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साक्षात्कार | मैंने नहीं कहा अन्ना संसद से ऊपर - अरविन्द केजरीवाल

मैंने नहीं कहा अन्ना संसद से ऊपर - अरविन्द केजरीवाल

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published Published on Oct 28, 2011   modified Modified on Oct 28, 2011

भ्रष्टाचार के खिलाफ अलख जगाने वाली टीम अन्ना के कुछ सदस्य अब विवादों के घेरे में आने लगे हैं। कहीं उनके अंतर्विरोध उजागर हो रहे हैं, और कहीं उसके सदस्यों पर हमले हो रहे हैं। इन्हीं सब मुद्दों पर टीम अन्ना के प्रमुख सदस्य अरविंद केजरीवाल से बातचीत की दैनिक हिन्दुस्तान के प्रवीण प्रभाकर ने। प्रस्तुत हैं बातचीत के अंश:

आप पर चप्पल फेंकी गई। प्रशांत भूषण पर घूंसे चले। क्यों हो रहे हैं हमले? कहीं राजनीतिक सक्रियता तो इसकी वजह नहीं?
जी नहीं, मुद्दे से ध्यान हटाने के लिए ये हमले हुए हैं। सरकार चाहती है कि जन लोकपाल कानून नहीं बने। जब से आंदोलन शुरू हुआ है, तब से हमले हो ही रहे हैं। पहले अन्ना को भ्रष्ट कहा गया। इसके बाद शांति भूषण को सीडी विवाद में घसीटा गया। पहले चरित्र पर हमले हुए। अब हम लोगों के शरीर पर हमले हो रहे हैं। हमें अपने उद्देश्य से हटाने के लिए डराया जा रहा है।

हमले के पीछे कौन-सी ताकतें हैं?
इस पर इतना ही कहूंगा कि जनता सब कुछ जानती है। किसके पास सत्ता है और कौन अपनी शक्तियों का इस्तेमाल कर रहा है, जनता को मालूम है। टीम अन्ना के दो सदस्य कोर कमेटी से बाहर निकल गए हैं। ऐसा क्यों?
ऐसा कुछ भी नहीं है। पीवी राजगोपालजी से मेरी बातचीत हुई है। उन्होंने बताया कि उनकी अपनी व्यस्तताएं हैं, इसलिए वह कोर कमेटी की बैठकों में हिस्सा नहीं लेंगे। अब बैठक से जुड़ी जानकारियां उन्हें फोन पर दी जाएंगी।

राजेंद्र सिंह भी तो साथ छोड़ चुके हैं?
मैं उनका काफी सम्मान करता हूं। उन्हें हिसार उपचुनाव में हमारी हिस्सेदारी से दिक्कतें थीं। उनका मानना था कि चुनाव की राजनीति में हमें नहीं उलझना चाहिए। फिलहाल मतभेदों को दूर करने के लिए उनसे बातचीत चल रही है।

यानी टीम अन्ना में बिखराव हो रहा है?
आपको ऐसा क्यों लगता है? देखिए, मामला कोर कमेटी का है, कोई कैबिनेट का नहीं। जिसमें कोई आए-जाए, उस पर हो-हल्ला होता है। यहां ऐसा कुछ भी नहीं है। लोग आते-जाते रहेंगे, लेकिन गुड कॉज के लिए लड़ाई थमनी नहीं चाहिए।

संतोष हेगड़े भी तो आपसे खुश नहीं हैं?
मीडिया खबरों को तोड़-मरोड़कर पेश कर रहा है। मैंने टीवी चैनल के एक पत्रकार को बस इतना कहा कि जनता संसद से ऊपर है। उन्होंने पूछा कि और अन्ना? तो, मैंने जवाब दिया कि अन्ना जनता हैं। बस, उन्होंने अपने चैनल की पट्टी पर चलवाना शुरू कर दिया कि अन्ना संसद से ऊपर हैं। जबकि मैंने ऐसा नहीं कहा था। जब इसी का हवाला देते हुए एक पत्रकार ने संतोष हेगड़ेजी से पूछा कि अरविंद ने ऐसा कहा है, आपका क्या कहना है? तो उन्होंने कहा कि ऐसा तभी होता है, जब कोई ज्यादा बोलता है। बाद में उन्हें सच का पता चला। कोई मतभेद नहीं है। 

