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साक्षात्कार | 'मुझे ईश्वर से काफी मानसिक शक्ति मिली है'- ईरोम शर्मिला

'मुझे ईश्वर से काफी मानसिक शक्ति मिली है'- ईरोम शर्मिला

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published Published on Jul 10, 2012   modified Modified on Jul 10, 2012

मणिपुर में लागू सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (अफ्स्पा) नाम का कठोर कानून हटाने को लेकर इरोम शर्मिला का आमरण अनशन अपने बारहवें वर्ष में प्रवेश कर चुका है. सालों के उपवास का असर उनके क्षीण शरीर पर साफ दिखता है. इसके बावजूद उनकी दृढ़ता और अपने उद्देश्य के प्रति उनके समर्पण में जरा भी कमी नहीं आई है. उर्मि भट्टाचार्य के साथ हुई उनकी बातचीत के अंश

बारह साल से आपने अन्न-जल त्याग रखा है. नाक के रास्ते जबरन आपको खाना दिया जाता है. सामान्य आदमी के लिए यह संभव नहीं है. आप कैसे कर पाती हैं?

मुझे ईश्वर से काफी मानसिक शक्ति मिली है. एक बार अगर आप किसी लक्ष्य पर अपना ध्यान केंद्रित कर लें तो कोई भी चीज आपको भटका नहीं सकती, भूख भी नहीं. यह ध्यान जैसी स्थिति है. मुझे अपने अंतर में ईश्वर की अनुभूति होती है. उस ईश्वर की जो मुझे मानवता, सच्चाई और प्रेम के लिए संघर्ष करने की ताकत देता है. देर-सबेर महात्मा गांधी की इस धरती से अफ्स्पा हटेगा. 

आपकी दृढ़ता बहुत-से लोगों की प्रेरणा है, पर आप किससे प्रेरित होती हैं? क्या आपने किसी को अपना आदर्श बनाया है?

(मुस्कुराते हुए) मैंने उन तमाम योगियों की जीवनगाथा पढ़ी है जिन्होंने सालों साल तक हिमालय में चिंतन-मनन किया. स्वामी राम द्वारा लिखी गई 'लिविंग विद द हिमालयन मास्टर्स' नाम की किताब का मुझ पर काफी प्रभाव है. उनके वास्तविक जीवन के अनुभवों से मुझे बड़ी प्रेरणा मिलती है. मुझे पता है कि हर घटना के पीछे कोई न कोई मकसद होता है. मुझे थोड़ा धैर्य रखना चाहिए और सच की लड़ाई में कभी हार नहीं माननी चाहिए.

आपको मणिपुर की लौह महिला कहा जाता है. यह संबोधन आपको अच्छा लगता है?

मैं मणिपुरी लोगों के लिए जी रही हूं, वही मेरी ताकत हैं. अगर वे मेरी कोशिशों को स्वीकार कर रहे हैं तो मुझे खुशी है. इससे मुझे अपनी जिम्मेदारियों का अहसास और बढ़ जाता है. मेरी प्रार्थना है कि मेरे प्रयास उन्हें न्याय दिला सकें.

आपके व्यक्तिगत रिश्तों को लेकर तमाम खबरें उड़ीं. इस वजह से आपके राज्य में काफी खलबली भी मची. इस पर क्या कहेंगी?

मेरी समझ में नहीं आता कि इससे मेरा मकसद कैसे प्रभावित होता है. मैं इस पर ध्यान नहीं देती. अगर मीडिया वास्तव में संवेदनशील है तो उसे इस मकसद के लिए आवाज उठानी चाहिए. यहां लोग कष्ट में हैं, हम ऐसी तुच्छ बातों पर समय बर्बाद नहीं कर सकते. 

आपके निरंतर प्रतिरोध के बावजूद सरकार इस कानून को हटाने की इच्छुक नहीं दिखती. क्या आपका विरोध धीमा पड़ रहा है? क्या विरोध के अहिंसावादी तरीके में आपका अभी भी विश्वास है?

ऐसा नहीं है, विरोध अब और भी फैल रहा है. भले ही सरकार इच्छुक नहीं दिख रही हो लेकिन हाल के दिनों तक जिस अफ्स्पा के बारे में ज्यादातर लोगों को कुछ पता ही नहीं होता था आज देश का हर आदमी उस बर्बर कानून के बारे में जानता है. सरकार भी अंतत: इसे स्वीकार करेगी. मैं कभी भी अहिंसा का रास्ता नहीं छोड़ूंगी. 

आप बारह साल से आमरण अनशन कर रही हैं. क्या कभी कोई क्षण ऐसा आया जब आपको निराशा ने घेर लिया हो?

मैं हमेशा सकारात्मक सोचती हूं. जब तक हमारे यहां सामाजिक बुराई और भ्रष्टाचार है मेरा संघर्ष जारी रहेगा. सच्चाई पर मेरी आस्था है और यही मुझे प्रेरित करती है. लोग इस बात को समझ रहे हैं और जल्द ही स्थितियां बदलेंगी. 

राज्य में व्याप्त भ्रष्टाचार को देखते हुए क्या आपको लगता है कि यह कानून हटने से मणिपुर के लोगों के अधिकार बहाल हो जाएंगे?

अफ्स्पा हटने भर से मानवाधिकारों का उल्लंघन, सामाजिक पतन और भ्रष्टाचार नहीं रुकेगा. हालांकि यह भ्रष्टाचार उन्मूलन की दिशा में पहला कदम होगा और इससे राज्य में स्वस्थ लोकतंत्र का रास्ता तैयार होगा. यहां लोगों में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है लेकिन फिर भी उन्हें नौकरी पाने के लिए घूस देनी पड़ती है.    

कहा जा रहा था कि आपके आंदोलन के मुकाबले अन्ना हजारे के आंदोलन को जरूरत से ज्यादा तवज्जो दी गई. आपको क्या लगता है?

अन्ना के आंदोलन को शायद ज्यादा तवज्जो मिली हो क्योंकि लोगों ने खुद को इससे जुड़ा पाया. सभी राज्यों ने अफ्स्पा के बर्बर रूप को नहीं झेला है. इसकी आड़ में सेना किसी के भी घर में बिना किसी वारंट के घुस सकती है और जो चाहे मनमानी कर सकती है. मुझे पूरा विश्वास है कि अगर हर भारतीय यह देख ले कि उग्रवाद पर काबू पाने के नाम पर किस तरह बलात्कार, हत्या और यातना जैसी चीजें होती हैं तो उसकी रूह कांप जाएगी. मैं केंद्र सरकार के दमनात्मक रवैये के भी खिलाफ हूं क्योंकि कानून की निगाह में हम सभी बराबर हैं.

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में भारत से आग्रह किया गया है कि वह अफ्स्पा हटाए?

मुझे खुशी है कि उन्होंने अफ्स्पा को स्वस्थ लोकतंत्र के लिए खतरा माना है. मुझे उम्मीद है कि हमारी सरकार इस संदेश को गंभीरता से लेगी. मैं ज्यादा से ज्यादा आरटीआई कार्यकर्ताओं से अपील करती हूं कि वे यहां आएं और यहां फैले अन्याय और कुशासन को सार्वजनिक करें.

 


http://www.tehelkahindi.com/mulakaat/sakshatkar/1213.html


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