खत्म करेंगे. सच यह है कि सुदूर गांवों में स्कूल भवन नहीं है. शिक्षक भी नहीं हैं. कई जगह स्कूल भवन है, तो शिक्षक नहीं हैं. ऐसी परिस्थितियों में वहां शिक्षा की गुणवत्ता कैसे सुधारेंगे. आज सर्व शिक्षा अभियान के जरिये लोगों को शिक्षित करने का कार्यक्रम चलाया जा रहा है. यह काम पारा शिक्षक के जरिये किया जा रहा है. मेरा अनुभव है कि 80 प्रतिशत पारा शिक्षक राजनीतिक कार्यकर्ता हैं. वे किसी न किसी राजनीतिक पार्टी से प्रेरित हैं, जुड़े हैं. ठेका-पट्टा का भी काम करते हैं. ऐसी स्थिति में वे बच्चों को कितना समय देंगे. मिड डे मिल कार्यक्रम बच्चों के ड्रापआउट को रोकने के लिए चलाया जा रहा है. अभी मैं किसी अखबार में पढ़ रही थी कि 25 हजार ऐसे स्कूल हैं, जहां कक्षा एक से पांच तक एक ही शिक्षक है. उनके पास कक्षा एक से पांच तक के बच्चों की जिम्मेवारी होती है. खाना की व्यवस्था, विद्यालय का निर्माण कार्य की जिम्मेवारी भी उन पर होती है. और, जब केंद्र व राज्य सरकार किसी तरह के सर्वे का कार्य करती है, तो वह काम भी इन्हीं से करवाया जाता है. ऐसे में कैसे पलायन व नक्सलवाद को रोकने के लक्ष्य को पाया जा सकता है.


जैक के सदस्य के रूप में हमने देखा है कि कैसे शिक्षा व्यवस्था के लिए मानकों को पूरा करने वाले स्कूलों को स्वीकृति पाने में दिक्कतें आती हैं. खूंटी के अड़की प्रखंड व सिमडेगा के बानो प्रखंड में दो ऐसे स्कूल हैं, जिनके पास सारे संसाधन हैं, लेकिन नाक रगड़ने पर भी उन्हें मानयता नहीं मिली. मैं भी कोशिश कर मान्यता नहीं दिला सकी. मैंने सदस्य के रूप में बहुत कोशिश की. मैंने अध्यक्ष सहित कई दूसरे लोगों से बात की, पर नहीं हुआ.

ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा की क्या स्थिति है?

नियमत: 25 हजार की आबादी पर एक रेफरल अस्पताल होना चाहिए. पर, राज्य में रेफरल अस्पताल की स्थिति अच्छी नहीं है. वहां ढंग की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है. आप कामडारा व तोरपा के रेफरल अस्पताल में चले जाइए, वहां एक्स-रे की मशीन नहीं मिलेगी. खून जांच की मशीन नहीं है तो भला गांवों को मलेरिया मुक्त कैसे बनायेंगे. डॉक्टर-नर्स के लिए बुनियादी सुविधा नहीं है. मैं कहूंगी की ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवा का ढांचा ध्वस्त हो गया है.


भ्रष्टचार पर आपका क्या नजरिया हैं. वह ग्रामीण जन-जीवन को किस तरह प्रभावित करता है?

राजीव गांधी कहा करते थे कि दिल्ली से जो पैसा विकास के लिए भेजा जाता है, उसमें चार आना ही आमलोगों तक पहुंच पाता है. मैं कहूंगी कि अभी रांची से झारखंड के गांवों के लिए जो पैसा भेजा जाता है, उसमें एक रुपये में पांच पैसा ही आमलोगों तक पहुंचता है. पंचायत चुनाव से इस पर भी सवाल उठ खड़ा हुआ है. पहले नेता, अधिकारी व ब्लॉक के चपरासी तक इसका हिस्सा जाता था, अब तो भ्रष्टाचार का भी विकेंद्रीकरण हो गया है. वार्ड सदस्य भी सरकार के अंग हो गये हैं. उनके पास भी पीसी पहुंचनी चाहिए. अधिकार, वित्तीय शक्ति का विकेंद्रीकरण हुआ है, लेकिन भ्रष्टाचार का भी विकेंद्रीकरण हुआ है. लेकिन जहां लोग जागरूक-शिक्षित हैं, वहां चीजों को ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं. पर, उन्हें अधिकारी सहयोग नहीं करते हैं. जो ज्यादा बोलते हैं, उनकी योजनाएं स्वीकृत नहीं होती. कहते हैं ग्रामसभा योजनाओं को स्वीकृत करेगी, लेकिन सबकुछ जेइ के हाथ होता है. ईमानदार लाभुक अगर कमीशन नहीं देता, तो वह उसका एमवी ही पास नहीं करता. जबतक गांव के लोगों को यह समझ में नहीं आयेगा कि जब तक भ्रष्टाचार को नहीं उखाड़ेंगे, तबतक गांव में विकास नहीं होगा. यही मूल बात है. विकास के मॉडल को झारखंड क्षेत्र के अनुरूप बदलना होगा. जिंदा नाला, नदियां हैं, उन्हें लोगों को विस्थापित किये बिना पुनर्जीवित करना होगा. इससे हर खेत को पानी मिलेगा और क्षेत्र का विकास मिलेगा.


