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साक्षात्कार | मर रहे हैं गांव, आर्थिक उन्नति की बात बेमानी : प्रो नवल किशोर

मर रहे हैं गांव, आर्थिक उन्नति की बात बेमानी : प्रो नवल किशोर

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published Published on Feb 4, 2014   modified Modified on Feb 4, 2014

हिंदुस्तान की आत्मा गांव में बसती है. देश की उन्नति में गांव का अहम रोल रहा है. आज गांव की हालत क्या है? भूमि-विवाद, बिजली की कमी, सिंचाई के घटते साधन, पानी की कमी को ङोल रहे नहर, आहन, पईन. इन सबके बीच गांव की तासिर लगातार गिरती जा रही है. मूलभूत सुविधा ही जब गांव को नहीं मिलेगी तो हमारे गांव दूसरे प्रदेश के गांवों की तरह कैसे आर्थिक तौर पर मजबूत हो सकते हैं? सरकार की तमाम तरह की नीतियां हैं लेकिन उन नीतियों को लागू करने में आखिर कैसी और किस तरह की अड़चन आ रही है? गांवों की तस्वीर ऐसी क्यों हुई? कैसे हो सकता है इसमें बदलाव? इसे जानने के लिए सुजीत कुमार ने पटना विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और वरिष्ठ अर्थशास्त्री नवल किशोर चौधरी से बात की. प्रस्तुत है प्रमुख अंश :

आर्थिक उन्नति के मौजूदा दौर में आज गांव कहां खड़ा है?
हिंदुस्तान गांवों को देश है ऐसा हम पढ़ते और सुनते हैं. यह सच है लेकिन उन गांवों की हालत के बारे में सोचने का समय किसके पास है? किसी की पास नहीं. बिहार के 38 जिलों में से 28 जिलों की 90 प्रतिशत आबादी गांव में है. कुल ग्रामीण आबादी अभी  88 प्रतिशत है. लेकिन आज ग्रामीण आबादी त्रस्त है. न ही कोई सुविधा है और ना ही साधन. गांव आर्थिक उन्नति करेगा तो कैसे? गांव का हाथ बांध दिया गया है. उन्हें इस स्तर पर भी नहीं छोड़ा गया कि गांव अपने हालात को संभाल सकें. हर स्तर पर गांव को धोखा मिला है तो गांव की आर्थिक उन्नति का स्वरूप क्या होगा? कुछ नहीं. गांव के लिए जब कुछ किया ही नहीं जायेगा तो फिर गांव आपको क्या देगा

क्या कारण है इसका? कैसे सुधार लाया जा सकता है?
कोई एक कारण नहीं है इसका. बहुत सारे कारण हैं. गांव में आर्थिक उन्नति हो इसके लिए सबसे जरूरी है भूमि व्यवस्था में सुधार. ग्रामीण आबादी कृषि पर निर्भर है और कृषि खेत में होनी है. जब भूमि ही नहीं रहेगी और जो रहेगी भी वह विवाद में रहेगी तो सुधार कहां से होगा? कितनी सरकार आयी और गयी. किसी ने भूमि सुधार के लिए कुछ किया? गांव की याद तब आती है जब भूमि सुधार जैसे किसी कानून के दम पर गांव के लोगों को भ्रमित करना हो, तब. स्वामी सहजानंद ने गांव और भूमि सुधार के लिए बहुत कुछ किया, लेकिन स्वामी सहजानंद केवल कहने के लिए याद रहते हैं. उनके सुधार पर किसी का कोई ध्यान नहीं है. गांव में आर्थिक उन्नति सुनिश्चित हो इसके लिए ईमानदारी से सोचने और काम करने की जरूरत है.

