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साक्षात्कार | एक मां की आवाज : 'मुझे देवांगना पर गर्व है, भारत को नताशा, गुलफिशा और सफूरा जैसी बेटियों की ज्यादा जरूरत'
एक मां की आवाज : 'मुझे देवांगना पर गर्व है, भारत को नताशा, गुलफिशा और सफूरा जैसी बेटियों की ज्यादा जरूरत'

एक मां की आवाज : 'मुझे देवांगना पर गर्व है, भारत को नताशा, गुलफिशा और सफूरा जैसी बेटियों की ज्यादा जरूरत'

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published Published on Jun 22, 2021   modified Modified on Jun 22, 2021

-आउटलुक,

देवांगना की मां डॉ कल्पना डेका कलिता आउटलुक  की आस्था सव्यसाची के साथ बातचीत में कहती हैं कि उनकी बेटी की एक्टिविज़्म उनके लिए क्या मायने रखती है। उसकी कैद उन सभी मां के लिए एक संदेश है जिनके बच्चों को गलत तरीके से सलाखों के पीछे डाल दिया गया है।

देवांगना ने राजनीतिक एक्टिविज़्म में कब कदम रखा?

अपने स्कूल के दिनों में भी, वह न्याय और अन्याय के बीच के अंतर के बारे में बहुत जागरूक थीं। वह राजनीति और महिलाओं के अधिकारों को अच्छी तरह जानती थी। वह गलत के खिलाफ बोलती थी।एक्टिविजम में उनका अपना निर्णय था और हम सबने उसका साथ दिया। वह एक आत्मनिर्भर लड़की है जिसने हमेशा अपने निर्णय खुद लिए हैं और वह हमेशा ऐसी ही रहेगी।

क्या आप सीएए के विरोध प्रदर्शनों में उनकी भागीदारी के बारे में जानते थे?

हम जानते थे कि देवांगना सीएए के विरोध में सक्रिय रूप से शामिल थीं। लेकिन साथ ही हमें विश्वास था कि वह कभी भी किसी हिंसा, दंगे या अवैध गतिविधि में शामिल नहीं थी।

असम के लोग होने के नाते हमने एनआरसी को बहुत करीब से देखा है। बहुत से लोग जिन्हें हम जानते हैं, उन्होंने बहुत कुछ सहा है। उन्होंने सब कुछ खो दिया क्योंकि उनके पास कोई डॉक्यूमेंट नहीं था। असम में सीएए-एनआरसी के खिलाफ भारी विरोध प्रदर्शन हुआ। मैं एक प्रोफेसर हूं और मेरे विश्वविद्यालय में भी सभी संकाय और छात्रों ने सीएए के विरोध प्रदर्शनों में भाग लिया। मैंने भी किया। अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना गलत नहीं है।


जिस दिन उन्हें गिरफ्तार किया गया था, उस दिन क्या हुआ था?

हमें इस बात का अंदाजा नहीं था कि उसे कैद कर लिया जाएगा। जब एसआईटी ने उसे सूचित किया कि 23 मई, 2020 को दोपहर 3 बजे के आसपास उससे पूछताछ की जाएगी, तो उसने लगभग 2:30 बजे हमें वीडियो कॉल किया तब मैंने उससे कहा, 'डरने की जरूरत नहीं है। आपने कुछ गलत नहीं किया है। आपने सीएए का विरोध किया है। जाओ और बहादुरी से सवालों के जवाब दो।'

जब वह जेल में थी तो क्या आपने उनसे बात की थी?

शुरुआत में हमें उससे 10-15 दिनों में सिर्फ दस मिनट बात करने की इजाजत थी, लेकिन जब देवांगना और नताशा ने इसका विरोध किया तो तिहाड़ जेल के सभी कैदियों को हफ्ते में एक बार 30 मिनट के वीडियो कॉल में अपने परिवार से बात करने की अनुमति दी गई। उन्हें रोजाना पांच मिनट फोन करने की भी छूट भी थी। जेल में रहते हुए भी वह लड़ती रहीं। वह एक योद्धा है।

जब भी हम उसे कॉल पर देखते थे, वह हमारे लिए बहुत अच्छा पल होता था। उसका छोटा भाई वीडियो कॉल में उसके लिए पियानो बजाता था। इसने उसे खुश किया और वह इसे इतना प्यार करती थी कि वह कहती थी, 'मुझे तुम्हें पियानो बजाते वक्त देखने के लिए बाहर आना होगा।'

जेल में बंद सभी राजनीतिक बंदियों के परिवारों के लिए आपका क्या संदेश है?

उन सभी माताओं के लिए जिनके बेटे और बेटियों को गलत तरीके से जेल में रखा गया है उनके लिए मेरा संदेश है कि हमें मजबूत रहना है और थोड़ा सब्र रखना होगा। हमारे बच्चे दोषी नहीं हैं। उन्हें न्याय मिलेगा। आखिरकार भारत को ज्यादा से ज्यादा देवांगना, नताशा, गुलफिशा और सफूरा जैसे लोगों की जरूरत है।

देवांगना और उसकी सहेलियों पर मीडिया चैनलों द्वारा निशाना बनाए जाने पर आपका क्या कहना है?

हमें हमारे रिश्तेदारों ने बताया कि कैसे टीवी चैनल देवांगना पर हमला कर रहे हैं। मुझे उन टीवी एंकरों से एक बात कहनी है - आप जो चाहें कह सकते हैं, लेकिन मेरे लिए दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला भारत में लोकतंत्र की जीत था।

आप सरकार से क्या कहना चाहती हैं?

सरकार को मेरा संदेश है कि एक अच्छे देश के निर्माण के लिए आपको हर तरह के लोगों की बात सुनने का धैर्य रखना चाहिए। चर्चा और बहस के लिए जगह दें। मेरी बेटी ने अपने लिए विरोध नहीं किया। उसने अपने देश के लिए किया।

आपको अपनी बेटी पर सबसे ज्यादा गर्व किस बात के लिए होता है?

देवांगना बहुत ईमानदार और दयालु हैं। मैं हर दिन उससे प्रेरित होती हूं। जेल में उसे जो कुछ भी झेलना पड़ा, मुझे यकीन है कि वह और भी मजबूत महिला बनकर सामने आएंगी। मुझे उस पर गर्व है। उसे अपनी सक्रियता जारी रखनी चाहिए। समाज उन महिलाओं से डरता है जो अपने दिल और दिमाग की बात कहती हैं। यह हमारे लिए और भी आवश्यक बनाता है कि हम अपनी बेटियों को निर्णय लेने और राजनीति में भाग लेने दें और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाएं। उन्हें स्वतंत्र होने दें और अपनी पसंद खुद बनाएं। हमें उन्हें पिंजरों को तोड़ने देना चाहिए।

जब वह घर वापस आएगी तो आप सबसे पहले क्या करेंगे?

एक साल से ज्यादा समय हो गया मैने उसे नहीं देखा है। फोन करने पर कहती थी, 'मां, मैंने एक साल से एक भी अंडा नहीं खाया है।' तिहाड़ जेल में सिर्फ शाकाहारी खाना ही देते हैं। उसे मांसाहारी और हमारे पारंपरिक असमिया व्यंजन बहुत पसंद हैं। जब वह वापस आएगी, तो मैं उसकी पसंदीदा फिश करी बनाऊंगी।'

पूरा इंटरव्यू पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


आस्था सव्यसाची, https://www.outlookhindi.com/face/a-mothers-voice-i-am-proud-of-devangana-delhi-hc-verdict-is-a-win-for-democracy-59199


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