आप लोगों ने तो कश्मीर पर प्रशांत भूषण के बयान से भी किनारा कर लिया है? आपके मंच पर अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है?
कश्मीर पर प्रशांत भूषणजी के विचार निजी हैं और इससे टीम अन्ना का कोई वास्ता नहीं है। हमारे यहां अभिव्यक्ति की आजादी है, तभी तो प्रशांतजी ने अपने विचार रखें। लेकिन हम लोग उनके विचार से सहमत नहीं हैं और इसकी जानकारी उन्हें दे दी गई है।

और, नाराज होकर वह अमेरिका चले गए?
ऐसा आप सोचते हैं। अमेरिका जाने से पहले ही उन्हें बाकी सदस्यों की राय से अवगत कराया गया। उनकी सहमति के बाद ही हम लोगों ने स्थिति को साफ किया। एक बात और। वह किसी सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए अमेरिका गए हैं, नाराज होकर नहीं।

टीम अन्ना के सदस्यों पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं?
यही मैं भी कह रहा हूं कि जन लोकपाल बिल से भटकाने के लिए जनता को गुमराह किया जा रहा है। किरण बेदी का आयोजकों के साथ क्या करार था, इसकी पूरी जानकारी किसके पास है? इसमें क्या पेचीदगियां हैं? किसी को नहीं मालूम है। कुमार विश्वास 18 साल से कॉलेज में कार्यरत हैं। लेकिन अब उन पर कॉलेज से गैर हाजिर होने का आरोप लग रहा है। मुझे इनकम टैक्स का बकाया चुकाने का नोटिस भेजा गया है। आखिर अभी ही हमें क्यों घेरा जा रहा है?

तो क्या ये आरोप बेमतलब हैं?
अगर आरोप हैं, तो उसकी जांच करवाइए। दोषी पाने पर सजा दीजिए। किरण बेदी, कुमार विश्वास या मैं गलत हूं, तो फांसी दे दीजिए। लेकिन जन लोकपाल बिल तो लाइए। जबकि आलम यह है कि सरकार आरोप तो लगा रही है, लेकिन जन लोकपाल बिल पर बात करने से कतरा रही है। इधर, मीडिया ट्रायल शुरू हो गया है। आप लोग हम से बीसों सवाल कर रहे हैं। कोई सरकार से यह नहीं पूछता है कि क्या वह अगले सत्र में जन लोकपाल बिल पास करवा पाएगी?

आपने हिसार को ही अपना प्रयोग स्थल क्यों बनाया? पुणे क्यों नहीं?
इसमें गलत क्या था? हिसार में लोकसभा सीट के लिए उप-चुनाव था। जबकि पुणे में विधानसभा सीट के लिए। हम जन लोकपाल बिल के लिए और भ्रष्टाचार के खिलाफ एक राष्ट्रीय संदेश देना चाहते थे। इस लिहाज से हिसार की लड़ाई ज्यादा अहम थी। वैसे भी हमारी इतनी तैयारी नहीं थी, इतने लोग और संसाधन नहीं थे कि पुणे जाकर अभियान चलाएं। लेकिन आपने देखा कि पुणे में भी इस अभियान का असर पड़ा ही है।

आप लोग विवादों में घिरते जा रहे हैं और अन्ना मौन व्रत पर हैं? यह कौन-सी रणनीति है? कहीं वह टीम के लोगों से नाराज तो नहीं?
ऐसा कुछ भी नहीं है। इससे पहले भी अन्ना कई बार मौन व्रत पर जा चुके हैं। वह आत्म अवलोकन के लिए ऐसा करते हैं। अगर हम लोगों से नाराज होते, तो सीधे कह देते। इस मामले में बेबाक हैं। मीडिया ने उनके बयानों को तोड़-मरोड़कर पेश किया। इससे वह आहत थे।

 


http://www.livehindustan.com/news/editorial/rubaru/article1-story-57-61-197316.html


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