इसका दुष्प्रभाव क्या और कैसे हो रहा है? इसे कैसे रोक सकते हैं?
बहुत दुष्प्रभाव पड़ा है इसका. सुविधा के लिए गांव के लोगों ने जब शहर की तरफ प्रस्थान किया तो गांव की आबादी थोड़ी-सी घटी लेकिन कृषि का तो हाल ही बुरा हो गया. इसका असर आमदनी पर भी पड़ा. ग्रामीण आबादी कृषि पर ही निर्भर है. इस पर किसी ने भी ध्यान नहीं दिया. भूमि विवाद है. सिंचाई की सुविधा खत्म हो गयी है. गांवों में इन सब मूलभूत चीजों के बिना आर्थिक उन्नति के बारे में सोचना बेमानी है. हमारे गांव राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक समता के सूचक हैं. कुछ सुविधाएं गांव को जरूर दी गयी हैं, लेकिन वह पर्याप्त नहीं है. गांव को जो चाहिए वह देना होगा. सड़क और संचार बनाने से क्या गांव आर्थिक उन्नति की ओर बढ़ सकता है? कभी नहीं. गांव को सिंचाई के लिए पानी चाहिए, बिजली चाहिए और सबसे अहम बात भूमि सुधार को सही तरीके से लागू होना चाहिए. गंडक, कमला बलान, कोशी नदी सबकी नहर व्यव्स्था ध्वस्त है. नहर ही नहीं रहेगा तो किसानों को पानी कहां से मिलेगा? इसे दुरुस्त करने की जरूरत है. हमारा चीनी उद्योग में नाम था. आज क्या हालत है? एक वक्त था कि पूरे देश की चीनी मिलों में से 50 प्रतिशत चीनी मिल बिहार में थे. आज उनकी क्या हालत है? उस तरफ किसी का ध्यान नहीं है. गन्ना किसानों की समस्या हर बार सामने आती है. गांव और किसान दोनों परेशान हैं. हमारे राज्य में लीची, अमरूद, केला यह तीन फसल प्रचूर मात्र में उत्पादित होती है, लेकिन क्या इन्हें उपजाने वालों को सारी सुविधा मिल पाती है. किसान अपने दम पर ही इन्हें पैदा करता है लेकिन बाद में उसे केवल लागत निकल जाने के सौदे पर ही बेच देता है. ऐसा नहीं होना चाहिए. सबसे ज्यादा जरूरी है भूमि सुधार को उचित तरीके से लागू करना. उसके बाद ग्रामीणों और गांव की जरूरत को पूरा करना. तब ही हमारे गांव में आर्थिक उन्नति हो सकती है.

आर्थिक उन्नति में मनरेगा का क्या योगदान है?
मनरेगा का बहुत अहम योगदान हो सकता है, लेकिन करेगा कौन? राशि क्या है? मनरेगा मजदूर को पैसे में बदल देता है. गांव की सड़कें, गांव स्तर पर होने वाले काम सब मनरेगा के जरिये ही तो होना है. लेकिन आप खुद देख सकते हैं. मजदूर को मॉडल के रूप में बदल दिया जा रहा है. काम हो तो मनरेगा गांव के लिए बहुत कुछ है. नहीं हो तो कुछ भी नहीं. कई जगह मनरेगा के काम में गड़बड़ी की शिकायत मिलती है. मनरेगा को एकदम ईमानदारी से लागू करने की व्यवस्था होनी चाहिए. आर्थिक उन्नति में मनरेगा बहुत कुछ कर सकता है.

गांव के लघु उद्योग क्या इस तस्वीर को बदल सकते हैं?
बिल्कुल बदल सकते हैं. आप हरियाणा, पंजाब को देखिए. वहां क्या है. वहां तो यही कोशिश की गयी है कि किसानों और गांव के लोगों को सुविधा मुहैया करायी जाए. उनको वही सुविधा मिले. उनकी मेहनत रंग लाये. हमारे यहां के भी किसान और गांव अपनी योग्यता को साबित करने में सक्षम हैं, लेकिन तब जब उन्हें सुविधा मिले. गांव में बिजली की व्यवस्था कीजिए, सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराइए, ग्रामीण सड़कों में सुधार कीजिए. फिर हमारे गांव भी आर्थिक उन्नति स्वत: कर लेंगे.

प्रो. नवल किशोर चौधरी

वरिष्ठ अर्थशास्त्री

प्रोफेसर, पटना विश्वविद्यालय


http://www.prabhatkhabar.com/news/85484-story.html


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