राज्य में खनन कार्य ने गांव की जिंदगी को कैसे प्रभावित किया है?

राज्य में कितना माइंस चलाना चाहिए इस पर विचार होना चाहिए. झारखंड में सिर्फ मिनरल ही भरा हुआ है. राज्य में 104 से ज्यादा बड़ी कंपनियां के साथ सरकार का एमओयू है. 90 प्रतिशत कंपनियां माइंस आधारित हैं. एक ही कंपनी को प्लांट लगाने के लिए कई चीजें चाहिए, जो खनन से मिलेगी. विकास का मतलब टिकाऊ विकास होना चाहिए. कुजू, झरिया में जमीन के नीचे आग जल रही है. वह अंदर ही अंदर जल रही है, कल बाहर निकलेगी. मैं कहूंगी कि कंपनियों ने जो डिजास्टर किया है, उसे उसको ठीक करना चाहिए. नदियों को प्रदूषण मुक्त करना चाहिए.


नदियों सिर्फ गांव ही नहीं शहरों की जिंदगी का भी आधार हैं. कैसे बचेंगी वे?

मैं कहूंगी कि अच्छी नदियों को संरक्षित करें. उत्तरी झारखंड की नदियां खत्म हो गयी. पीने योग्य पानी नहीं है. खूंटी जिले में छह डैम सरकार बनाना चाहती है. उत्तर की नदियां खत्म कर दी गयीं. अब दक्षिण झारखंड की नदियों को मारना चाहते हैं.
कृषि भूमि, वन भूमि को संरक्षित रहने देना चाहिए.


हमारी सरकारों से कहां पर चूक हो गयी?

हमारी सरकार से हद कदम पर चूक हुई है. झारखंड सरकार ने विकास का कोई नजरिया नहीं रखा. स्वास्थ्य, शिक्षा, विस्थापन को लेकर कोई नीति नहीं बनी. झारखंड के पास अपनी कोई माइनिंग पॉलिसी नहीं है. पॉलिसी लेबल पर सरकार का नजरिया ठीक नहीं है. अगर यह नहीं किया तो विकास के लिए योजना कैसे बनायेंगे. जो भी सरकार में आता है, वह सिर्फ व्यक्तिगत लाभ के लिए काम करता है. सरकार में शामिल लोग कई पीढ़ियां तक अपना भविष्य सुरक्षित कर लेना चाहते हैं. मेरा मानना है कि भ्रष्टाचार के विरोध में कार्रवाई होनी चाहिए. भ्रष्ट लोगों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए.


विकास की मौजूदा अवधारणा में आदिवासी समाज कहां हैं?

आदिवासी समाज की पूरी भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी. नीतिगत स्तर पर भी. आदिवासी-मूलवासी का अपना जीवन-दर्शन है. विकास व जीविका को केंद्र बिंदु में रख कर पॉलिसी मेकर में शामिल करना होगा. बाहरी-भितरी के भेद सुनने में अच्छा लगता नहीं. माइनिंग कंपनियों में स्थानीयों को नौकरी नहीं मिल रही है. बाहर से आनेवाले गलत तरह से खुद को प्रोजेक्ट करते हैं तो यह ठीक नहीं. नौकरी में आदिवासियों-मूलवासियों को पहली प्राथमिकता मिले. उसके बाद अन्य लोगों को नौकरी मिलनी चाहिए.


गांव के लिए विकास की पांच प्राथमिकताएं क्या होनी चाहिए?

कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, राजनीतिक शिक्षा, महिला व युवाओं का विकास एवं विस्थापितों के लिए नीति व पर्यावरण एवं प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा हमारी प्राथमिकताएं होनी चाहिए. हमारे पास पर्याप्त वनोपज हैं. उस पर आधारित खाद्य प्रसंस्करण उद्योग लगना चाहिए. मैं जब अमेरिका गयी तो वहां कटहल की बिरयानी खायी. स्वादिष्ट थी. रेस्त्रं वाले से पूछने पर मालूम हुआ कि यह हिंदुस्तान से आया है. मुङो गर्व हुआ और मैंने अनुमान किया कि यह झारखंड से गया होगा. हमारे यहां मडुआ होता है जो रागी के नाम से भी जाना जाता है, उसका उपयोग प्रोटिनेक्स व सेरेलेक्स बनाने में होता है.


पंचायत प्रतिनिधियों से क्या उम्मीद है, क्या संदेश देना चाहेंगी?

उनसे मैं उम्मीद क्या करूं. लेकिन संदेश देना चाहूंगा. उनसे अनुरोध करती हूं कि झारखंड का विकास करना चाहते हैं तो पूरे झारखंडी सोच के साथ करें. मिट्टी व झारखंड की धरोहर को न्याय देते हुए झारखंडियों का तन-मन से विकास करें. न कि कॉरपोरेट घरानों का. विकास का अपने आंगन तक ले जायें. वार्ड सदस्यों से लेकर जिला परिषद अध्यक्ष को गांव के हित में काम करना चाहिए. पीसी दरकिनार करके काम की जरूरत है. गांव का विकास होगा तो खुद इनलोगों का विकास होगा. अभी मौका मिला है. पंचायत में गवर्नेस चलाने का. पंचायत का गवर्नेस झारखंड को नयी दिशा दे सकता है.


http://www.prabhatkhabar.com/news/854-story.html


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